– अरुण माहेश्वरी
प्रभाष जोशी का निधन 5 नवंबर 2009 के दिन उस समय दिल का दौरा पड़ने से हुआ था जब वे अपने गाजियाबाद स्थित घर में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच एकदिवसीय रोमांचक क्रिकेट मैच देख रहे थे। पत्रकरिता के साथ ही क्रिकेट प्रभाष जी के जीवन की एक बड़ी उत्कंठा थी। हिंदी में अपने विशेष नैतिक मानदंडों के आधार पर श्रेष्ठ और विवादास्पद राजनीतिक और सामाजिक लेखन के साथ ही क्रिकेट पत्रकारिता की भी उन्होंने एक नयी भाषा तैयार की थी।
प्रभाष जी गांधीवादी थे। सादा जीवन उच्च विचार के आदर्श का उन्होंने सिर्फ प्रचार ही नहीं किया, उसे जीया भी। इसीसे उन्होंने जो नैतिक शक्ति अर्जित की, उसके बूते वे कभी किसी सत्ता-प्रतिष्ठान के दबाव में नहीं आयें और एक स्वच्छ और ईमानदार पत्रकारिता के उसूलों की ध्वजा को फहराये रखा।
प्रभाष जी भारत में सांप्रदायिकता के खिलाफ समझौताहीन संघर्ष के एक अमर सेनानी थे। धर्म और सांप्रदायिकता को उन्होंने हमेशा अलग-अलग रखा और आरएसएस की तरह की सांप्रदायिक ताकतों को देश की एकता और अखंडता के लिये एक बड़ा खतरा माना। प्रभाष जी के इधर के लेखन का एक बड़ा हिस्सा आरएसएस और उसके राजनीतिक मंच भाजपा की सांप्रदायिक करतूतों और साजिशों का पर्दाफाश करने वाला लेखन रहा है।
प्रभाष जी एक कर साम्राज्यवाद-विरोधी लेखक थे। अमेरिका और पश्चिम के साम्राज्यवादी देशों के साथ केंद्रीय सरकार की सांठ-गांठ का उन्होंने हमेशा विरोध किया। मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों, भारत में ब्रिटिश राज के बारे में उनकी अशोभनीय चापलूसी भरी टिप्पणियों और अमेरिकी साम्राज्यवाद के एक कनिष्ठ सहयोगी बनने की उनकी निंदनीय लालसाओं का उन्होंने अपनी लेखनी से जम कर विरोध किया है।
सभ्यता, परंपरा और विकास के बारे में प्रभाष जी की अपनी खास अवधारणाएं थी, जिनका एक मूलाधार गांधीजी की पुस्तक ‘हिंद स्वराज’ था। यह वर्ष ‘हिंद स्वराज’ की शताब्दी का वर्ष है। प्रभाष जी ने इस शताब्दी वर्ष में ‘हिंद स्वराज’ के बारे में खुद भी बहुत कुछ लिखा और देश के विभिन्न कोनों में घूम-घूम कर उसके संदेश का प्रसार किया। मृत्यु के दिन ही वे ‘हिंद स्वराज’ के बारे में वाराणसी में हुए एक सेमिनार में भाषण देकर लौटे थे। सभ्यता के बारे में अपने कुछ ऐसे ही नैतिकतावादी सोच के मानदंडों पर उन्होंने भारतीय वामपंथ की भी लानत-मलामत की। परंपरा संबंधी अपनी चंद अवधारणाओं के कारण ही प्रभाषजी एक समय में सतीप्रथा के बारे में उठी बहस में चरम रूढि़वादी तत्वों की कतार में भी देखे गये थे। लेकिन उनके समग्र जनतांत्रिक व्यक्तित्व का यह एक अत्यंत क्षुद्र अंश था। भारत के दीन-हीन और उत्पीडि़त जनों के पक्ष में प्रभाष जी ने हमेशा पूरी बुलंदी से अपनी आवाज उठायी। इस अर्थ में वे मूलरूप से एक उत्कट वामपंथी थे।
प्रभाष जी इंडियन एक्सप्रैस ग्रुप के साथ ऐसे समय में जुड़े थे जब वह ग्रुप इंदिरा गांधी के तानाशाही हमलों का शिकार बना हुआ था। 1975 के आंतरिक आपातकाल के पहले और दौरान जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में चले भ्रष्टाचार और तानाशाही-विरोधी ऐतिहासिक संघर्ष में इंडियन एक्सप्रैस की शानदार भूमिका में ग्रुप के मालिक रामनाथ गोयनका के साथ जिन पत्रकारों का नाम अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ था, प्रभाष जी उनमें अनन्य थे। परवर्ती दिनों में इस ग्रुप के हिंदी दैनिक ‘जनसत्ता’ के मुख्य संपादक के तौर पर हिंदी पत्रकारिता को एक नयी भाषा और संघर्षशील तेवर प्रदान करने वाले पथ-प्रदर्शक संपादक-पत्रकार के रूप में उनकी भूमिका हमेशा अविस्मरणीय रहेगी। वे उम्र की लगभग अंतिम घड़ी तक कार्यरत रहें। ‘जनसत्ता’ में उनके नियमित स्तंभ और अक्सर प्रकाशित होने वाले लेखों को बेहद चाव और गंभीरता के साथ बड़े पैमाने पर पढ़ा जाता था। भारत में उन्हें सर्वपठित पत्रकारों में अगर सबसे अव्वल स्थान पर रखा जाए तो गलत नहीं होगा। इधर के वर्षों में टेलिविजन के चैनलों पर भी अपनी सटीक और चुटीली टिप्पणियों के जरिये उन्होंने अपने लिये चैनलों के एक आकर्षक टिप्पणीकार का स्थान अर्जित कर लिया था।
ऐसे प्रभाष जी को उनके जन्म दिन के अवसर पर याद करते हुए हम उनकी स्मृतियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
mai ek baar prabhash joshi ji se mil chuka hu aur apne aap ko bahut khushnashib maanta hu.
स्वर्गीय प्रभाष जोशी जी के बारे में माहेश्वरी जी का आलेख बहुत हद तक सच्चाई के नज़दीक है . प्रभाष जी इंदौर की कतिपय साहित्यिक शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थाओं से सम्बद्ध थे .वे जनवादी लेखक संघ श्री मद्ध्य्भारत हिंदी साहित्य समिति और प्रगतिशील लेखक संघ के मार्गदर्शक भी थे .
जन काव्य भारती के तत्वाधान में आयोजित बिभिन्न कार्यक्रमों में भी उनके व्यक्तित्व कृतित्व पर विगत वर्ष सेमिनार इत्यादि आयोजित किये गए . अधिकांश श्रोता और पाठकगण विना किसी लग लपेट के देश के समक्ष प्रस्तुत चुनोतियों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पूर्व जनसत्ता . लोकलहर नई दुनिया सहित तमाम पत्र पत्रिकाएं में प्रभाष जोशी के तत्संबंधी विषय पर आलेख का इंतजार करते थे .वे बिशुद्ध धर्मनिरपेक्ष ;सच्चे देशभक्त सच्चे अंतर राष्ट्रीयतावादी थे .वे मजदूर कर्मचारियों किसानो तथा वामपंथ की कतारों में बेहद लोकप्रिय थे .प्रभाष जोशी उत्तर आधुनिक साहित्याकाश के देदीप्यमान नक्षत्र थे .