रामदेव Vs अण्णा, “भगवा” को “गाँधीटोपी मार्का सेकुलरिज़्म” से बदलने की साजिश?? (भाग-1)

सुरेश चिपलूनकर

अक्सर आपने देखा होगा कि लेख समाप्त होने के बाद “डिस्क्लेमर” लगाया जाता है, लेकिन मैं लेख शुरु करने से पहले “डिस्क्लेमर” लगा रहा हूँ –
डिस्क्लेमर :- 1) मैं अण्णा हजारे की “व्यक्तिगत रूप से” इज्जत करता हूँ… 2) मैं जन-लोकपाल बिल के विरोध में नहीं हूँ…

अब आप सोच रहे होंगे कि लेख शुरु करने से पहले ही “डिस्क्लेमर” क्यों? क्योंकि “मीडिया” और “मोमबत्ती ब्रिगेड” दोनों ने मिलकर अण्णा तथा अण्णा की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को लेकर जिस प्रकार का “मास हिस्टीरिया” (जनसमूह का पागलपन), और “अण्णा हजारे टीम”(?) की “लार्जर दैन लाइफ़” इमेज तैयार कर दी है, उसे देखते हुए धीरे-धीरे यह “ट्रेण्ड” चल निकला है कि अण्णा हजारे की मुहिम का हल्का सा भी विरोध करने वाले को तड़ से “देशद्रोही”, “भ्रष्टाचार के प्रति असंवेदनशील” इत्यादि घोषित कर दिया जाता है…

सबसे पहले हम देखते हैं इस तमाम मुहिम का “अंतिम परिणाम” ताकि बीच में क्या-क्या हुआ, इसका विश्लेषण किया जा सके… अण्णा हजारे (Anna Hajare) की मुहिम का सबसे बड़ा और “फ़िलहाल पहला” ठोस परिणाम तो यह निकला है कि अब अण्णा, भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वाले एकमात्र “आइकॉन” बन गये हैं, अखबारों-मीडिया का सारा फ़ोकस बाबा रामदेव(Baba Ramdev) से हटकर अब अण्णा हजारे पर केन्द्रित हो गया है। हालांकि मीडिया का कभी कोई सकारात्मक फ़ोकस, बाबा रामदेव द्वारा उठाई जा रही माँगों की तरफ़ था ही नहीं, परन्तु जो भी और जितना भी था… अण्णा हजारे द्वारा “अचानक” शुरु किये गये अनशन की वजह से बिलकुल ही “साफ़-सूफ़” हो गया…। यानी जो बाबा रामदेव देश के 300 से अधिक शहरों में हजारों सभाएं ले-लेकर सोनिया गाँधी, कांग्रेस, स्विस बैंक आदि के खिलाफ़ माहौल-संगठन बनाने में लगे थे, उस मुहिम को एक अनशन और उसके प्रलापपूर्ण मीडिया कवरेज की बदौलत “पलीता” लगा दिया गया है। ये तो था अण्णा की मुहिम का पहला प्राप्त “सफ़ल”(?) परिणाम…

जबकि दूसरा परिणाम भी इसी से मिलता-जुलता है, कि जिस मीडिया में राजा, करुणानिधि, कनिमोझि, भ्रष्ट कारपोरेट, कलमाडी, स्विस बैंक में जमा पैसा… इत्यादि की हेडलाइन्स रहती थीं, वह गायब हो गईं। सीबीआई या सीवीसी या अन्य कोई जाँच एजेंसी इन मामलों में क्या कर रही है, इसकी खबरें भी पृष्ठभूमि में चली गईं… बाबा रामदेव जो कांग्रेस के खिलाफ़ एक “माहौल” खड़ा कर रहे थे, अचानक “मोमबत्ती ब्रिगेड” की वजह से पिछड़ गये। टीवी पर विश्व-कप जीत के बाद अण्णा की जीत की दीवालियाँ मनाई गईं, रामराज्य की स्थापना और सुख समृद्धि के सपने हवा में उछाले जाने लगे हैं…

