गजल

हिंदी ग़ज़ल

अविनाश ब्यौहार

उपदा का कमाना है।
वाइज़ का जमाना है।।

बुतों का यह शहर है,
बाजों को चुगाना है।

जंगल में बबूलों के,
खिजाँ को ही आना है।

सपनों का खंडहर है,
भूतों को बसाना है।

बस नाम के कपड़े हैं,
फ़क़त अंग दिखाना है।

बहार की जुस्तजू क्या,
जब कहर ही ढाना है।

सुबकती है किलकारी,
रूठों को मनाना है।

अविनाश ब्यौहार
रायल एस्टेट कटंगी रोड
जबलपुर। मो-9826795372