सुरमई शाम ढल रही है

 राकेश कुमार सिंह

सुरमई शाम ढल रही है,
बेताबियाँ सीने पर,
नस्तर चला रही है,
आज फिर से उनका,
ख्याल आ रहा है !

भोली सूरत,
कजरारी आँखे,
जुल्फें ऐसी,
बादल भी सरमाये,
उनकी यादो का,
उन मुलाकातों का,
प्यारा सरमाया,
बेजार कर रहा है !

पहचान वो बर्षो पुराना,
रवां हो रहा है,
ख्यालो में उनके,
खुद को गिरफ्तार पाया,
बंदिशे रोकती है रहें,
लगता है ऐसे,
छितिज के उस पार,
कोई हमें आज,
फिर से बुला रहा है !

 

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