अंग्रेजों के खिलाफ़ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम की याद सभी को है, किस तरह लोकमान्य तिलक, सावरकर और महर्षि अरविन्द द्वारा किये जा रहे जनसंघर्ष को अचानक अफ़्रीका से आकर, गाँधी ने “हाईजैक” कर लिया था. न सिर्फ़ हाइजैक किया, बल्कि “महात्मा” और आगे चलकर “राष्ट्रपिता” भी बन बैठे… और लगभग तानाशाही अंदाज़ में उन्होंने कांग्रेस से तिलक, सरदार पटेल, सुभाषचन्द्र बोस इत्यादि को एक-एक करके किनारे किया, और अपने नेहरु-प्रेम को कभी भी न छिपाते हुए उन्हें देश पर लाद भी दिया… आप सोच रहे होंगे कि अण्णा हजारे और बाबा रामदेव के बीच यह स्वतंत्रता संग्राम कहाँ से घुस गया?

तो सभी अण्णा समर्थकों और जनलोकपाल बिल (Jan-Lokpal Bill) के कट्टर समर्थकों के गुस्से को झेलने को एवं गालियाँ खाने को तैयार मन बनाकर, मैं साफ़-साफ़ आरोप लगाता हूँ कि- इस देश में कोई भी आंदोलन, कोई भी जन-अभियान “भगवा वस्त्रधारी” अथवा “हिन्दू” चेहरे को नहीं चलाने दिया जाएगा… अंग्रेजों के खिलाफ़ आंदोलन में जिस तरह तिलक और अरविन्द को पृष्ठभूमि में धकेला गया था, लगभग उसी अंदाज़ में भगवा वस्त्रधारी बाबा रामदेव को, सफ़ेद टोपीधारी “गाँधीवादी आईकॉन” से “रीप्लेस” कर दिया गया है…। इस तुलना में एक बड़ा अन्तर यह है कि बाबा रामदेव, महर्षि अरविन्द (Maharshi Arvind) नहीं हैं, क्योंकि जहाँ एक ओर महर्षि अरविन्द ने “महात्मा”(?) को जरा भी भाव नहीं दिया था, वहीं दूसरी ओर बाबा रामदेव ने न सिर्फ़ फ़रवरी की अपनी पहली जन-रैली में अण्णा हजारे को मंच पर सादर साथ बैठाया, बल्कि जब अण्णा अनशन पर बैठे थे, तब भी मंच पर आकर समर्थन दिया। चूंकि RSS भी इतने वर्ष बीत जाने के बावजूद “राजनीति” में कच्चा खिलाड़ी ही है, उसने भी अण्णा के अभियान को चिठ्टी लिखकर समर्थन दे मारा। ऐसा लगता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अभी भी वह “घाघपन” नहीं आ पाया है जो “सत्ता की राजनीति” के लिये आवश्यक होता है, विरोधी पक्ष को नेस्तनाबूद करने के लिये जो “राजनैतिक पैंतरेबाजी” और “विशिष्ट प्रकार का कमीनापन” चाहिये होता है, उसका RSS में अभाव प्रतीत होता है, वरना बाबा रामदेव द्वारा तैयार की गई ज़मीन और बोये गये बीजों की “फ़सल”, इतनी आसानी से अण्णा को ले जाते देखकर भी, उन्हें चिठ्ठी लिखकर समर्थन देने की कोई वजह नहीं थी। अण्णा को “संघ” का समर्थन चाहिये भी नहीं था, समर्थन चिठ्ठी मिलने पर न तो उन्होंने कोई आभार व्यक्त किया और न ही उस पर ध्यान दिया…। परन्तु जिन अण्णा हजारे को बाबा रामदेव की रैली के मंच पर बमुश्किल कुछ लोग ही पहचान सकते थे, उन्हीं अण्णा हजारे को रातोंरात “हीरो” बनते देखकर भी न तो संघ और न ही रामदेव कुछ कर पाये, बस उनकी “लार्जर इमेज” की छाया में पिछलग्गू बनकर ताली बजाते रह गये…। सोनिया गाँधी की “किचन कैबिनेट” यानी राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (NAC) के “NGO छाप रणबाँकुरों” ने मिलजुलकर अण्णा हजारे के कंधे पर बन्दूक रखकर जो निशाना साधा, उसमें बाबा रामदेव चित हो गये…

