नेताओं की मरम्मत

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कल दो बड़े महत्चपूर्ण फैसले किए। ये दोनों फैसले हमारे देश के नेताओं की इज्जत पर करारी चोटें हैं। पहले फैसले में सभी राज्य सरकारों को अदालत ने निर्देश दिया है कि वे अपने सभी जिलों में एक-एक ऐसे अफसर को नियुक्त करें, जो तथाकथित गोरक्षकों के अत्याचारों से लोगों को बचाए और उनसे उनकी रक्षा करे। यह काम है, सरकारों का और इसकी याद दिला रही है, अदालत !  याने सरकारें कुंभकर्ण की नींद लेकर खर्राटे भर रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोरक्षकों की आलोचना के बावजूद गोरक्षक अपनी करनी से बाज नहीं आ रहे हैं। इसका मतलब क्या हुआ ? या तो उनके मन में कानून का कोई डर नहीं है या सत्तारुढ़ लोग उनकी पीठ ठोकते रहते हैं। अदालत के सामने ऐसे 66 मामले रखे गए, जिनमें या तो गोरक्षा के नाम पर लोगों की हत्या कर दी गई, या उनका अंग-भंग कर दिया गया या उन्हें लूट लिया गया। इसके शिकार सबसे ज्यादा कौन हुए ? मुसलमान, दलित और महिलाएं। अदालत ने कहा है कि एक सप्ताह के अंदर राज्य सरकारें बताएं कि इस संबंध में उन्होंने क्या किया।

 

अदालत ने अपने दूसरे फैसले में हमारे नेताओं की काफी मरम्मत कर दी। उसने सरकार को सिर्फ एक सप्ताह की मोहलत दी है और कहा है कि सारे चुने हुए नेताओं की चल-अचल संपत्ति का पूरा हिसाब वह उजागर करे। इस मुद्दे पर वह अभी तक खर्राटे क्यों खींच रही थी ? लखनऊ की लोक-प्रहरी नामक संस्था ने अपनी याचिका में बताया है कि पिछले पांच साल में कुछ सांसदों की संपत्ति 1200 प्रतिशत, कुछ की 500 प्रतिशत, कुछ की 200 प्रतिशत और कुछ की 2100 प्रतिशत तक बढ़ गई है। यह तो उनका बताया हुआ आंकड़ा है, जो बिन बताई हुई या छिपाई हुई संपत्ति है, वह तो कई गुना ज्यादा होगी। वास्तव में भ्रष्टाचार की अम्मा हमारी राजनीति ही है। अदालतें तो यहां-वहां थोड़ी सुई चुभो सकती हैं लेकिन इस रोग की जब तक शल्य-चिकित्सा स्वयं राजनीतिक दल नहीं करेंगे, भ्रष्टाचार की बेल फलती-फूलती रहेगी। वास्तव में संसद को ऐसा कानून बनाना चाहिए कि सांसदों और विधायकों ही नहीं, राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों और उनकी परिजनों व सभी सरकारी पदाधिकारियों की संपत्तियों का विवरण हर वर्ष सार्वजनिक किया जाए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here