स्वास्थ्य बनाम स्वादः समोसा और जलेबी से सावधान!

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-ललित गर्ग-

भारत जैसे विविधताओं वाले देश में जहां हर नुक्कड़ पर समोसे की महक और जलेबी की मिठास लोगों को आकर्षित करती है, वहीं यह स्वादिष्ट व्यंजन अब स्वास्थ्य के लिए खतरे की घंटी बनते जा रहे हैं। हमारी परंपराओं और खानपान में गहराई से जुड़े समोसा, कचोरी और जलेबी जैसे तली-भुनी और अत्यधिक मीठी चीजें अब मोटापा, मधुमेह, हृदय रोग और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों का प्रमुख कारण बन गई हैं। इन्हीं कारणों से देशभर में एक जागरूकता अभियान शुरू करने की आवश्यकता को महसूस करते हुए जनजागृति अभियान शुरु हुआ है। तले हुए व्यंजनों के उपभोग को कम करने की दिशा में किया जा रहा यह प्रयास सराहनीय एवं बढ़ती स्वास्थ्य चिन्ताओं को देखते हुए क्रांति का शंखनाद है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिट इंडिया अभियान के तहत तेल और चीनी का उपभोग कम करने का आह्वान किया था। केन्द्र सरकार की सक्रियता से जैसे सिगरेट के पैकेट पर स्वास्थ्य चेतावनी होती है, ठीक वैसी ही चेतावनी इन तैलीय और मीठे खाद्य पदार्थों के बारे में जारी होगी। बड़े पैमाने पर इस बात का प्रचार रेडियो एवं अन्य टीवी चैनलों के माध्यमों से किया जा रहा है कि तैलीय या जरूरत से ज्यादा मीठे खाद्य पदार्थों के उपभोग से दूर रहा जाए।
मोटापे एवं अन्य असाध्य बीमारियों की गंभीर स्थिति से जुड़े चौंकाने वाले तथ्य चिन्ताजनक है। स्वास्थ्य विशेषज्ञ चीनी और ट्रांस वसा को मोटापा, मधुमेह, उच्च रक्तचाप और हृदय रोग के मुख्य कारणों में गिनते हैं। भारत में हर 5 में से 1 व्यक्ति मोटापे का शिकार है, और इसके पीछे मुख्य कारण अत्यधिक तला-भुना भोजन है। दुनिया में मोटापे के मामले में भारत दूसरे नम्बर पर है। डब्लूएचओ के अनुसार, भारत में डायबिटीज के मरीजों की संख्या 2045 तक 13.4 करोड़ तक पहुंच सकती है, जो दुनिया में सबसे अधिक होगी। बच्चों में बढ़ती मोटापे की दर का एक बड़ा कारण स्कूलों के आसपास मिलने वाले समोसा, कचोरी, बर्गर जैसी चीजें हैं। समोसा और कचोरी जैसी चीजों को बार-बार एक ही तेल में तला जाता है, जिससे उसमें ट्रांस फैट और कैंसरकारी तत्व (ऐक्रिलामाइड) पनपने लगते हैं। ये हृदय की धमनियों को सख्त कर देते हैं और कोलेस्ट्रॉल बढ़ाते हैं। जलेबी को चीनी के गाढ़े सिरप-चासनी में डुबोया जाता है, जिससे शरीर में तुरंत ग्लूकोज की मात्रा बढ़ती है। यह स्थिति इंसुलिन रेजिस्टेंस, टाइप-2 डायबिटीज और फैटी लिवर जैसी बीमारियों को न्योता देती है। समोसा और कचोरी में मैदा का अत्यधिक उपयोग होता है, जो पाचन को धीमा करता है। इससे गैस, कब्ज, अम्लपित्त और मोटापा जैसे विकार उत्पन्न होते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने समय-समय पर देशवासियों को न केवल सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए प्रेरित किया है, बल्कि स्वस्थ जीवनशैली को अपनाने का भी आह्वान किया है। हाल ही में उन्होंने एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए देशवासियों से खाद्य पदार्थों में तेल की मात्रा कम करने और मोटापे जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से बचने की अपील की है। मोदी ने इस बढ़ती स्वास्थ्य समस्या पर चिंतन करते हुए कहा हमें अपने खान-पान में बदलाव करना होगा। कम तेल, कम नमक और कम चीनी-यही स्वास्थ्य की कुंजी है।’ मोदी का आह्वान -तेल कम करें, जीवन स्वस्थ बनाएं है। क्योंकि अति तेल में तंदुरुस्ती नहीं, बीमारी का प्रवेश द्वार है। ध्यान रहे, देश में मोटापा बढ़ रहा है और इसके खिलाफ जागरूकता भी बढ़ रही है। यह भी कहा गया है कि लोग अपने भोजन में तेल को कम करके विकसित भारत बनाने में सहायक हो सकते हैं। इसी कड़ी में समोसे, जलेबी और स्वास्थ्य के लिए घातक व्यंजनों को अगर आधिकारिक रूप से निशाने पर लिया गया है, तो अचरज की बात नहीं, बल्कि वक्त की बड़ी जरूरत है।