मैंने ऊपर “राजनैतिक पैंतरेबाजी” और “घाघ” शब्दों का उपयोग किया है, इसमें कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं कर सकता… अंग्रेजों के खिलाफ़ आंदोलन से लेकर अण्णा हजारे तक कांग्रेस ने “परफ़ेक्ट” तरीके से “फ़ूट डालो और राज करो” की नीति को आजमाया है और सफ़ल भी रही है। कांग्रेस को पता है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया का देश के युवाओं पर तथा अंग्रेजी प्रिण्ट मीडिया का देश के “बुद्धिजीवी”(?) वर्ग पर खासा असर है, इसलिये जिस “तथाकथित जागरूक और जन-सरोकार वाले मीडिया”(?) ने रामलीला मैदान पर बाबा रामदेव की 27 फ़रवरी की विशाल रैली को चैनलों और अखबारों से लगभग सिरे से गायब कर दिया था, वही मीडिया अण्णा के अनशन की घोषणा मात्र से मानो पगला गया, बौरा गया। अनशन के शुरुआती दो दिनों में ही मीडिया ने देश में ऐसा माहौल रच दिया मानो “जन-लोकपाल बिल” ही देश की सारी समस्याओं का हल है। 27 फ़रवरी की रैली के बाद भी रामदेव बाबा ने गोआ, चेन्नई, बंगलोर में कांग्रेस, सोनिया गाँधी और भ्रष्टाचार के खिलाफ़ जमकर शंखनाद किया, परन्तु मीडिया को इस तरफ़ न ध्यान देना था और न ही उसने दिया। परन्तु “चर्च-पोषित” मीडिया तथा “सोनिया पोषित NGO इंडस्ट्री” ने बाबा रामदेव की दो महीने की मेहनत पर, अण्णा के “चार दिन के अनशन” द्वारा पानी फ़ेर दिया, तथा देश-दुनिया का सारा फ़ोकस “भगवा वस्त्र” एवं “कांग्रेस-सोनिया” से हटकर “गाँधी टोपी” और “जन-लोकपाल” पर ला पटका… इसे कहते हैं “पैंतरेबाजी”…। जिसमें क्या संघ और क्या भाजपा, सभी कांग्रेस के सामने बच्चे हैं। जब यह बात सभी को पता है कि मीडिया सिर्फ़ “पैसों का भूखा भेड़िया” है, उसे समाज के सरोकारों से कोई लेना-देना नहीं है, तो क्यों नहीं ऐसी कोई कोशिश की जाती कि इन भेड़ियों के सामने पर्याप्त मात्रा में हड्डियाँ डाली जाएं, कि वह भले ही “हिन्दुत्व” का गुणगान न करें, लेकिन कम से कम चमड़ी तो न उधेड़ें?

अब एक स्नैपशॉट देखें…

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की 4 अप्रैल 2011 को लोकपाल बिल के मुद्दे पर बैठक होती है, जिसमें अरविन्द केजरीवाल, बड़े भूषण, संदीप पाण्डे, हर्ष मन्दर, संतोष मैथ्यू जैसे कई लोग शामिल होते हैं। सोनिया गांधी की इस “पालतू परिषद” वाली मीटिंग में यह तय होता है कि 28 अप्रैल 2011 को फ़िर आगे के मुद्दों पर चर्चा होगी…। अगले दिन 5 अप्रैल को ही अण्णा अनशन पर बैठ जाते हैं, जिसकी घोषणा वह कुछ दिनों पहले ही कर चुके होते हैं… संयोग देखिये कि उनके साथ मंच पर वही महानुभाव होते हैं जो एक दिन पहले सोनिया के बुलावे पर NAC की मीटिंग में थे… ये कौन सा “षडयंत्रकारी गेम” है?

