एक बार फिर डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल में बढ़ोतरी कर केंन्द्र सरकार ने मंहगाई डायन को तगडी खुराक देने के साथ ही आम आदमी की रही सही जान निकालने के बाद डीज़ल, रसोई गैस और केरोसिन की कीमतो में कि गई वृद्वि पर रविवार को सार्वजनिक सफाई पेश करत् हुए अपने इस फैसले को जायज ठहराने की झूठी कोशिश की। केंन्द्रीय पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञापन की शक्ल मे अपील देश के सभी प्रमुख समाचार पत्रो में देकर केन्द्र सरकार ने लोगो के दिलो में डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल में बढ़ोतरी से धधक रही आग पर पानी डालने की कोशिश की। सरकार ने सफाई देते हुए कहा है कि पेट्रोलियम उत्पादो के मूल्य वृद्धि से नही बचा जा सकता था। सरकार ने विज्ञापन के द्वारा इस के दस कारण भी गिनाए है। पैट्रोलियम कंपनियो के नुकसान का कर्थित तौर पर रोना रोने वाली कांग्रेस सरकार या प्रधानमंत्री ये नही जानते कि देश की पैट्रोलियम कंपनिया नुकसान में है या चॉदी काट रही है। इन आयल कंपनियो के आंकड़ो पर नजर डाले तो विगत वर्ष ओएनजीसी ने तकरीबन 20 हजार करोड़, इंडियन आयल ने 3 हजार करोड़ और जीएआईएल ने भी लगभग 3 हजार करोड़ का शुद्व मुनाफा अर्जित किया था। गरीबो की सरकार होने का दावा करने वाली केंन्द्र सरकार क्या ये बता सकती है कि हवाई जहाज में प्रयोग होने वाला तेल 59 रूपये लीटर और स्कूटर में प्रयोग होने वाला तेल 68 रूपये लीटर क्यो बिकता है। शायद इस लिये की ये अमीरो के शौक की चीज है। केरोसीन का प्रयोग कितने प्रतिशत अमीर लोग करते है जबकि आज भी गरीबो और गांव की रोशनी का एक मात्र जरिया केरोसीन ही है।
आज बती हुई मंहगाई के कारण जिस देश के हालात ये हो गये हो कि दो वक्त की रोटी पाने के लिये लोग अपना तन, बच्चे, शरीर के अंग, खून तक बेचने लगे हो आखिर उस देश के लोगो को राहत देने के बजाए उसके ही द्वारा चुनी सरकार ने पेट्रो पदार्थो में वृद्धि कर उस की मुश्किलो को और बढ़ दिया है। आदमी आखिर जिये तो जिये कैसे आज देश के आम आदमी के सामाने ये एक बहुत बडा प्रशन बनकर खडा हो गया है। आज देश में भ्रष्टाचार, काला धन इतनी बडी समस्या नही जितनी बडी समस्या गरीब के दो निवालो की है। आम आदमी की सरकार होने का दावा यूपीए का गलत ही नही बल्कि झूठा है। सरकार जिस प्रकार अमीरो के हाथो की कठपुतली और कॉरपोरेट परस्त होती जा रही है वो किसी से छुपा नही है।
आज एक सांसद, सांसद बनने के लिये चुनाव में एक से दो करोड रूपये तक खर्च करता है चुनाव जीतने के बाद कुछ ही दिनो में उस के पास अकूत सम्पत्ती हो जाती है। और वो करोडपति अरबपति बन जाता है। उस के रिश्तेदार भाई बहन सब के सब दौलत से खेलने लगते है ये सब क्या है। आज इन पैसे के लालची सांसदो को वतनपरस्त कतई ना समझा जाये क्यो कि ये सब के सब वेतनपरस्त हो गये है। अब इन सांसदो से देश का विकास नही बल्कि विनाश हो रहा है। 15 वी लोक सभा का हाल देखे तो संसद का हाल बेहाल है। बजट सत्र 22 फरवरी से 7 मई 2010 राज्य सभा और लोक सभा के दोनो सदनो में 385 धंटे की कार्यवाही होनी थी। परन्तु इन दोनो सदनो में 63.4 प्रतिशत समय ही चर्चा हुई। आकंडे कहते है कि 36.6 फीसदी लोकसभा और 72.0 फीसदी चर्चा राज्यसभा में हुई इस प्रकार कुल 115 घंटे जिन में 70 घंटे लोकसभा और 45 घंटे राज्यसभा में मंहगाई, टू जी स्पेक्ट्रम, आवंटन, फोन टेपिग, महिला आरक्षण विधेयक बिल, दंतेवाडा में माओवादी हमला और आईपीएल के विवाद के मुद्दो पर हंगामे की वजह से बर्बाद हुए। लोकतंत्र का मन्दिर मानी जाने वाली हमारी संसद का कीमती वक्त और जनता का लाखो करोड़ो रूपया संसद की कार्यवाही के नाम पर हर वर्ष बर्बाद हो रहा है। आज देश में जो मंहगाई भस्मासुर सा मुॅह फाडे खडी है वास्तव में वो कुछ माननीयो की ही देन है। देश के आम आदमी के विरूद्व इस खतरनाक साजिश में इन माननीयो के साथ सरकार भी बाकायदा शामिल लगती है। आज सरकार ने बाजार पर से अपना नियंत्रण पूरी तरह से खो दिया है जिस कारण आज घरेलू अर्थ व्यवस्था सरकार के नियंत्रण से बाहर होकर बेकाबू हो चुकी है। सटोरिये, दलाल और बिचौलिये आम आदमी का खून चूस रहे है और संसद में हमारे माननीय सांसद मजे उडा रहे है।
