अबके दीवाली को जब कसौली के साथ लगते गांव का गंगा कुम्हार अपने गोरू गधे की पीठ पर दीवाली के दीए लाद कालका के बाजार में बेचने गया था तो दीए आढ़ती को बेचने के बाद खुद कालका का बाजार घूमने, घर का जरूरी सामान लेने गधे ये यह कह बाजार हो लिया कि वह पार वाली खाली जगह में अपने बिरादरी के गधों से घंटा भर बतिया ले, चरिया ले ,नेताओं से बचा इधर उधर पड़ा चारा खा ले, उसके बाद गांव को वापस निकलेंगे।
तब गंगे के गधे को मचलते हुए, अपनी बिरादरी के गधों के साथ बातें करते करते पता चला कि यहां से कुछ ही दूरी पर चंडीगढ़ नाम का बहुत प्यारा शहर है। वहां पर नेकचंद गार्डन है, बड़े बड़े फिल्म थिएटर हैं। बाजार इतने बड़े बड़े हैं कि… महीना भर दिनरात घूमते रहो , पर खत्म न हों। वहां फूलों का मेला लगता है। मेले में फूलों की खुशबू का आनंद लेने के लिए बदन पर इत्र छिड़के ऐसी ऐसी सज धज कर गोरियां आती हैं कि उनके बदन की खुशबू से फूल भी आनंदित हो उठते हैं। वहां की सड़कें देखो तो तुम्हारे मालिक की मालकिन के गालों से भी चिकनी चिकनी।
चंडीगढ़ की ऐसी तारीफ सुनने के बाद से जब भी गंगा कुम्हार उसकी पीठ पर बेचने को मिट्टी के बरतन लादता तो बस वह खुजलाते हुए अपने मालिक से एक ही बात पूछता,‘ मालिक! चंडीगढ़ कब चलेंगे?’ गंगे कुम्हार को पता था कि जनता को मनाना आसान होता है, पर गधे को मनाना मुष्किल। एक बार जो गधा बिगड़ गया तो बिगड़ गया। गधे और ढीठ से ढीठ आदमी में बेसिक फर्क एक यही होता है। गंगे कुम्हार ने सोचा कि जो इसकी बात न मानी और किसी दिन मुझसे गुस्से होकर इसने अपनी पीठ पर लादे घड़े गिरा दिए तो बहुत नुकसान होगा। सो जब वह बार बार गधे के एक ही सवाल से तंग आ गया तो उसने एकदिन मुस्कुराते हुए गधे को पुचकराते कहा,‘ तू भी क्या याद रखेगा कि तुझे कोई कुम्हार मालिक मिला है। ठीक है, हम दोनों चंडीगढ़ फूल मेले को चलेंगे,’ अपने मालिक के मुस्कुराते मुंह से यह सुन गधा इतना खुश कि खुशी में बिदकते बिदकते जब उसकी पीठ पर से घड़ों का लादा गिरते गिरते बचा तो गधे ने अपने दोनों कान पकड़ मलिक से माफी मांगी।
……और पिछले इतवार को गंगे ने गधे को नहलाया, उसके शरीर पर हल्दी चंदन के बुरे का लेप लगाया। जब उसे लगा कि गधा चंडीगढ़ के काबिल हो गया है तो उसे लेकर चंडीगढ़ को रवाना हुआ। रूकने का क्या! पड़े रहेंगे जहां रात होगी दोनों।
पहली बार गधा सैर पर निकला था सो उसे खाली पीठ चलना दिक्कत दे रहा था। अतः अपने का अनकंर्फटेबल महसूस करते करते जब गधे को अति हो गई तो उसने अपने मालिक से कहा,‘ मालिक!’
‘ क्या है?’
‘ बुरा न मानों तो मुई पीठ पर एक पत्थर ही रख दो।’
‘क्यों?’