इस चित्र में जरा इस NAC में शामिल “माननीयों” के नाम भी देख लीजिये –

हर्ष मंदर, डॉ जॉन ड्रीज़, अरुणा रॉय जैसे नाम आपको सभी समितियों में मिलेंगे… इतने गजब के विद्वान हैं ये लोग। “लोकतन्त्र”, “जनतंत्र” और “जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों” वाले लफ़्फ़ाज शब्दों की दुहाई देने वाले लोग, कभी ये नहीं बताते कि इस राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को किस जनता से चुना है? इस परिषद में आसमान से टपककर शामिल हुए विद्वान, बार-बार मीटिंग करके प्रधानमंत्री और कैबिनेट को आये दिन सलाह क्यों देते रहते हैं? और किस हैसियत से देते हैं? खाद्य सुरक्षा बिल हो, घरेलू महिला हिंसा बिल हो, सिर पर मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करने सम्बन्धी बिल हो, लोकपाल बिल हो… सभी बिलों पर सोनिया-चयनित यह परिषद संसद को “सलाह”(?) क्यों देती फ़िरती है? या कहीं ऐसा तो नहीं है कि संसद में पेश किया जाने वाला प्रत्येक बिल इस “वफ़ादार परिषद” की निगाहबीनी के बिना कैबिनेट में भी नहीं जा सकता? किस लोकतन्त्र की दुहाई दे रहे हैं आप? और क्या यह भी सिर्फ़ संयोग ही है कि इस सलाहकार परिषद में सभी के सभी धुर हिन्दू-विरोधी भरे पड़े हैं?

जो कांग्रेस पार्टी मणिपुर की ईरोम शर्मिला के दस साल से अधिक समय के अनशन पर कान में तेल डाले बैठी है, जो कांग्रेस पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) के अध्यक्ष की अलग राज्य की माँग की भूख हड़ताल को उनके अस्पताल में भर्ती होने तक लटकाकर रखती है…और आश्वासन का झुनझुना पकड़ाकर खत्म करवा देती है… वही कांग्रेस पार्टी “आमरण अनशन” का कहकर बैठे अण्णा की बातों को 97 घण्टों में ही अचानक मान गई? और न सिर्फ़ मान गई, बल्कि पूरी तरह लेट गई और उन्होंने जो कहा, वह कर दिया? इतनी भोली तो नहीं है कांग्रेस…

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ताजा खबर ये है कि –
1) संयुक्त समिति की पहली ही बैठक में भ्रष्ट जजों और मंत्रियों को निलम्बित नहीं करने की शर्त अण्णा ने मान ली है,
2) दूसरी खबर आज आई है कि अण्णा ने कहा है कि “संसद ही सर्वोच्च है और यदि वह जन-लोकपाल बिल ठुकरा भी दे तो वे स्वीकार कर लेंगे…”
3) एक और बयान अण्णा ने दिया है कि “मैंने कभी आरएसएस का समर्थन नहीं किया है और कभी भी उनके करीब नहीं था…”

आगे-आगे देखते जाईये… जन लोकपाल बिल “कब और कितना” पास हो पाता है… अन्त में“होईहे वही जो सोनिया रुचि राखा…”। जब तक अण्णा हजारे, बाबा रामदेव और नरेन्द्र मोदी के साथ खुलकर नहीं आते वे सफ़ल नहीं होंगे, इस बात पर शायद एक बार अण्णा तो राजी हो भी जाएं, परन्तु जो “NGO इंडस्ट्री वाली चौकड़ी” उन्हें ऐसा करने नहीं देगी…

(जरा अण्णा समर्थकों की गालियाँ खा लूं, फ़िर अगला भाग लिखूंगा…… भाग-2 में जारी रहेगा…)

