धरातल से रसातल की तरफ भू-जल श्रोत

under ground waterविश्व पृथ्वी दिवस पर विशेष लेख –

अशोक बजाज

आज समूचा विश्व भीषण जल संकट के दौर से गुजर रहा है. किसी को जल में डूबने का संकट है तो किसी को सूखने का संकट है. विज्ञान के असंयमित उपयोग, दिशाहीन जीवन शैली तथा गलत प्राथमिकताओं के चलते प्रकृति का संतुलन बिगड़ चुका है . जो ना केवल मनुष्य अपितु समस्त जीवों के लिए कष्टकारी हो गया है. वैश्विक तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहें है जिससे समुद्र की जल सतह बढ़ रही है, परिणाम स्वरुप समुद्र के तटीय इलाके डूब रहें है अथवा डूबने की कगार पर है. अभी तक ना जाने कितनी बस्तियों, शहरों और द्वीपों को समुद्र ने निगल लिया है. दूसरी ओर पेयजल एवं निस्तारी जल की कमी से अधिकांश इलाकों में त्राहि-त्राहि मची हुई है. एक एक बूँद पानी के लिए द्वंद चल रहा है. धीरे धीरे जल संकट विकराल रूप धारण करते जा रहा है. धरती की सतह पर मौजूद ताल-तलैय्या , नदी-नाले एवं अन्य जल श्रोत सूखते ही जा रहें है. धरती की कोख भी जल विहीन होकर सूखती जा रही है क्योंकि पानी के लिए हमने पृथ्वी को गोद-गोद कर छलनी कर दिया है. परिणामस्वरुप भू-जल श्रोत धरातल से रसातल की तरफ अग्रसर हो गया है.

ब्रम्हांड में उपलब्ध कुल पानी का 97 प्रतिशत हिस्सा समुद्र में है जो कि खारा होने के कारण अनुपयोगी है, 2 प्रतिशत ग्लेशियर के रूप में पृथ्वी में आच्छादित है जबकि मात्र 1 प्रतिशत जल नदियों, तालाबों, बांधों एवं झीलों के अलावा भूगर्भ में है. यानी समुद्रीय जल के अलावा अन्य जल श्रोतों में संग्रहित जल और भूजल की मात्रा केवल एक प्रतिशत ही है. एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1820 क्यूबिक मीटर है जो 2050 में घटकर 1140 क्यूबिक मीटर हो जायेगी. यानी वर्तमान में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन पानी की उपलब्धता मात्र 50 लीटर है जबकि औसत व्यक्ति प्रतिदिन चाहे निस्तारी के रूप में हो चाहे उर्जा के रूप में इससे कई गुणा पानी का इस्तेमाल करता है. भारत जैसे विकासशील देशों में रहने वाले लोग अपने लिए उपलब्ध पानी का उपयोग केवल नहाने में ही खर्च कर डालते हैं, शाॅवर से नहाने वाले लोग एक बार नहाने में लगभग 200 लीटर पानी का उपयोग करते हैं. जबकि उनके लिए प्रतिदिन मात्र 50 लीटर पानी उपलब्ध है इसमें खाद्यान्न एवं बिजली के उत्पादन से लेकर निस्तारी एवं पेयजल के लिए उपयोग किये जाने वाले जल भी शामिल है. यानी हर व्यक्ति उपलब्धता से कहीं अधिक बल्कि कई गुणा ज्यादा जल का इस्तेमाल कर रहा है. सन 2050 के आते-आते प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता घटकर मात्र 31 लीटर रह जायेगी.
तापमान बढ़ने से ग्लेशियर के पिघलने की मात्रा बढ़ गई है, गंगोत्री का ग्लेशियर पिघलकर प्रतिवर्ष 20 मीटर पीछे खिसक रहा है. फलस्वरूप समुद्रीजल की सतह उपर होती जा रही है जो तटीय इलाके के जनजीवन के लिए संकट का कारण बनी हुई है. अनेक बड़े शहरों के समक्ष जल प्लावन का खतरा मंडरा रहा है. मालद्वीप की तरह अनेक देश अपना अस्तित्व बचाने के लिए संधर्ष कर रहे हैं तथा दुनियाभर से गुहार लगा रहे हैं . यदि यही आलम रहा तो समूचा मालद्वीप भविष्य में समुद्र में समा जायेगा. भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थित ‘न्यू-मूर’ द्वीप जो 9 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला था, पूरी तरह समुद्र में समा चुका है. वर्ष 1954 के आंकड़ों के अनुसार न्यू-मूर द्वीप की समुद्र तल से उंचाई 2-3 मीटर थी लेकिन इसे नहीं बचाया जा सका. दुनियाभर में ऐसे अनेक द्वीप, शहर, गाँव एवं बस्तियां है जो समुद्र में समा कर केवल इतिहास के पन्नों में सिमट जायेंगें.
मनुष्य ने अपने तनिक स्वार्थ के लिए समूचे चराचर को खतरे में डाल दिया है. पिछले कुछ वर्षो में पृथ्वी में मौजूद विभिन्न संसाधनों का अनियमित एवं बेतहाशा दोहन होने से जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो गई है. जो आज समस्त प्राणियों के लिए कष्ट का कारण बन गई है. बूँद बूँद पानी के लिए आदमी मारा मारा फिर रहा है. चहुँओर पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई है अधिकांश स्थानों में खून खराबे की नौबत आ चुकी है. पानी की समस्या हमें तृतीय विश्व युद्ध की ओर धकेल ढकेल रही है. अतः समय रहते हमें जागना होगा. जल व उर्जा की बचत हमें इस परेशानी से काफी हद तक मुक्ति दे सकती है. परम्परागत उर्जा के बजाय पवन उर्जा एवं सौर उर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देकर तथा अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर हम इस कष्ट को ख़तम तो नहीं पर कम जरुर कर सकते है. इस समस्या का कारक और निवारक मनुष्य ही है . अतः मनुष्य को चाहिए कि वह प्रकृति से खिलवाड़ करना बंद कर अपनी कार्यशैली को प्रकृति के अनुरूप बनाये तभी पृथ्वी को बचाया जा सकेगा.

– अशोक बजाज

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