नयनों में छायी तृष्णा,
सूनापन मन के जज्बातों पर,
धीरे-धीरे सीख गये हम,
हसना झूठी बातों पर,
कपट भरी इस दुनिया में,
रिश्तों को बटते देखा हमने,
प्रेम की माला का मोती,
एक-एक कर झरते देखा हमने,
कल तक जो सब अपने थे,
वो आज बेगाने लगते हैं,
प्यार भी बंटकर रह गया,
बस अवसर के अनुपातों पर,
धीरे-धीरे सीख गये हम,
हसना झूठी बातों पर,
देखा हमने,
औरों की पीड़ा पर,
लोगों को खुश होते,
अपने हित की खातिर,
दूजों के पथ में कंटक बोते,
पावन-सरस वैदेही को,
जीवन के दुःख सहते,
प्रेम-दीवानी मीरा को,
विष की हाला पीते,
निष्ठुर इंसानी दुनिया की,
निर्मम इन सौगातों पर,
धीरे-धीरे सीख गये हम,
हसना झूठी बातों पर I