कबड्डी में स्वर्ण पदक

नरेन्द्र देवांगन

जब से एशियाई खेलों में कबड्डी खेल को शामिल किया गया है, हम कबड्डी का स्वर्ण पदक जीतते आ रहे हैं। पुरूष कबड्डी टीम ने एशियाड 2010 में छठवीं बार स्वर्ण पदक जीता। इस तरह एशियाई खेलों में कबड्डी में भारतीय खिलाड़ियों ने लगातार स्वर्ण पदक जीतने का रिकार्ड बनाकर अपनी बादशाहत कायम रखी। इसमें कोई आश्‍चर्य नहीं। हम कबड्डी का स्वर्ण पदक जीतते आए हैं, और भविष्य में जीतते ही रहेंगे। कबड्डी का स्वर्ण पदक विश्‍व का कोई भी देश हमसे छिन नहीं सकता। अब आप पूछेंगे, भला क्यों? जनाब, हम एकदूसरे की टांग खींचने में ही तो माहिर हैं और कबड्डी टांग खींचकर पटक देने का ही तो खेल है। अपने भाई को, अपने मित्र को, अपने पड़ोसी को आगे बढ़ते या तरक्की करते हमसे देखा नहीं जाता, और उसकी टांग खींचकर उसे धड़ाम से गिरा देना हम अपना जन्म सिद्ध अधिकार मानते हैं। एषियाड 2010 में पहली बार शामिल महिला कबड्डी में महिला खिलाड़ियों ने भी स्वर्ण पदक जीतकर साबित कर दिया कि टांग खींचने के मामले में पुरूष ही नहीं भारतीय महिलाएं भी माहिर हैं। यदि ओलंपिक खेलों में भी कबड्डी को स्थान मिल जाए तो आंख मूंदकर हम दो स्वर्ण पदक तो निश्चित ही जीतेंगे। पुरूष और महिला कबड्डी का स्वर्ण अमेरिका और जापान जैसा देश किसी भी हालत में हमसे छिन नहीं पाएगा। वैसे पाकिस्तान वाले भी एकदूसरे का टांग अच्छी तरह खींच लेते हैं। पाकिस्तान हमारा पड़ोसी जो है, फिर वह हमसे ही अलग हुआ अंश है, तो हमारे कुछ गुण उसमें रहेंगे ही। लेकिन वे हमसे पीछे हैं तभी तो विश्‍व कबड्डी में वे हमसे बहुत अंतर से मात खा गए।

भारतीय राजनीति में तो एकदूसरे का टांग खींचकर गिराना एक आम बात है। कोई भी चुनाव हो, टिकट मांगने के लिए पार्टी कार्यकर्ता एकदूसरे का टांग खींचते हैं। मुख्यमंत्री बनाने के लिए विधायक एकदूसरे का टांग खींचते हैं। हाल ही में आंध्र प्रदेश में जगमोहन की इतनी टांग खिंचाई हुई कि वे डर गए, कहीं टांगें ही न टूट जाएं। अत: उन्होंने कांग्रेस पार्टी से अपनी दोनों टांगें ही उठा लीं। एक बार मायावती को उनके जन्मदिन पर बसपा के एक कार्यकर्ता ने भेंट स्वरूप चांद पर जमीन का टुकड़ा दे डाला। मायावती ने एक झटके में उसकी टांग खींच दी और उसे पार्टी से बाहर पटककर दम लिया। कार्यकर्ता भैये, चांद पर अभी मायावतीजी की टांगें नहीं पहुंच पाई हैं और आप अपनी टांगें पहुंच जाने का दंभ भरेंगे, तो आपकी टांगों को बेदर्दी से खींचा ही जाएगा। एक बार शाहरूख खान ने टांग खींचने की गरज से राखी सावंत को नौटंकीबाज कह दिया। अब राखी से रहा नहीं गया, उसने भी टांग खिंचाईकर शाहरूख खान को चित गिरा दिया कि शाहरूख अवार्ड फंक्षन में अष्लील बातें और अष्लील हरकतें करते हैं। टांग खींचना स्वास्थ्य की दृष्टि से भी अच्छा है। सुबह-सुबह टी.वी.चालू कीजिए, कई चैनलों पर बाबा रामदेव अपनी टांग खींच-खींचकर इससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ का गुर बताते मिलेंगे। ऐसा करते समय वे बीच-बीच में बहुराष्ट्रीय कंपनियों और भ्रष्टाचार के लिए सरकार, नेताओं की टांगें भी जमकर खींचते रहते हैं। हमारे देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी नहीं, कबड्डी होना चाहिए। अरे, जिस खेल के सभी पक्षों की बारीकियों से हम अच्छी तरह परिचित हैं, जिसके लिए हमें अभ्यास, कोच वगैरह की जरूरत नहीं पड़ती, उसी खेल को अपना राष्ट्रीय खेल बनाए। हॉकी में दूसरे देषों की अपेक्षा हमारी स्टिक ठीक से नहीं चलती, ट्राई ब्रेकर को हम गोल में नहीं बदल पातें, ओलम्पिक के लिए हम क्वालीफाइ नहीं कर पाते। ऐसे खेल को राष्ट्रीय खेल घोषित करने का क्या मतलब। इस मांग के लिए देशभर में धरना-प्रदर्शन करने की आवष्यकता है कि टांग खींचने वाले खेल कबड्डी को भारत का राष्ट्रीय खेल बनाया जाए।

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