भारत में रसोई का अभिन्न हिस्सा है तेल। परंतु आज जिस प्रकार से हर व्यंजन में अत्यधिक तेल का प्रयोग बढ़ता जा रहा है, इससे मोटापा भारत की बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन गयी है, उसने अन्य अनेक बीमारियों को प्रोत्साहन देते हुए स्वास्थ्य संकट को जन्म दे दिया है। तले-भुने खाद्य पदार्थ जैसे समोसा, कचोरी, पकौड़ी, पूड़ी, जलेबी, फास्ट फूड, आदि मोटापा, हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह जैसी बीमारियों का कारण बनते जा रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों को कैफेटेरिया और सार्वजनिक स्थानों पर साफ तौर पर ‘तेल और चीनी के चेतावनी बोर्ड’ लगाने का निर्देश दिया गया है। ये सूचनात्मक पोस्टर खासे लोकप्रिय खाद्य पदार्थों में वसा और चीनी की मात्रा को उजागर करेंगे। तले हुए और चीनी से भरपूर खाद्य पदार्थों को हतोत्साहित करने का समय आ गया है। इसकी शुरुआत अस्पतालों में चल रहे लापरवाह रेस्तरां से होनी चाहिए। तमाम रेस्तरां और मिष्ठान भंडारों पर इस चेतावनी को लटकाना आवश्यक है। ऐसा नहीं है कि लोग समोसा या जलेबी खाना छोड़ देंगे, पर उनमें सजगता आएगी। हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. बिमल छाजेड़ पिछले तीन दशकों से ‘जीरो ऑयल’ की खानपान पद्धति के माध्यम से हृदय रोगियों का प्रभावी इलाज कर उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
प्रधानमंत्री ने स्वस्थ जीवनशैली के सूत्र प्रस्तुत करते हुए जनता से आह्वान किया है कि तेल का सीमित उपयोग करते हुए पकवानों को तलने के बजाय भूनें, उबालें या भाप में पकाएं। शारीरिक गतिविधि बढ़ाने के लिये रोज़ाना योग, प्राणायाम, टहलना या व्यायाम करें। घर में जंक फूड बंद करें, बच्चों को ताजे फल, सूखे मेवे, अंकुरित अनाज दें। रोगों से नहीं, आदतों से लड़ें। खानपान में नियंत्रण सबसे बड़ा उपचार है। अतः बचाव के उपाय जरूरी हैं। पिछले दिनों, हर व्यक्ति से अपने भोजन में तेल की खपत को दस प्रतिशत तक कम करने की अपील की गई है। कुछ लोग अवश्य सुधार की ओर बढ़े होंगे और अब जब समोसे, जलेबी जैसे खाद्य पदार्थों पर चेतावनी रहेगी, तो खानपान में सुधार की गति को और बल मिलेगा। मोदीजी के नेतृत्व में शुरू हुआ ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ सिर्फ एक अभियान नहीं, बल्कि जीवनशैली का संदेश है। यह देश को बीमारियों के बोझ से मुक्त करने की दिशा में उठाया गया क्रांतिकारी कदम है। इस आंदोलन में लोगों को जागरूक किया जा रहा है कि स्वस्थ व्यक्ति ही समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करता है।
फिट इंडिया अभियान में ज्यादा ईमानदारी की जरूरत है और साथ ही, शुद्ध भोजन के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमों को ईमानदारी से ज्यादा सचेत एवं सावधान होना पड़ेगा। आज अनेक प्रकार के विदेशी व्यंजन भी बाजारों में उपलब्ध हैं, इनमें से ज्यादातर व्यंजनों में मैदा, तेल, कृत्रिम रंग और रसायन का खतरनाक उपयोग हो रहा है। ऐसा कतई नहीं लगना चाहिए कि केवल भारतीय व्यंजनों को निशाना बनाया जा रहा है। दूसरी अहम बात, खाने और बनाने वालों, दोनों को जागना होगा। अनेक हलवाइयों की दुकानों पर एक ही तेल का बार-बार प्रयोग, खराब या गलत सामग्रियों का इस्तेमाल तत्काल रुकना चाहिए।
आज ज़रूरत है कि हम सिर्फ स्वाद के गुलाम न बनें, बल्कि अपने शरीर की सुनें। एक जिम्मेदार समाज वही है जो अगली पीढ़ी को स्वाद के नाम पर बीमारियां नहीं, स्वस्थ आदतें सौंपे। एक ऐसी पीढ़ी तैयार हो रही है, जो स्वाद के पीछे स्वास्थ्य को त्याग रही है। यह चेतावनी नहीं, चेतना का संदेश है कि यदि अब भी नहीं सुधरे, तो आने वाली पीढ़ियाँ बीमारियों से जूझती रहेंगी। तो आइए, हम सब मिलकर संकल्प लें कि तेल कम करेंगे, चलना बढ़ाएंगे, जीवन को लंबा और स्वस्थ बनाएंगे! विशेषतः व्यापारियों, रेस्टोरंेट मालिकों एवं हलवाइयों के लिये सरकार को कड़े प्रावधान बनाने होंगे। पैसा कमाने के चक्कर में देश के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वालों को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। जब दूध और पनीर की गारंटी न हो, तब हमें सोचना पड़ेगा कि केवल चेतावनी से सुधार नहीं आने वाला। गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले महकमों और अधिकारियों को युद्ध स्तर पर सक्रिय होना पड़ेगा, तभी हम फिट इंडिया के ख्वाब को साकार कर पाएंगे।

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