18 COMMENTS

  1. प्रिय मित्र सुरेश भाई इसमें कुछ टिप्पणीकार ऐसे आ गए हैं जिन्हें कोई भाव नहीं देता, आप भी उनकी परवाह ना करें बल्कि मैं आपका स्वभाव जानता हूँ आपको खिसीयायी बिल्लीयों के शोर से बहुत आनंद प्राप्त होता है इन लोगो के विचारों पर वैसे तो आप कोई टिप्पणी करेंगे नहीं और ना ही इसकी आवश्यकता है, आपका बौद्धिक star इनसे हजारों गुना बेहतर है, इनकों नज़रंदाज़ करते रहिये अपने आप थक कर बैठ जायेंगे, आपका लेख आते ही टिप्पणियों का तांता लग जाता है जो आपकी लोकप्रियता साबित करने के काफी है.आपके अगले लेख का बेसब्री से इंतज़ार है.

  2. सुरेश जी आप की पैनी नज़र से कांग्रेस की चाल छुपी न रही. भोले और साधनहीन अन्ना को इस्तेमाल करके बाबा रामदेव द्वारा देशद्रोहियों के विरुद्ध छेड़े अभियान की हवा निकालने का कांग्रेस का कुटिल प्रयास पूरीतरह सफल होने से बाल-बाल बच गया है. यह हो सका तो केवल आप सरीखे जागरूक लेखकों के कारण. पर जितने तथ्य आपने प्रमाण सहित, क्रमबद्ध ढंग से दिए है उतने शायद ही किसी और ने दिए हों.
    – भारत को बर्बाद करने वाली ताकतों के लिए आज सबसे बड़ी चुनौती बाबा रामदेव हैं. अतः उनके विरुद्ध तो अनेकों प्रकार के प्रहार होने ही हैं. विचित्र है बाबा का भाग्य की जीतनी बार उन पर हमला होता है, वे और अधिक शक्तिशाली होकर उभरते हैं. इस बार भी जैसे-जैसे अन्ना हजारे को इस्तेमाल करने के षड्यंत्र की पोल खुल रही है, वैसे-वैसे बाबा रामदेव में जनता की आस्था पहले से अधिक पक्की होती जा रही है.
    – सुरेश जी आप डटे रहिये, देशभक्त जनता आपके साथ है.

  3. एकदम सटीक लेख के लिए कोटि कोटि धन्यवाद , स्वामी रामदेव कांग्रेस की रणनीति को शायद समझ ही नहीं पाए, लेकिन किसी को अब गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि सच्चाई को जनता से ज्यादा दिन छुपाया नहीं जा सकता है , इस आन्दोलन से हमें इतना समझ में आ गया है कि लोग बड़ा बदलाव चाहते है एक चालू लोकपाल बिल को जनता अस्वीकार कर सकती है ,
    इस बिल कि आड़ में काले धन कि वापसी का मुद्दा भी छुप नहीं सकता है/

  4. एक टिप्पणीकार गाँधी जी ने सेकुलरवादियों के लिए ”शैतान” विशेषण का प्रयोग किया जो की एक ”शैतानी दुष्कृत्य” सा प्रतीत होता है………… चयन जनता को करना है की वो किसी एक वाद में सारी अच्छाइयां खोजती हुई अपनी सीमाओं का सीमांकन करती है या श्रेष्ठता जहाँ से भी मिले (जिसकी सारी संभावनाएं पंथनिरपेक्ष रहकर सब पंथों को एक नजर से देखते हुए सबकी श्रेष्ट्ताओं से लाभ लेने के रूप में देखि जा सकती है) उसको अपनाने हेतु पंथनिरपेक्षता का……….

    इसी लिए न कहा गया है की ”हर आदमी में होते हैं आठ-दस आदमी, जिसको भी देखना हो, कई बार देखना,,…………. नाम में GANDHI लिखने वालों को भी…..

  5. लगता है कि लेखक कांग्रेस के agent हैं. आपको कितना पैसा मिला इस लेख के लिए?

    १. आन्दोलन के सफलता के लिए focus बहुत ज़रूरी है. अभी सबसे ज़रूरी है भ्रष्टाचार को ख़त्म करना और लोकपाल बिल से कुछ आशा है. बाकी मुद्दे बाद मैं उठाये जायेंगे.

