किसान कर्जमाफी घोटाला

1
147

kisaanप्रमोद भार्गव

संप्रग सरकार के कार्याकाल में सामने आ रहे घोटालों की सूची लंबी होती जा रही है। इस सूची में राष्ट्रमण्डल खेल, 2जी, आदर्श सोसायटी, कोयला और हेलिकाप्टर घोटालों के बाद किसान कर्ज माफी घोटाला भी शामिल हो गया है। लगता है कांग्रेस बनाम संप्रग सरकार गड़बडि़यों बनाम भ्रष्टाचार की पर्याय बन कर रह गर्इ है। मनमोहन सिंह सरकार ने 2008 में कृशि ऋण माफी और कर्ज राहत योजना के तहत 52,516 करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए थे। इसके तहत 3.69 करोड़ छोटे और 60 लाख अन्य किसानों को कर्ज माफी दी गर्इ थी। ठीक 2009 के आम चुनाव के पहले घोशित इस योजना का ही प्रतिफल था कि संप्रग की दोबारा सत्ता में वापिसी हुर्इ। लेकिन अब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नमूना जांच के आधार पर माना जा रहा है कि जिस तरह से अपात्रों के कर्ज माफ किए गए हैं, उसके चलते करीब 10 हजार करोड़ का घोटाला हुआ होगा ?

कृशि कर्ज माफी योजना के अमल की पड़ताल करने पर कैग ने 9 राज्यों में की गर्इ लेखा परीक्षा जांच में 9334 खातों में से 1257 ;13.46 प्रतिषत खाते उन किसानों के थे, जो कर्ज माफी के वास्तविक हकदार थे, लेकिन कर्ज देने वाली संस्थाओं ने इन पात्र किसानों को सूची में शामिल ही नहीं किया। लिहाजा उनका कर्ज माफ हुआ ही नहीं। यही वजह रही कि विदर्भ से लेकर बुंदेलखण्ड तक किसान आत्महत्याओं का सिलसिला जारी रहा है। कैग ने बतौर नमूना 90576 खातों की पड़ताल की है। इनमें से 20242 खातों में गड़बड़ी पार्इ गर्इ, जबकि कर्जमाफ 3.5 करोड़ किसानों का किया गया है। कैग रिपोर्ट के आधार पर गड़बड़ घोटालों का औसत निकाला जाए तो लगभग 34 लाख ऐसे किसानों के कर्ज माफ नहीं हुए, जो लाभ की वास्तविक पात्रता रखते थे। इसके उलट 24 लाख ऐसे कर्जदारों के कर्ज माफ कर दिए गए, जो अपात्र थे। मसल रिपोर्ट के मुताबिक बैंक प्रबंधकों व जन-प्रतिनिधियों की मिलीभगत से उन लोगों को भी ऋण-मुकित दे दी गर्इ, जिनहोंने घर बनाने और मोटर वाहन खरीदने के लिए कर्ज लिए थे। यही नहीं दिशा-निर्देषों की अवहेलना करते हुए निजी व्यावसायिक बैंकों के कर्जदारों के कर्ज भी माफ किए गए। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने बिना किसी अभिलेखीय साक्ष्य के अरबन कोआपरेटिव बैंक से जुड़े 335 करोड़ रुपए की कर्ज माफी का दावा स्वीकार कर लिया। जाहिर है, वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने संस्थागत भ्रष्टाचार को प्रोत्साहित करने में मदद की। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों के पास कथित रुप से कर्ज माफ किए किसानों के दस्तावेजी साक्ष्य नदारद हैं और जो दस्तावेज उपलब्ध हैं उनमें से कर्इ के आंकड़ों में काट-छांट करके फेरबदल किया गया है। ये सब कारण घोटालों की पुष्टि करने वाले हैं। इस लिहाज से विपक्ष यदि इस घोटाले की जांच सीबीआर्इ से कराने की मांग कर रहा है तो इसमें अनुचित क्या है ?

