हे स्पीड प्रेमी बाइकरों… राहगीरों पर रहम करो…!!


तारकेश कुमार ओझा
हे स्पीड प्रेमी बाइकरों… खतरों से खेलने पर आमादा नौजवानों। प्लीज हम
राहगीरों पर रहम करो। क्या गांव और क्या शहर  क्या चौक – चौराहा। हर सड़क
पर आपका ही आतंक पसरा है। बेहद जरूरी कार्य से निकले शरीफ लोग भले ही
पुलिसकर्मियों की नजरों में आ जाए, लेकिन पता नहीं आप लोगों के पास ऐसा
कौन सा जादुई चिराग अथवा कोई गुप्त शक्ति है कि आप चाहे जितना आतंक
फैलाते सड़क पर बाइक दौड़ाएं, लेकिन आप लोगों का बाल भी बांका नहीं होता।
क्या पता पुलिस वाले भी आपसे डरते हों। इसलिए बाइकों की कानफोड़ू आवाज
सुनते ही कहीं दुबक जाते हों कि कौन चालान काटने के झंझट में पड़े। लेकिन
यहां बात आपकी बहादुरी की नहीं हो रही है। मसला है आम राहगीरों की
सुरक्षा का। क्योंकि रोमांच के तूफान में बाइकों के साथ आप जैसे सड़कों
पर यूं चौकड़ी भरते  फिरते  हैं कि लगता है दिल का दौरा पड़ जाएगा। पता
नहीं आप लोगों को कहीं पहुंचने की इतनी क्या जल्दी रहती है। क्या पता
आपके स्पीड प्रेम से आपके परिजनों को कोई फर्क पड़ता है या नहीं । वे आप
लोगों को घर में डांटते – फटकारते हैं या नहीं। लेकिन सड़कों पर साइकिल
या पैदल चलने वालों के लिए तो आप जैसे बाइकर्स बिल्कुल यमदूत सरीखे  हैं।
आप लोगों को शायद पता न हों कि आपकी स्पीड की कीमत चुकाने वालों को क्या
– क्या झेलना पड़ता है। जो सीधे परलोक चले गए वे तो फिर भी खुशकिस्मत कहे
जाएंगे जिन्हें अंतिम ही सही लेकिन इलाज के दौरान मौत का भारी खर्च वहन
नहीं करना पड़ा। अन्यथा आपके रोमांच की अस्पतालों के बेड पर सालों पड़े –
पड़े कीमत चुकाने वालों के लिए जिंदगी मौत से भी बदतर साबित होती है।
मैने ऐसे कई बदनसीबों को देखा है। जो जीवन भर के लिए अपाहिज हो गए। महज
आप जैसों की एक सनक के चलते। जिंदगी बोझ बन गई पीड़ित और उनके परिजन
दोनों के लिए । क्योंकि वह जमाना तो अब रहा नहीं कि बच्चे जमीन पर धड़ाम
से गिरे तो बड़े बोल पड़ते… कोई बात नहीं … बच्चा मजबूत बन रहा है।
अब तो मजाक में हुई धक्कामुक्की का परिणाम भी डिजीटल एक्सरे और बोन
फ्रैक्चर के तौर पर सामने आता है। फिर लगाते रहिए  हाथ में एक्सरे
रिपोर्ट की पॉलीथीन थामे विशेषज्ञ चिकित्सक के क्लीनिक के चक्कर। मामला
अगर बाइक से जोरदार या हल्की टक्कर का  भी हो तो यह  पीड़ित और उसके
समूचे परिवार के लिए  वज्रपात के समान होता है। देश – प्रदेश की छोड़ भी
दें तो बेकाबू बाइक की चपेट में आकर दो – एक मौत के मामले तो अपने आस –
पास ही सुनाई देते हैं। ऐसी दुखद घटनाओं से मैं सोच में पड़ जाता हूं कि
यदि एक सीमित क्षेत्र का आंकड़ा यह है तो समूचे देश में यह संख्या कहां
जाकर रुकती होगी।  बेकाबू बाइकरों के रोमांच की भारी कीमत चुकाने वालों
में अपने कई प्रिय भी शामिल रहे हैं। एक परिचित रात में दुकान बंद कर घर
लौट रहे थे । रास्ते में तेज गति के दीवाने बाइकर ने उन्हें ऐसी टक्कर
मारी कि होश में आने पर खुद को अस्पताल में पाया। लंबा इलाज चला, लेकिन
पूरी तरह से कभी स्वस्थ नहीं हो सके। एक और परिचित बुजुर्ग की त्रासदी और
भी भयावह रही। दरअसल कई साल पहले वे हादसे में बाल – बाल बचे थे। जिसका
उन्हें आजीवन सदमा रहा। एक बार स्कूटी चलाते समय तेज गति से भाग रही बाइक
की कर्कश आवाज ने उन्हें विचलित कर दिया जो उनके दिल के दौरे का कारण बन
गया।  आखिरकार उनकी मौत हो गई। मन – मस्तिष्क में न जाने ऐसे कितने
किस्से उमड़ते – घुमड़ते रहते हैं। खास पर्व – त्योहारों  पर स्पीड
प्रेमी बाइकरों का उत्पात इतना बढ़ जाता है कि वे मुझे गब्बर सिंह जैसे
डरावने लगने लगते हैं। शोर – शराबे के बीच बाइकरों की हुल्लड़ की आवाज
कान में सुनाई देते ही मैं अपनी खटारा साइकिल समेत सहम कर सड़क के किनारे
खड़े हो जाता हूं। तब तक जब कि उनकी आवाज सुनाई देनी बंद नहीं हो जाती।
सुना है लड़कपन में नौजवानों के शरीर में कुछ ऐसा केमिकल लोचा होता है जो
उन्हें ऐसे जोखिमपूर्ण कार्य करने को उकसाता है, लेकिन फिर भी स्पीड
प्रेमी बाइकरों से रहम की अपील तो की ही  जा सकती है।
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पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ हिंदी पत्रकारों में तारकेश कुमार ओझा का जन्म 25.09.1968 को उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में हुआ था। हालांकि पहले नाना और बाद में पिता की रेलवे की नौकरी के सिलसिले में शुरू से वे पश्चिम बंगाल के खड़गपुर शहर मे स्थायी रूप से बसे रहे। साप्ताहिक संडे मेल समेत अन्य समाचार पत्रों में शौकिया लेखन के बाद 1995 में उन्होंने दैनिक विश्वमित्र से पेशेवर पत्रकारिता की शुरूआत की। कोलकाता से प्रकाशित सांध्य हिंदी दैनिक महानगर तथा जमशदेपुर से प्रकाशित चमकता अाईना व प्रभात खबर को अपनी सेवाएं देने के बाद ओझा पिछले 9 सालों से दैनिक जागरण में उप संपादक के तौर पर कार्य कर रहे हैं।

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