    २. रामदेव जी से विनती है की आन्दोलन में फूट ना डाले और आपनी ढपली आपना राग ना गायें. निस्स्वार्थ सेवा का उदहारण बनें.

  6. `चोरों का सरदार और सरदार की सिपहसलार भी भ्रष्टाचार को ‘जड़’ से मिटाना चाहते हैं – भाई किसने रोका है. ……..सच तो यह है ‘चोर ही चौकीदार बने बैठे हैं. ‘ – जे. पी आन्दोलन को भी इन्ही ‘चौकीदारों ने पलीता लगाया था.. देश का मानसिक कुष्ट- रोग तो ये सेकुलर शैतान हैं जिन्होंने गत छह दशक में हिन्दुस्थान को ‘भ्रटोस्थान’ बना डाला है… उतिष्ठकौन्तेय

  7. एकदम सटीक लेख के लिए कोटि कोटि धन्यवाद / स्वामी रामदेव कांग्रेस की रणनीति को शायद समझ ही नहीं पाए, लेकिन किसी को अब गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि सच्चाई को जनता से ज्यादा दिन छुपाया नहीं जा सकता है / इस आन्दोलन से हमें इतना समझ में आ गया है कि लोग बड़ा बदलाव चाहते है एक चालू लोकपाल बिल को जनता अस्वीकार कर सकती है /
    इस बिल कि आड़ में काले धन कि वापसी का मुद्दा भी छुप नहीं सकता है /
    लेख में भाजपा तथा नरेन्द्र मोदी का नाम अखरता है /

  8. लेख अच्छा है इसमें कोई दो राय नहीं है
    भ्रष्टाचारमुक्त हिंदुस्तान भी देश का हर नागरिक चाहता है
    में अन्ना का समर्थक नहीं हूँ और ना ही जन-लोकपाल बिल से मुझे कोई बैर फिर भी मुझे नहीं लगता की बिल पास हो जाने पर भी हम भ्रष्टाचारमुक्त मुक्त हो सकेंगे,
    कई लोगों ने भ्रष्टाचार मिटाने के लिए हो हल्ला किया
    लेकिन उसके पीछे जो राजनेतिक रोटियां सेंकी जाती हैं वो भी किसी से छिपी नहीं हैं
    बाबा रामदेव ने देश के 300 से अधिक शहरों में हजारों सभाएं की भले ही उन्होंने भ्रष्टाचार का मुद्दा सामने रखा हो लेकिन लेकिन उसके पीछे जो बाबा जी का कुर्सी का सपना था वो भी जनता को सीधा सीधा नज़र आ रहा था
    अन्ना ने मुहीम शुरू की, लोगों ने उनका साथ दिया, फिर बाबा जी उसमे सफल क्यूँ नहीं हुए जब दोनों का मकसद एक था
    असल में बाबा जी का मकसद ही कुछ और था
    लेखक महोदय की बहुत बड़ी पीड़ा है की आर एस एस ने भी अण्णा के अभियान को चिठ्टी लिखकर समर्थन दे मारा
    वो उसकी मजबूरी थी क्यूंकि आरएसएस का मतलब तो रास्ट्र की सेवा करने वाला एक मात्र संगठन है ऐसे नेक काम में अगर वो समर्थ नहीं देता तो भई ये तो असंभव है- अब चूकि अन्ना आन्दोलन के हीरो बन चुके थे तो आरएसएस और को ये बात खली क्यूंकि –
    देशहित के सारे काम तो आरएसएस और भाजपा करती है या फिर यूं कहिये की आरएसएस और भाजपा जो करती है वही देशहित होता है
    वो चाहे “गाँधी जी हत्या” हो या फिर “तिरंगे को पैरों तले कुचलना की घटना”
    खैर—चोर-चोर मौसेरे भाई
    अन्ना ने शांति भूषण को चुना था जिसका परिणाम सबके सामने है

