कोयला घोटाले में केंद्र सरकार के हाथ काले

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coalप्रमोद भार्गव

कोल खण्ड आंवंटन घोटाले में केंद्र सरकार अब सीबीआर्इ जांच में भी घिरती नजर आ रही है। सीबीआर्इ ने शीर्श न्यायालय में पेश की जांच रिपोर्ट में कहा है कि संप्रग एक सरकार के कार्यकाल में कोल खण्डों के आवंटन में गड़बडि़यां हुर्इ। ये खण्ड ऐसी कंपनियों को दे दिये गए जिनकी न तो कोर्इ बाजार में साख थी और न ही इस क्षेत्र में काम करने के अनुभव थे। न्यायमूर्ति आर.एस. लोड़ा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने रिपोर्ट पर गौर करने के बाद साफ किया कि पहली नजर में गड़बडि़यों के आरोपों की पुष्टि होती है और यदि आरोप सही पाये जाते है तो सभी आवंटन रदद कर दिए जाएंगे। गड़बड़ घोटालों की मिसाल बन चुकी केंद्र सरकार को न्यायालय की यह टिप्पणी चिंताजनक है। इसके पहले भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ;कैग भी इन गड़बडि़यों को उजागर कर चुका है।

कोल खण्डो के आवंटन से जुड़ी कैग की अंकेक्षण प्रतिवेदन ;आडिट रिपोर्ट आर्इ थी, उसमें तथ्यात्मक आशंकाएं जतार्इ थी, इसी से एहसास हो गया था किइस रिपोर्ट के अर्थ गंभीर मायनों के पर्याय हैं। लेकिन सरकार ने केवल यह जुमला छोड़ कर बरी हो जाने की कोशिश की थी कि नीति पारदर्शी थी और उसमें कोर्इ अनिमियता या गलती नहीं हुर्इ है। वैसे नीतियां तो सभी पारदर्शी और जन कल्याणकारी होती है, लेकिन निजी स्वार्थपूर्तियों के लिए उन पर अपारदर्षिता का मुलल्मा चढ़ाकर ही भश्ट्र्राचार के द्वार खोले जाते हैं। अपारदर्षीता और अनीति का यही खेल कोल खण्डो के आबंटन में बरता गया और पलक झपकते ही चुनिंदा निजी कंपनियों को 1.86 लाख करोड़ रूपये का लाभ पहुंचा दिया। कोयले की इस दलाली में काले हाथ किसी और मंत्री – संत्री के नहीं बलिक उस प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह के हुए हैं जो र्इमानदारी का कथित चोला ओढ़े हुए हैं। क्योंकि 2004 – 2009 के दौरान जिन कोल खण्डों का अबाटंन किया गया, तब कोर्इ और नहीं खुद प्रधानमंत्री कोयला मंत्री का अतिरिक्त प्रभार संभाले हुए थे।

कोल खण्डों के आबंटन में गड़बडि़यां हैं इसकी सुगबुगाहट तो बहुत पहले शुरू हो गर्इ थी। बाद में दल अण्णा ने मनमोहन सिंह समेत 15 केबिनेट मंत्रियों पर दस्तावेजी साक्ष्य पेश करके भ्रष्टाचार के जो अरोप लगाए थे, उनसे भी तय हो गया था कि केंद्र सरकार का यह मंत्रीमण्डल अलीबाबा चालीस चोरों का समूह है। दल के सहयोगी अरबिंद केजरीवाल और प्रसिद्ध वकील प्रशांत भूषण ने तब भी यह आरोप सुप्रीम कोर्ट,हार्इकोर्ट और कैग की रिपोटों के आधार पर ही लगाए थे। किंतु तब अण्णा दल के पास कैग की रिर्पाट के अधूरे दस्तावेज अनाधिकृत तौर से आए थे, इसलिए तब सरकार ने प्रधानमंत्री का बचाव इस बिना पर कर लिया था कि कैग की जिस रिपोर्ट का हवाला अण्णा दल दे रहा है, वह अभी तक संसद में पेश ही नहीं हुर्इ है। इसलिए यह सब आरोप सरकार और प्रधानमंत्री को बदनाम करने के लिए गढ़े हुए हैं। किंतु बाद में कैग ने परफोर्मेंस आडिट आफ कोल ब्लाक एलोकेशंस नामक रिपोर्ट संसद में पेश की तो कोयला धोटाला अधिकृत रूप से देश के सामने आ गया। अब सीबीआर्इ जांच में भी घोटाले की तस्दीक हो गर्इ है।

मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए देशभर में भूसंपदा के रूप में फैले कोयले के ये टुकड़े बिना किसी निलामी के पूंजीपातियों को बांट दिये गए थे। जबकि कोयला सचिव ने नोटशीट पर बाकायदा टीप दर्ज की थी कि प्रतिस्पर्धी बोलियों के बिना महज आवेदन के आधार पर खदानों का आबंटन किया गया तो इससे सरकारी खजाने को बड़ी मात्रा में नुकसान होगा। हुआ भी यही। कैग ने तय किया कि देश मे अब तक का सबसे बड़ा धोटाला 1.76 लाख करोड़ रूपय का 2जी स्पेक्ट्र्रम था और अब यह कोयला घोटाला 1.86 लाख करोड़ रूपये का हो गया। इससे पहले मार्च 2012 में कैग की ड्र्रापट रिपोर्ट सामने आर्इ थी। उसमें 10.71 लाख करोड़ रूपय के नुकसान का आकलन किया गया था। उस समय सरकार मे इसे प्रारूप पत्र कहकर टाल दिया था। तब वित्त मंत्री पी चिदंरबरम की ओर से संसद में सार्वजानिक की गर्इ इस रिपोर्ट के बारे में कोयला मंत्री श्रीप्रकाष जयसवाल दलील दे रहे हंै कि कैग के आकलन का तरीका ही गलत है। हम संसद की लोक लेखा समिति ;पीएसीद्ध में अपना पक्ष रखेंगे। सरकार ऐसा सिर्फ इसलिए कह रही थी, जिससे संसद के चालू सत्र में हंगामे से बचाया जाए। पीएसी के अध्यक्ष भाजपा के मुरली मनोहर जोशी हैं। इसलिए रिपोर्ट के तथ्यों से खिलवाड़ की कोर्इ उम्मीद ही नहीं की जा सकती थी।