‘देश की जनता और गधे को बिन लदे चलने की आदत नहीं है न,’ उसकी भोली बात सुन गंगा कुम्हार बीड़ी का कश लगाता मन ही मन हंसा। वाह रे गधे! आह री जनता,‘ देख! दो चार दिन नो भार! बस, मजे ही मजे। तुझे भी पता चले कि खाली पीठ चलने पर कैसा महसूस होता है।’
‘पर मालिक, खाली पीठ तो मुझे ऐसा फील हो रहा है ज्यों….’
‘बस, चलता चल, आसपास के नजारों का आनंद लेता। ’
‘ठीक है मालिक…’ गधे ने कहा और अपने मालिक के आगे पीछे होता चलता रहा। रास्ते में जो लोग खाली गधे के साथ कुम्हार को देखते हैरान होते। उन्हें लगता कि या तो गंगा कुम्हार पागल हो गया है या गधा। या फिर दोनों।
रेहड़ी के पास जब गंगा चाय पीने रूका तो रेहड़ी वाले ने गंगे को बन रही चाय में चीनी डालते पूछा ,‘ क्या गधे का इलाज करवाने कालका जा रहे हो?’
‘नहीं, उसे घुमाने चंडीगढ़ ले जा रहा हूं,’ सुन रेहड़ी वाला हंसा तो गंगे को बन रही चाय में उससे एक चमच चीनी ज्यादा पड़ गया।
‘गधा और चंडीगढ़ में?’
‘ क्यों नहीं ? गधा क्या जब अपनी पीठ पर्र इंट रेता ढो चंड़ीगढ़- दिल्ली बसा सकता है तो शहर बसने के बाद चंडीगढ़, दिल्ली सैर करने क्यों नहीं जा सकता ?’ सुन ढाबे वाला चुप हो गया।
जैसे ही कालका से आगे गधे न कदम रखा तो उसकी आंखें चौंधियाने लगीं। हर चीज को गधा होने के बाद भी वह आदमी से अधिक गौर से देखता और हैरान हो जाता। जब वे पिंजौर के बाग के पास पहुंचे तो बड़ा सा गेट देख हैरान होते गधे ने अपने मालिक से पूछा,‘ मालिक! ये बड़ा सा क्या है?’
‘महाराजा का गेट।’
‘अंदर जा सकते हैं क्या?’ कह वह अपनी पूंछ खुजलाने लगा।
‘ नहीं! यहां गधों का प्रवेश बंद है,’ कुम्हार ने खीझ कर कहा तो गधा मन मसोस कर रह गया। तब एकबार फिर उसे अपने गधे होने से घृणा हुई।
ज्यों ही गधा अपने मालिक के साथ चंडी मंदिर से होता हुआ पंचकूला से चंडीगढ़ की ओर लालबत्ती की परवाह किए बिना जाने लगा तो गधे के मालिक ने उसे उसकी पूंछ से जोर से खींच डांटा,‘ गधे, ये क्या कर रहा है?’
‘ क्यों ,क्या हो गया मालिक?’गधे ने लालबत्ती को घूरते पूछा।
‘होना क्या! अभी किसीने रगड़ दिया होता तो? ये तेरा गांव नहीं, चंडीगढ़ है चंडीगढ़। तेरे गांव के रास्ते नहीं कि जहां से मन किया आगे पीछे, दाएं बाएं हो लिए। इतने सालों से मेरे साथ रहने के बाद भी तू तो गधा का गधा ही रहा यार! यहां ज्यादा चुस्त मत बन।’
‘ठीक है मालिक।’ जैसे ही लाल बत्ती हटी गधा सहमा हुआ अपने मालिक का कुरता मुंह से पकड़े उसके पीछे पीछे सड़क पार हो लिया।
चंडीगढ़ में घुसते ही गधा अपने मालिक के पीछे चलता रहा तो मालिक अपने गधे को देखता आगे।
‘ये क्या है मालिक?’
‘ कहां?’
‘ सामने इत्ता बड़ा लोहे का ?’
‘अरे गधे, तूने तो डरा ही दिया था। ये तोप है।’
‘तोप क्या होती है?’