    • अकेला जी आपको नाथू राम गोडसे द्वारा लिखी गई किताब गाँधी वध क्यों पढना जरूरी है वैसे तो वो किताब कांग्रेस सर्कार ने पाबन्दी लगाईहै लेकिन अगर आप धुन्देंगे तो आपको मिल जाएगी और रास्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में आप भी उतना ही जानते हो जितना दिग्विजय सिंह बताते है और गाँधी वध के बारे में भी उतना ही जानते हो जितना कांग्रेस के नेटा बताते है इन्द्रा गाँधी की हत्या के बारे में भी और राजीव गाँधी की हत्या के बारे में भी उतना ही जानते हो जितना कांग्रेस बताती है अभी इन बातो का आपको गहन अध्यन करना पड़ेगा फिर आप कुछ टिप्पड़ी करने लायक बनोगे अभी अपने अन्दर ज्ञान समेटो

  9. सुरेश भाई ये बहुत अच्छा किय इस लेख को इधर देकर, अब और ज्यादा लोगों तक सही बात पहुचेगी.

  10. ab Accha likha hai, samajh bhi aata hai, par yeh sara Baba Ramdev ki taraf ja raha hai . is liye zara unbiased ho kar bhi likhiye, main kissee kee tarafdari nahin kar raha hoon, maine to yeh dekha hai jab koyee limelight men aata hai, uske milna kya , response bhee nahin aata hai, sab “arrogance” men doob zaate hain. Ramdev zee ko medical aur magic remedy / ilaaz se phursat leni chahiye or full time politician bane agar khel men rahna hai. Agar yeh teeno mil jayen to Bharat kis tarf jayega is kaa bhi khulasa hona chahiye….

  11. लेखक महोदय को अना हजारे और रामदेव के साथ किसी राजनीतिग्य, खासकर नरेंद्र मोदी के गुणगान और उन्हें अन्ना और रामदेव के साथ जोड़ने से बचना चाहिए था……रामदेव और अन्ना हजारे ऊँची चीज़ हैं……….कमसे कम तीसरे से तो बहुत ही ऊँची……वैसे अगर लेखक का मंतव्य in कमल-dway hetu ”कमल कीचड से ही खिलता है” वाली कहावत से था तो और बात है……..

    शुभकामनाएं

  12. सम्पादक संजीव जी ध्यान दें, पहली बार प्रवक्ता पर कोई सामयिक लेख इतना विचारोत्तेजक और पाक-साफ़ माहौल युक्त पढ़कर संतुष्टि हुई……लेखक के परिचय वाले खंड में लेखक के बारे में राष्ट्रवादी विशेषण प्रयुक्त किया गया है…किन्तु इनका विश्लेषण तो इतना पाक-साफ़ है की इसपे किसी वाद से प्रेरित होकर लिखे जाने के आरोप की गुंजाइश भी नहीं बचती…..

    प्रवक्ता के साथ माननीय लेखक को भी धन्यवाद और शुभकामनाएं…… इसे कहते हाँ निष्पक्ष, नीर-क्षीर विवेकी और अपने में परिपूर्ण पत्रकारिता……आप समझ रहे होंगे न माननीय सम्पादक जी ………पुनः शुभकामनाएं…

  13. I am so glad that there are few people who can see beyond the surface level. In my opinion real heros and leaders of Anti corruption campaign are Baba Ramdev and “Na Loonga, Na lene Doonga” man. Anna Hazare is a nice but incapable man. He can criticize a rotten system very well but I am not sure if he has capability and capacity to create large number people of high character who can drive anti corruption campaign. So he is toyally dependent on self declared heros of the “Civil Society”.

    My feeling is that this Anna Hazare fever has a remaining life of a few more weeks.

    I would like to see more such articles in the mainstream media. It is very important to eductae the “Aam society” because the ‘Civil Society” is out to squeeze the “Aam society” to death.

    My heartful abhinandan for Shri Suresh Chiplunkar for writing such a thoughtful article.
    Ashwani Garg
    Boston, USA

  14. बहुत सुन्दर विश्लेषण … सचाई के साथ ….. आगे और देखने भी मिलेगा कि वही होगा जो सोनिया चाहती है … यानी यह बिल पास नही होगा …

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