1973 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कोयला खदानों का राश्ट्र्रीयकरण करके खादान मजदूरों का हित साधने और समावेशी विकास का उत्कृश्ठ नजरिया पेश करते हुए सार्वजानिक क्षेत्र की कंपनी कोल इ्रडिया को कोयला उत्खन्न और वितरण की जबावदेही सौंप दी थी। कोल इंडिया ही रेलवे उर्जा और इस्पात उधोगो की मांग की आपूर्ति करता था। 1993 तक यही सिथति बहाल रही। लेकिन इसी साल से कोयला उत्खनन पर कोल इंडिया का वर्चस्व खत्म करने और इसे नए नियमों की प्रकि्रया में बांधकर बाजार के हवाले कर देने की कार्रवार्इ शुरू हो गर्इ। इस समय केंद्र में पीवी नरसिंह राव की सरकार थी और इसमें वित्त मंत्री मनमोहन सिंह थे। लिहाजा आर्थिक उदारवादी नीतियों को परवान चढ़ाने के नजरिये से पहले एक मंत्रीमण्डीय आंतरिक मूल्याकंन समिति का गठन किया गया। इसकी सिफारिष पर कोयला मंत्रालय निजी कंपनियों को कोल खंड देने लगा। लेकिन बाजार में आवारा पूंजी का प्रवाह नहीं बना तो मनमोहन सिंह ने धन की कमी के बहाने कोल इंडिया को निर्देश दिए कि वे कोल खण्डो के आवेदनों पर समिति के पास भेजे बिना ही ठेके पर देने की नीति अपना लें। नतीजतन कायदे कानूनों की अवहेलना कर कोल खंड निजी हाथों को सौंपे जाने लागे।

2003 में जब पहली बार मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने कोयला मंत्रालय अपने ही अधीन रखा। 2004 में सरकार ने नीलामी के जरिए कोल खंड देने का फैसला किया। लेकिन इस हेतु न तो कोर्इ वैधानिक तौर तरीके बनाए और न ही कोर्इ प्रकि्रया अपनार्इ। लिहाजा प्रतिस्पर्धा बोलियों को आमंत्रित किए बिना ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीधे नामंकन के आधार पर कोल खण्ड आबंटित किए जाने लगे। देखते – देखते 2004 – 2009 के बीच रिपोर्ट के मुताबिक 342 खदानों के पटटे 155 निजी कंपनियों को दे दिए गए। कैग ने अभी केवल 194 कोल खण्डों की जांच की है। कैग ने कहा है, 25 नामी कंपनियां तो ऐसी हैं जिन्हें औने – पौने दामों में सीधे नामांकन के आधार पर कोल खंड दिए गए हैं। इनमें एस्सार पावर, हिंडालको इंइस्ट्रीज, टाटा स्टील, टाटा पावर और जिंदल पावर व जिंदल स्टील के नाम षामिल हैं। इनके साथ ही संगीत कंपनी से लेकर गुटखा, बनियान, मिनरल वाटर और समाचार पत्र छापने वाली कंपनियों को भी नियमों को धता बताकर कोल खंड आबंटित किए गए। इनमें जिन के लिए अनुबंध में नए उर्जा संयंत्र लगाने का वायदा किया था, उनमें से किसी ने नया उर्जा संयंत्र नहीं लगाया। इसके उलट निजी कंपनियों को कोल खंड देने के ये दुष्परिणाम देखने में आए कि जिन कोयला खदानों में निजीकरण होने से पहले आठ लाख मजदूर व कर्मचारी रोजगार पाते थे, उनमें घट कर ये तीन लाख रह गए। जाहिर है, खदानों में मशीनीकरण बढ़ाकर सिर्फ प्राकृतिक संपदा का अधांधुध दोहन किया गया। कैग ने अपनी रिपोर्ट में 2010 – 2011 में कोयले के हुए उत्खनन और मूल्य के आधार पर नुकसान का औसत आकलन किया है। कोल खंडो से इस दौरान 17.40 अरब टन कोयला का उत्खनन किया गया। जिसका औसत मूल्य 1.86 लाख करोड़ रूपए बैठता है। अब इसी क्रम को पुश्ट करते हुए सीबीआर्इ की जांच रिपोर्ट आर्इ है। जाहिर है, कैग और सीबीआर्इ ने सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाने वाले दस्तावेजी सबूतों का काला चिटठा संसद में पेश कर दिया है। अब संसद र्इमानदारी से कार्यवाही आगे बढ़ाती है अथवा संसद को ही हंगामें की भेंट चढ़ जाने देती है, यह जवाबदेही सांसदों की है ?

 

प्रमोद भार्गव

 

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