आज देश की आबादी 121 करोड है 2010 में इस 121 करोड लोगो में दुनिया के अमीर लोगो की फैहरिस्त में भारत 12वें स्थान पर खडा था। भले ही आज देश में करोडपतियो की संख्या एक लाख 53 हजार हो गई हो पर सरकारी आंकड़े कहते कि मार्च 2011 में गरीबो की संख्या 40.5 करोड हो गई है। यानी आज भी देश में रोज बीस रूपये कमाने वालो की तादात इन लखपतियो के मुकाबले करोडो में है क्या देश का प्रधानमंत्री ये नही जानता। बढती हुई मंहगाई से आज पूरा देश त्राहि त्राहि कर रहा है। वही रोज रोज बढ पेट्रोल के दामो ने आम आदमी का दम निकाल के रख दिया है। सरकार मंहगाई के मुद्दे को लेकर आम आदमी का ध्यान भ्रष्टचार से हटाना चाहती है। वही अन्ना हजारे को भी बाबा रामदेव की तरह अपनी सियासी चालो से चारो खाने चित करना चाहती है। हकीकत यह है कि आने वाले विधान सभा चुनाव में ये मंहगाई कांग्रेस का हाल बिगॉड सकती है किन्तु खूब खाने पीने के इस मौसम में अगर गरीब को ठीक से दाल रोटी भी मय्यसर नही हुई तो देर सवेर उस के स्वास्थ्य पर किस कदर बुरा असर पडेगा गम्भीरता से सोचने वाला प्रशन है लेकिन सरकार और देश के जिम्मेदार प्रधानमंत्री और अर्थशास्त्री खामोश है जबकि इन्हे मालुम है कि गरीब के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य पर भी इस महगॉई का असर पडना है। आज आम आदमी रोज सुबह शाम बती महगॉई से परेशान है ऐसा नही की इस महगॉई की जद में सिर्फ गरीब ही आया है इस महगॉई रूपी ज्वालामुॅखी की तपिश में हर कोई झुलस रहा है छटपटा रहा है खाघान्न, सब्जी ,फल, व तेलो के दाम इस एक साल में लगभग पचास प्रतिशत से अधिक बे है जिस कारण औसतन 25000 हजार की महाना आमदनी वाले परिवारो के मुखिया का परिवार की गाडी खीचते हुए दम फूलने लगे है।
संसद के दोनो सदनो में विगत 17 अगस्त 2010 को सांसदो के वेतनभत्त्ो में बोतरी का मुद्दा पूरे जोर शोर से सभी सांसदो ने संसद में उठाया। पर आज मंहगाई के मुद्दे पर गरीब की आवाज बनने को कोई भी सांसद कोई भी सरकार और कोई भी विपक्षी पार्टी मंहगाई के मुद्दे पर चिंतित नही है हा नूरा कुश्ती खेलने में सरकार और विपक्ष खूब माहिर है। लगभग एक साल से संसद में सरकार, नेता और मंत्री सिर्फ ब्यानबाजी कर रहे है। एक दूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगा रहे है पर अमल कुछ नही हो रहा है। देश की वितरण प्रणाली भ्रष्टाचार की भेंट च गई है खुदरा बाजार में आम आदमी लूटा जा रहा है प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रियो की बुलाई गई दो महत्वपूण बैठको में भी मंहगाई पर अंकुश लगाने के लिये कोई रास्ता नही निकल सका। सिर्फ मनमोहन सिॅह जी संभावना जता कर ही रह जाते है। दरअसल जब जब इन माननीय के भत्तो और सुविधाओ की बात होती है तो सभी पार्टिया एक सुर में सुर मिला देती है उस पर तुरन्त अमल भी हो जाता है। परन्तु देश का आम आदमी चीखते चीखते मर जाता है पर उस की आवाज संसद तक नही पहॅुच पाती।
सरकार ने डीजल़, रसोई गैस और केरोसिन में हुई मूल्य वृद्धि वापस लेने की बात भले ही न की हो, लेकिन राज्य सरकारो को जो उसने पेट्रो पदार्थो पर टैक्स कम करने का जो सुझाव दिया है उस से लगने लगा है कि सरकार अगले वर्ष पंजाब और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधान सभा चुनाव में अपने लिये कुछ गुंजाईश निकालने की कोशिश कर रही है। पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर चारो ओर से घिरी सरकार के लिये मंहगाई के खिलाफ यह जनविरोध कांग्रेस और सरकार के ताबूत में कही आखिरी कील न साबित हो जाय