खेलों में बढ़ती डोपिंग प्रवृति

श्याम नारायण रंगा ‘अभिमन्यु’

जब से मानव सभ्यता अस्तित्व में आई है तब से खेलों का प्रादुर्भाव हुआ है। मानव ने अपने अस्तित्व के साथ साथ ही अपने मनोरंजन के साधनों का विकास कर लिया था। खेल मानव के मनोरंजन के साधनों में से महत्वपूर्ण साधन है। पुराने जमाने में मल युद्ध, तलवारबाजी, भालों का प्रदर्शन, आखेट आदि खेलों के साधन थे। इनसे राजा महाराजाओं सहित आम जन का मनोरंजन भी होता था और खिलाड़ियों की आजीविका भी चलती थी। इन खेलों से मनुष्य का शरीर वज्र सा कठोर हो जाता है और मनुष्य के जीवन अनुशासन भी आता है क्योंकि अनुशासन के बिना खेलों की कल्पना करना व्यर्थ है। खिलाड़ी मतलब ही अनुशासित सिपाही से लगाया जाता है। इस प्रकार अगर हम कहें कि खेल मनुष्य के जीवन का आधार आदि काल से रहा है तो अतिश्योक्ति न होगी। वर्तमान में भी काफी तरह के खेल प्रचलित हैं जैसे फुटबॉल, क्रिकेट, टेनिस, तीरंदाजी, एथलेटिक्स, शतरंज आदि आदि। यह खेलों का महत्व का ही प्रभाव है कि प्रत्येक देश ने किसी न किसी खेल को अपना राष्ट्रीय खेल अवश्य घोषित कर रखा है जैसे भारत का राष्ट्रीय खेल है हॉकी।

मानव जीवन का इतना महत्वपूर्ण अंग होने के बावजूद वर्तमान परिस्थितियों पर नजर दौड़ाई जा तो यह देखने को मिलता है कि खेल व खिलाड़ियों के स्तर में निरन्तर गिरावट आती जा रही है। वर्तमान में खेलों के बिगड़ते स्वरूप के लिए अनुशासनहीनता व डोपिंग की प्रवृति महत्वपूर्ण कारण है। खेलों में बढ़ती नशावृत्ति अत्यन्त चिंता का विषय है। खिलाड़ी खेलने से पहले या खेल के वक्त नशे का प्रयोग कर लेता है और जीतने की कोशिश करता है। शरीर की ताकत को तात्कालिक तौर पर बढ़ाने वाली इन दवाईयों पर अंतर्राष्ट्रीय खेल संघों ने प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन नियम कानूनों को दगा बताकर ये खिलाड़ी इन दवाईयों का प्रयोग करते हैं और पदक की दौड़ में शामिल होते हैं। बहुत बार ये खिलाड़ी इन दवाईयों के सेवन से पदक प्राप्त कर लेते हैं परन्तु बाद में पता चलता है कि अमुक खिलाड़ी ने नशा लेकर खेल में हिस्सा लिया था और पदक प्राप्त किया है। खिलाड़ी का ये कृत्य लाखों खेल प्रेमियों पर वज्रपात करता है और खेल प्रेमियों की भावनाओं को चोट पहुचती है। जिस देश और देशवासियों ने अपने खिलाड़ी को पदक जीतने पर सर ऑंखों पर बिठाया था उसी के बारे मेें जब डोपिंग का पता चलता है तो ऐसे देश व देशवासियों का सर शर्म से झुक जाता है।

किसी भी खिलाड़ी को, चाहे वह किसी भी देश का हो, यह नहीं भूलना चाहिए कि खेलों के साथ लाखों लोगों की भावनाए जुड़ी होती है और वह खिलाड़ी सिर्फ खुद को ही प्रस्तुत नहीं करता है बल्कि वह अपने देश व देश के लाखों करोड़ों लोगों का प्रतिनिधि बनकर किसी खेल में हिस्सा लेता है। डोपिंग के कारण देश व देशवासियों की आन बान व शान खराब होती है। डोपिंग की प्रवृत्ति से आज खेल का कोई भी स्तर बाकी नहीं रहा है। लोकल खिलाड़ीयों से लेकर ओलम्पिक व विश्व कप जैसे स्तर तक डोपिंग प्रवृति अपने पॉंव पसार चुकी है। हाल ही भारत में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ खेलों में खिलाड़ियों ने पदक प्राप्त किए और अब पता चल रहा है कि इनमें से कुछ खिलाड़ी नशे की प्रवृत्ति के शिकार थे और अब इनके देश व देशवासियों को शर्म का सामना करना पड़ रहा है कि उनका हीरो अब जीरो हो गया है। कईं पुराने खिलाड़ी आज यह स्वीकार करते हैं कि उनके समय भी इस तरह की प्रवृत्ति थी मतलब यह कि काफी पुराने समय से डोपिंग प्रवृत्ति खेलों में रही है। इतना ही नहीं ऐसे खेल जिसमें पशुओं का प्रयोग होता है उनमें पशुओं को भी अफीग गांजा जैसे नशे का सेवन करवा दिया जाता है। वास्तव में यह सब करना वास्तविक खेलों की निशानी नहीं बल्कि खेल के साथ मजाक है। खेलों की यह डोपिंग प्रवृत्ति खिलाड़ीयों के नैतिक पतन की द्योतक है। कम समय में जल्दी व ज्यादा प्राप्त करने की ललक से इस प्रवृत्ति को बढ़ावा मिल रहा है। ज्यादा खतरनाक बात तो यह है कि इन खेलों की कोच भी इस प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में शामिल है। नशे की यह प्रवृत्ति अंततः खिलाड़ियों के शरीर को भी नुकसान पहुचती है। मेरी नजर में ऐसा व्यक्ति नशेड़ी से ज्यादा कुछ नहीं है जिसने धोखे में रखकर खेलों में पदक प्राप्त किया और अपने देश का नाम खराब किया।

अगर खेल व खिलाड़ियों के स्तर को बनाए रखना है तो इस प्रवृत्ति को त्यागना होगा और यह तभी सम्भव है जब एक खिलाड़ी खेल की भावना से मैदान में उतरे और खेल को खेल की नजर से देखें और अपने प्रतियोगी से स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रखे।

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