वित्तीय सेवा विभाग और बैंकों की भ्रष्टाचार में लिप्तता का जिस तरह से कैग रिपोर्ट में खुलासा किया गया है, उससे लगता है, केंद्र सरकार की मंशा किसान कर्ज माफी के बहाने औधोगिक घरानों और निजी संस्थाओं की सेहत सुधारना था। अन्यथा न तो घर और वाहन कर्जमाफ किए जाते और न ही निजी अरबन कोआपरेटिव बैंक से जुड़े 335 करोड़ रुपये की कर्ज माफी का दावा मंजूर किया जाता। कर्ज माफी योजना लागू करने के पीछे मूल मंशा थी कि महाराष्ट्र के विदर्भ और उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र में जिस में बड़ी तादाद में कर्ज के चंगुल में फंसे किसान आत्महत्या कर रहे हैं, उन्हें कर्ज से राहत मिले। लेकिन कैग रिपोर्ट ने साफ कर दिया कि किसान को न तो बैंकों से कर्ज माफी मिली और न ही महाजनों से ?

पूरे देश के सूदखोर किसानों का शोषण करने में लगे हैं। और सरकार नीतियां इस तरह की बना रही है कि जो प्रत्यक्षत: तो ऐसी लगें कि किसान हितैशी हैं, लेकिन आखिरकार उनसे हित साध्य उधोग और बहुराष्ट्रीय कंपनियों का ही हो। जाहिर है, किसानों को ठगे जाने का सिलसिला जारी है। इस लिहाज से देखें तो पिछले 8-9 साल से कृशि ऋणों में इजाफा तो छह गुना हुआ है, कृशि ऋण भी लक्ष्य से ज्यादा बांटे जा रहे हैं। लेकिन देश के जो 81 फीसदी सीमांत, मझोले और छोटे किसान हैं, उनके हिस्से में बमुश्किल पांच प्रतिषत कर्ज जा रहा है। बाकी लाभ बड़े किसान, व्यापारी और उधोगपति बटोर रहे हैं। कर्ज वितरण में भी पक्षपात बरता जा रहा है। 2009 – 10 में दिल्ली और चण्डीगढ़ के किसानों को 32400 करोड़ के कर्ज दिए गए, जबकि बिहार, झारखण्ड, उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल के किसानों को कुल 31000 करोड़ के कर्ज बांटे गए। ऐसा किसान और कृशि ऋण से जुड़ी प्रचलित परिभाषा के दायरे को बदलकर किया गया। इस बदलाव में व्यवस्था की गर्इ कि कृशि कार्य में जो गतिविधियां अप्रत्यक्ष रुप से भागीदारी करती हैं, उन्हें भी कृशि कर्ज के दायरे में लाया जाएगा। इस लचीलेपन के चलते कृशि उपकरण, खाद-बीज, कीट नाषक दवाओं के निर्माण से जुड़े उधोग, व्यापारी और कृशि प्रशिक्षण से जुड़े सरकारी व गैर सरकारी संस्थाएं भी इस दायरे में आ गए, नतीजतन कृशि ऋण व ऋण माफी का लाभ ऐसी ही संस्थाएं उठाने लग गर्इ हैं। कृशि की इस नर्इ परिभाषा ने नर्इ परिभाषा ने वास्तविक व जरुरतमंद किसान को पीछे धकेल दिया है।

कृशि परिभाषा को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान हुए ‘कृशि समझौता के तहत बदला गया। इस समझौते के अनुसार भारत और अमेरिका मिलकर कृशि क्षेत्र में ऐसी तकनीकें विकसित करेंगे, जिनसे भारत समेत पूरी दुनिया की खाध सुरक्षा तय होगी। हरित क्रांति के बाद कृशि क्षेत्र में आने वाली इस क्रांति को एवरग्रीन रिवोल्युषन, मसलन सदाबहार क्रांति का नाम दिया गया। इस क्रांति के मूल में एग्री बिजनेस की अवधारणा छिपी थी। जिसके तहत खेती के मूल आधार बीज पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों का अधिकार जमाना है। इसी का परिणाम है कि देश के किसी भी गांव में चले जाइए, वहां बिजली, पानी की भले ही उपलब्धता न हो आनुवंशिक बीज बनाने वाली कंपनियों की उपलब्धता जरुर मिल जाएगी। हाइबि्रड बीज की इस अवधारणा में देशी बीज तेजी से लुप्त होजे जा रहे हैं, नतीजतन देश के 50 करोड़, सीमांत ओर छोटे किसान भुखमरी के दायरे में आते जा रहे हैं। इस हकीकत के बावजूद सरकार संस्थागत ऋण बांटने की गतिविधियों को प्रोत्साहित कर रही है, यह सोच आश्चर्य में डालने वाला है। यह हैरानी तब और परेशान करती है, जब सरकार दावा करती है कि वह किसान व कृशि क्षेत्र को बढ़ावा देने की दृशिट से हर साल कृशि बजट बढ़ा रही है। 2013-14 के बजट में भी कृशि ऋणों में सवा लाख करोड़ की बढ़ोत्तरी की गर्इ है। लेकिन तय है, इस राशि में से ज्यादातर ऋण का लाभ कृशि से जुड़ी सहायक व वैकलिपक संस्थाएं ले उड़ेंगीं ?

