अरे मास्टर‌

अरे मास्टर दिन भर क्यों,
पढ़ना पढ़ना चिल्लाता|
बोझ हटे कंधे से क्यों न,
ऐसी राह बताता|

लाद लाद बस्ता रगड़ू की,
कमर हो गई कुबड़ी|
भार हुआ इतना ज्यादा कि
खाल कंधे की उधड़ी|
नैनिहालो‍, का हाल न क्यों,
इन आँखों से दिख पाता|

रबर पेंसलें कलम सिलेटें ,
दूर कहीं फिकवा दें|
कापी और किताबों से
कैसे भी पिंड छुड़ा दें|
कागज़ पेन ड्राइंग के पन्ने,
क्यों न नष्ट कराता|

कम्प्यूटर में घुसकर ही अब,
बच्चे पाठ पढ़ेंगे|
माऊस दबाकर,मानिटर पर,
चटपट गणित करेंगे|
प्रश्नों के हल कम्प्यूटर में,
क्यों न अब भरवाता|

चार किताबें लेकर शाला,
दादाजी जाते थे|
बड़े कठिन से कठिन प्रश्न,
फटफट हल कर आते थे|
आज बुढ़ापे में भी  उनसे,
कोई नहीं भिड़ पाता|

बीस किताबें लेकर शाला,
अब बच्चे हैं जाते|
इतना भारी बस्ता लादे,
जैसे गधे उठाते|
फूल सरीखे बच्चों को क्यों,
हर दिन गधा बनाता|

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लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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