जावेद अनीस
विकास तथा पर्यावरण के बीच संतुलन आज मानवता के लिये सबसे बड़ी चुनौती है, दुनिया भर में विकास के ऐसे मॉडल की मांग बढ़ रही है जो पर्यावरण को नुकसान पहुचांये बिना ही हमारी मौजूदा आवश्यकताओं को पूरा कर सके। भारत दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है लेकिन हम अपने उर्जा जरूरतों के लिये अभी भी प्रमुख रूप से कोयले,पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैसों और तेल पर ही निर्भर हैं जिसकी अपनी सीमायें हैं, एक तो महंगी होने की वजह से सभी तक इनकी पहुँच नहीं है, दूसरा इनसे बड़ी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन होता है, इसके साथ ही ये विकल्प टिकाऊ भी नहीं है, जिस रफ्तार से ऊर्जा के इन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा उससे वे जल्द खत्म हो जायेंगी और इन्हें दोबारा बनने में सदियां लग जायेंगी। इसका प्रभाव पर्यावरण के साथ-साथ भावी पीढ़ियों पर भी पड़ना तय है। ऐसे में ऊर्जा के नये विकल्पों की तरफ बढ़ना समय की मांग है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर लगाम लग सके और सभी लोगों तक सस्ती और टिकाऊ ऊर्जा की पहुँच बनायी जा सके।
“सतत् विकास लक्ष्य” (एसडीजी) की अवधारणा में भी पर्यावरण संरक्षण की इन चिंताओं को शामिल किया गया है। एसडीजी में पर्यावरण संरक्षण को आर्थिक विकास का अंग माना गया है, सतत् विकास का सातवाँ लक्ष्य है सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय, टिकाऊ और आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना। जिसका मकसद है 2030 तक सभी को स्वच्छ उर्जा स्रोतों के ज़रिये सस्ती बिजली उपलब्ध कराना। विश्व की करीब सवा अरब आबादी अभी भी बिजली जैसी बुनियादी जरूरत से महरूम है ऐसे में सस्ती और टिकाऊ ऊर्जा को नये लक्ष्यों में शामिल किया जाना बहुत प्रासंगिक है।
लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना आसान भी नहीं है। नीति आयोग के अनुसार भारत में करीब 30 करोड़ लोग अभी भी ऐसे हैं जिन तक बिजली की पहुँच नहीं हो पायी है। सितंबर, 2015 को केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल द्वारा‘स्वच्छ पाक ऊर्जा और विद्युत तक पहुँच” राज्यों का सर्वेक्षण’ रिपोर्ट जारी किया गया था। इस सर्वेक्षण में 6 राज्यों (बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल) के 51 जिलों के 714 गांवों के 8500परिवार शामिल किये गये थें। रिपोर्ट के अनुसार इन राज्यों में 78% ग्रामीण आबादी भोजन पकाने के लिए पारंपरिक बायोमास ईंधन का उपयोग करती है और केवल 14% ग्रामीण परिवार ही भोजन पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग करते हैं।
दरअसल ऊर्जा नवीकरण के क्षेत्र में भारत अभी शुरूआती दौर में है हालांकि नीति आयोग ने उम्मीद जतायी है कि चूंकि अक्षय ऊर्जा स्रोतों की कीमत कम हो रही है जिससे सभी को सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा पहुँच के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सकती है। वर्तमान में हमारे देश में नवीकरणीय ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों के माध्यम से लगभग 50 गीगावॉट बिजली पैदा की जाती है जिसे 2022 तक 100 गीगावॉट यानी दुगना करने का लक्ष्य रखा गया है.
इधर केंद्र सरकार का ज़ोर भी ग्रामीण क्षेत्रों में सभी को एलपीजी कनेक्शन और बिजली उपलब्ध कराने के लिये ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ और “प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना” जैसी योजनाओं की शुरुआत की गयी है। उज्ज्वला योजना की शुरुआत तीन सालों में पांच करोड़ गरीब महिलाओं को रसोई गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से की गयी है, इसका मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में खाना पकाने के लिए एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देना है जिससे लकड़ी और उपले जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन के उपयोग को कम किया जा सके। इसी तरह से ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ के तहत 31 मार्च 2019 तक तक भारत के हर घर को बिजली उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया है। इस दिशा में सौर उर्जा एक अच्छा विकल्प हो सकता है। हमारा देश सौर उर्जा के उत्पादन के लिए एक आदर्श स्थल है क्योंकि हमारे यहाँ साल भर में 250 से 300 दिनों तक सूरज की पर्याप्त रोशनी उपलब्ध है।
मध्यप्रदेश प्राकृतिक संसाधनों के मामले में बहुत धनी है । यहाँ नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा स्रोतों की अपार संभावनाएँ मौजूद हैं। जिसपर ध्यान देने की जरूरत है। मध्य प्रदेश जलवायु परिवर्तन कार्य योजना पर काम शुरू करने वाले शुरआती राज्यों में से एक है जिसकी शुरुआत 2009 में की गयी थी, साल 2010 में मध्यप्रदेश में नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा विभाग के रूप में एक स्वतंत्र मंत्रालय का गठन किया गया जिसके बाद से प्रदेश में नवकरणीय ऊर्जा के विकास का रास्ता खुला है। वर्तमान में नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में कुल 3200 मेगावॉट ऊर्जा का उत्पादन किया जा रहा है। देश की सबसे बड़ी 130 मेगावॉट की सौर परियोजना नीमच जिले में स्थापित की जा चुकी है।इस साल अप्रैल में मध्यप्रदेश सरकार ने तीन निजी कंपनियों के साथ मिलकर रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट पर अनुबंध किया है इसके तहत करीब 5,000 करोड़ की लागत से 750 मेगावॉट की उत्पादन क्षमता का सौर ऊर्जा संयंत्र लगाया जायेगा। सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि इस सोलर प्लांट से 2 रुपए 97 पैसे के टैरिफ पर बिजली मिलेगी। इसके 2018 के अंत तक शुरू हो जाने की सम्भावना है .
ऊर्जा के नये विकल्पों की तरफ बढ़ना समय की मांग है जिससे प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध दोहन पर लगाम लग सके और सभी लोगों तक सस्ती और टिकाऊ ऊर्जा की पहुँच बनायी जा सके। एसडीजी 7 इस बात की वकालत करता है कि ऊर्जा क्षेत्र में नवीकरणीय ही एकमात्र रास्ता है जिससे भविष्य को नुकसान पहुचाये बिना तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सकता है। यह आर्थिक विकास तथा पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन की मांग करता है। निश्चित ही भारत जिस गति से इस ओर प्रयास कर रहा है आशा है लक्ष्य तक पहुंचने में सफलता ज़रूर मिलेगी।