ऐसा नहीं है कि किसान कर्ज माफी का घोटाला कैग के जरिए ही सामने आया हो, मध्यप्रदेश सरकार ने भी 2010 में 114 करोड़ रुपए की गड़बड़ी मंजूर की थी। यही नहीं मध्यप्रदेश के चालू विधानसभा सत्र में एक प्रश्न का लिखित जबाव देते हुए जल संसाधन मंत्री जयंतमलैया ने मान है कि बुंदेलखण्ड पैकेज के अतंर्गत आबंटित कार्य में साठ लाख की गड़बड़ी की है। लेकिन किसान मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की भ्रष्टाचारियों के प्रति यह उदारता रही कि गड़बड़ी सार्वजनिक रुप से स्वीकार लिए जाने के बावजूद एक भी भ्रष्टाचारी पर कानूनी शिकंजा नहीं कसा ? राहुल गांधी की पहल पर बुंदेलखण्ड क्षेत्र को 71000 करोड़ का किसान राहत पैकेज दिया गया था। इसमें 915 करोड़ मध्यप्रदेश के हिस्से में आए थे। प्रदेश में इस राशि की हुर्इ बंदरबांट का ही नतीजा है कि भाजपा के नौ साल के शासन काल में 10800 से भी अधिक किसान आत्महत्या कर चुके हैं। नतीजतन किसान आत्महत्याओं के मामले में मध्यप्रदेश देश में चौथे पायदान पर पहुंच गया है। प्रदेश में प्रतिदिन चार किसान मौत को गले लगा रहे हैं। इन आत्महत्याओं की मुख्य वजह आर्थिक तंगी और कर्ज रही हैं। गौरतलब है कि मध्यप्रदेश भी उसी नक्षेकदम पर चल रहा है, जिस राह पर केंद्र चला और किसान बरबादी के कगार पर पहुंचे।

केंद्र और राज्य एक दूसरे के पूरक होते हैं। एक भी अपने दायित्व निर्वहन की र्इमानदार व सजब भूमिका से विमुख हुआ तो ड़बडि़यां होना तय है। यही कारण है कि कर्ज माफी घोटाले की गंगा सभी नौ राज्यों में बरसात में आर्इ बाढ़ की तरह बही है। बेचारा अन्नदाता, सहमा व दुबका असहाय प्राणी सा कोने में खड़ा दिखार्इ दे रहा है। लिहाजा इस घोटाले की जांच सीबीआर्इ से कराना जरुरी है। चूंकि यह घोटाला नौ राज्यों में फैला है और आपराधिक कदाचरण से जुड़ा है, इसलिए इसकी जांच संसद की लोक लेखा समिति करने में सक्षम नहीं है। पी ए सी से जांच कराकर सरकार असलियत से बचना चाहती हैं।

 

प्रमोद भार्गव

 

1 COMMENT

  1. लगभग छह माह पूर्व थोरियम घोटाले के बारे में अंतरताने पर बहुत कुछ आया. और इसमें देश को लगभग १८० लाख करोड़ के घटे का अनुमान लगाया गया. लेकिन अभी तक न तो किसी ने इसे संसद में उठाया और न ही ‘मेनस्ट्रीम’ मीडिया में ही ये मुद्दा उठा. क्या प्रवक्ता इस बारे में पहल करेगा?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,070 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress