अरे मास्टर दिन भर क्यों,
पढ़ना पढ़ना चिल्लाता|
बोझ हटे कंधे से क्यों न,
ऐसी राह बताता|
लाद लाद बस्ता रगड़ू की,
कमर हो गई कुबड़ी|
भार हुआ इतना ज्यादा कि
खाल कंधे की उधड़ी|
नैनिहालो, का हाल न क्यों,
इन आँखों से दिख पाता|
रबर पेंसलें कलम सिलेटें ,
दूर कहीं फिकवा दें|
कापी और किताबों से
कैसे भी पिंड छुड़ा दें|
कागज़ पेन ड्राइंग के पन्ने,
क्यों न नष्ट कराता|
कम्प्यूटर में घुसकर ही अब,
बच्चे पाठ पढ़ेंगे|
माऊस दबाकर,मानिटर पर,
चटपट गणित करेंगे|
प्रश्नों के हल कम्प्यूटर में,
क्यों न अब भरवाता|
चार किताबें लेकर शाला,
दादाजी जाते थे|
बड़े कठिन से कठिन प्रश्न,
फटफट हल कर आते थे|
आज बुढ़ापे में भी उनसे,
कोई नहीं भिड़ पाता|
बीस किताबें लेकर शाला,
अब बच्चे हैं जाते|
इतना भारी बस्ता लादे,
जैसे गधे उठाते|
फूल सरीखे बच्चों को क्यों,
हर दिन गधा बनाता|