‘दुश्मन पर गोले चलाने के लिए।’
मालिक,आदमी का आदमी दुश्मन भी होता है, आज पता चला। मैं तो आजतक यही सोचता था कि गधे और आदमी के बीच ही दुश्मनी होती है।’
अभी वे बतियाते बतियाते हर चीज को बड़ी गौर से निरखते परखते चल ही रहे थे कि आगे फिर बत्ती। तो बत्ती देख गधे ने अपने मालिक से पूछा ‘, मालिक ! यहां बत्तियां ही हैं या कुछ और भी? जब देखो रास्ते में बत्ती।’
‘हरी है अभी, चल निकल ले।’
और वह मालिक के पीछे पीछे अपनी दुम दबाए। कभी इस ओर से गांड़ियों से बचता तो कभी उस ओर से। उसे लग रहा था कि उसने सबसे बड़ी गलती आज चंड़ीगढ़ घूमने आने को अड़ कर की है।
अभी वे सड़क के बीच में ही थे कि अचानक सामने से बत्ती लाल हो गई। कुम्हार अपने गधे के साथ न आगे न पीछे। वह असमंजस में, अब कहां जाए? जरा रूक कुछ सोचा, फिर उसने तय किया कि जब उसके पीछे की कारों वाले निकल रहे हैं तो वह भी आगे ही निकल जाए। जैसे ही दोनों डरते डरते लाल बत्ती पार हुए कि सामने खड़ी पुलिस की गाड़ी के सामने तनकर खड़े पुलिस वाले ने उन्हें रोकते कहा,‘ चलो ,इधर आ जाओ।’
सुन गधा पुलिसवाले की ओर जाने लगा तो उसके मालिक ने कहा,‘तू रूक । गधा है। मैं देखता हूं।’
‘तो क्या हो गया?’
‘ ये आदमी को गधा ही समझते हैं ऐसे में…’ अपने गधे को किनारे जैसे खड़ा कर कुम्हार पुलिसवाले के पास आ गया।
‘कहो हुजूर!’ कुम्हार ने दोनों हाथ जोड़े कहा ।
‘ आंखें ठीक हैं?’
‘जी साहब! पिछले महीने ही सरकारी फ्री के कैंप में चेक करवाई थीं।’
‘ लाल बत्ती पार की है तुम दोनों ने,’ पुलिसवाला कड़का।
‘साहब जी। बीच में आ गया था। जब सड़क पार कर रहा था तो हरी थी। ऐसे में कहां जाता?कुम्हार ने देखा सामने सरकारी गाड़ी में तीन पुलिसवाले सिर नीचा किए बैठे हैं, शान से।
‘चालान होगा।’
‘किसका?’
‘ तेरा और किसका ?तूने आंखों में धूल झोंकने का अपराध किया है।’
‘ किसकी सर?’
‘पुलिस की! पर तुम नहीं जानते कि पुलिस आंखों पर काला चश्मा भी लगाए रखती है ताकि कोई जब उसकी आंखों में धूल झोंके फिर भी उसकी आंखें धूल से बची रहें। अब चालान हर हाल में होकर रहेगा। पूरे पांच सौ रूपए वाला, ’सुन कुम्हार गधे को मन ही मन जितनी गालियां दे सकता था देने लगा। आज हरामी ने मरवा दी पल भर में छह महीने की मिट्टी बेचने की कमाई।
‘पर साहब जी…’ कुम्हार ने एकबार फिर हाथ जोड़े,पर पुलिसवाला पुलिसवाला ही बना रहा। कुछ देर तक कुम्हार को घूरने के बाद पुलिसवाले ने कुम्हार से पूछा,‘ जीएल है? चल निकाल अपना जीएल।’
‘ अब ये जीएल क्या होता है माई बाप?’
‘जीएल बोले तो गधा लाइसेंस।’
‘ गधा लाइसेंस?’
‘हां! गधा चलाने का लाइसेंस।’
‘ गधा बनाने के लाइसेंस तो बहुतों के पास देखे साहबजी ,पर गधा चलाने का लाइसेंस पहली बार सुन रहा हूं। गधा चलने का भी लाइसेंस होता है साहबजी क्या?
‘ हां। देश में हर चीज को चलाने का लाइसेंस सरकार ने जरूरी कर दिया है। जो बिन लाइसेंस कुछ भी चलाएगा ,वह कानून का घोर अपराधी माना जाएगा। निकाल , गधा चलाने का लाइसेंस?’
‘वह तो नहीं है साहब जी।’
‘मतलब? गैरकानूनी तरीके से गधा चलाते हो और वह भी पुलिस की नाक तले?’
‘सरजी सरजी….’ कुम्हार की हवा सरकी तो पुलिसवाला गांव सेआए कुम्हार का डर भांप गया। उसने अपने हाथ का रूमाल उसकी ओर बढ़ाते कहा,‘ पांच सौ तो लगेंगे ही,’ गंगे कुम्हार को पता न चला कि पुलिसवाला उसकी ओर बार बार रूमाल क्यों कर रहा है? सो उसने उससे कहा,‘ साहब जी! मेरा नाक साफ है। आपका रूमाल और मेरी नाक! माफ करो साहब जी।’
पुलिस वाले ने एकबार फिर आंखों ही आखों उसे समझाते रूमाल उसकी ओर बढ़ाया तो वह फिर बोला,‘ साहब जी! मेर हाथ साफ हैं। मैं इसका क्या करूंगा? ये तो आप जैसों के हाथ में ही सुंदर लगता है साहबजी! अपना रूमाल अपने पास रखो। हमें बख्श दो साहब।’
‘तो इसमें सौ रख इसे मेरे पास चुपचाप पकड़ा दो।तुम्हारा चालान माफ! चार सौ तुम्हारे और सौ हमारे। तुम्हारे चार सौ बचा रहा हूं। पहली बार आए हो दोनेां चंडीगढ़ घूमने क्या?’ पुलिसवाले ने कुम्हार पर अहसान करते कुम्हार से पूछा।
‘हां साहब जी। वह भी इस गधे की जिद्द पर , ’ सौ रूपए में कुम्हार की जान बची। वह पुलिस वाले से उसका रूमाल ले झाड़ियों में गया और उसमें सौ रूपए रख आ गया ,‘ लो साहब जी!’
‘पूरे हैं न?’
‘कसम भगवान की! पूरे दस दस के दस। गिन के देख लो।’
‘आगे लालबत्ती का ध्यान रखना। चार सौ बचा दिए तुम्हारे,’कह पुलिसवाले ने अपनी जेब में रूमाल झाड़ा और अगले शिकार के इंतजार में हाथ में रूमाल लिए अपनी ड्यूटी पर पूरी ईमानदारी से छाती चौड़ा कर खड़ा हो गया।
‘ये फूल मेला किस ओर होगा साहब जी?’ कुम्हार ने गधे की पूंछ पकड़ पुलिसवाले से पूछा पर वह तो अपनी ड्यूटी पर तैनात था, इसलिए चुप रहा।
थोड़ी देर तक चुपचाप आगे पीछे , पीछे आगे चलते रहने के बाद गधे ने अपने मालिक से कहा,‘ मालिक!’
‘ क्या है?’
‘एक बात कहूं?’
‘ बक।’
‘ इस देश से कानून तो क्या, भगवान भी करप्शन नहीं मिटा सकते। ’
हाउसिंग बोर्ड चौक के पास पहुंचने पर अचानक गधे ने मालिक से दबी जुबान में कहा,‘ मालिक!’
‘अब क्या है? चुपचाप नहीं देख सकता सकता सब?’
‘ पेट में मरोड़ फिर रहा है। रूका नहीं जा रहा। लीदिया दूं क्या ?’ गधे ने बुरा सा मुंह बनाते मालिक से पूछा तो गंगे कुम्हार ने गधे को अपनी जेब कसकर पकड़ने के बाद डांटते कहा,‘ रोके रख, सौ तो वहां मर गए। अब जो कुछ भी करना, घर जाकर ही करना। गधे, इत्ते साफ शहर को अब और गंदा करेगा क्या?’
अशोक गौतम