हिंदू कट्टरता बुरी तो मुस्लिम कट्टरता अच्छी कैसे?

 Kamlesh-Tiwariइक़बाल हिंदुस्तानी

   हिंदू महासभा के नेता कमलेश तिवारी ने पैग़ंबर हज़रत मुहम्मद साहब पर विवादित बयान दिया तो उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का मुकदमा कायम कर तत्काल जेल दिया गया। इतना ही नहीं उनपर रासुका भी लगाई गयी जिससे भविष्य में कोई फिर से ऐसी घिनौनी हरकत न करे। यह सरकार का ठीक ही फैसला माना जायेगा। आपत्तिजनक बयान का विरोध होना ही था सो जमकर हुआ लेकिन सबसे अच्छी बात यह रही कि तिवारी के पक्ष में कोई हिंदूवादी संगठन मैदान में नहीं आया। इसके साथ ही मुस्लिमों के साथ ही समाज के सभी वर्गों ने तिवारी के भड़काउू बयान की एक आवाज़ में सामूहिक निंदा की और आपसी भाईचारा बनाये रखने पर ज़ोर दिया। मामला गंभीर और कानून व्यवस्था से जुड़ा होने की वजह से तिवारी को अदालत से ज़मानत भी नहीं मिली है और वह आज तक जेल में ही है।

     सरकार और पुलिस प्रशासन का इस मामले में रोल सराहनीय रहा है क्योंकि उसने तत्काल और सख़्त कानूनी कार्यवाही करके शांति व्यवस्था को बचाये रखा है। इस मामले को लेकर अब तक यूपी के बरेली मुरादाबाद मुजफ्फरनगर के साथ ही कर्नाटक के बंगलूर उत्तराखंड के देहरादून और मध््य प्रदेश के जयपुर में बड़े शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन मुसलमानों ने किये हैं लेकिन बंगाल के मालदा में जो विरोध प्रदर्शन मुसलमानों की लाखों की भीड़ ने किया वह हिंसक हो गया। यह प्रदर्शन तिवारी को जेल भेजे जाने के बाद हुआ और आरोप है कि आक्रोषित लोगों ने एक दर्जन से अधिक वाहन दुकानें और बहुसंख्यकों के कुछ मकान भी जला दिये।

     इससे पहले एक दो स्थानों पर विरोध प्रदर्शन के बाद हुयी मीटिंग में आरोपी का सर काटकर लाने वाले को भारी इनाम का ऐलान भी किया गया जिसका कुछ हिंदूवादी संगठनों ने विरोध कर पुलिस से इस मामले में भी कानूनी कार्यवाही करने की मांग की लेकिन मु0नगर की तरह सपा सरकार ने अपने वोटबैंक को नाराज़ करने वाला कोई कदम नहीं उठाने का ठीक उसी तरह का रूख़ अपनाया जैसा बंगाल में ममता बनर्जी मुस्लिमों की नाराज़गी मोल लेकर करीब आ रहे विधानसभा चुनाव में उनके वोटबैंक को नहीं खोना चाहती। इससे पहले महाराष्ट्र में भी कांग्रेस सरकार के रहते मुसलमान कई साल पहले बर्मा और असम की मुस्लिम विरोधी हिंसा के खिलाफ ऐसा ही हिंसक विरोध प्रदर्शन कर चुके हैं लेकिन उस मामले में भी पुलिस राजनीतिक दबाव में कोई ठोस कानूनी कार्यवाही नहीं कर पाई थी।

     ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनायें केवल सेकुलर दलों के राज में ही होती हैं बल्कि भाजपा और दक्षिणपंथी दलों के राज में भी हिंदू वोटबैंक को खुश करने के लिये ऐसी अनेक घटनायें हुयी हैं लेकिन एक अंतर यह है कि उन घटनाओं का जैसा तीखा विरोध पूरे देश में होता है वैसा मालदा जैसी घटनाओं का नहीं हो रहा है। हाल ही मंे कोलकाता के एक मदरसे के हेडमास्टर को मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इस बात पर पीट दिया कि वो मदरसे के बच्चो को राष्ट्रगान याद करा रहा था। उस मास्टर पर यह भी आरोप था कि वह बच्चो को बालविवाह के खिलाफ भड़का रहा था जबकि मुसलमान लड़की के बालिग होते ही उसकी शादी को अपना मज़हबी अधिकार मानते हैं।

     अब उस मास्टर को न केवल इन दोनों मुद्दों पर माफी मांगने को कहा जा रहा है बल्कि कुर्ता पाजामा पहनकर और दाढ़ी रखकर मदरसे में प्रवेश की शर्त रखी गयी है लेकिन न तो सेकुलर दल और न ही सेकुलर लॉबी इस मुद्दे पर अब तक कुछ बोली है जिससे यह संदेश जा रहा है मानो हिंदू कट्टरता तो बुरी होती है लेकिन मुस्लिम कट्टरता अच्छी? इतना ही नहीं देहरादून के मुस्लिम विरोध प्रदर्शन के बाद एक मौलाना ने संसद से ऐसा कानून बनाने की मांग कर डाली कि कोई अगर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहंुचाये तो उसको फांसी दी जानी चाहिये। ऐसा विवादित ईशनिंदा कानून पाकिस्तान में तालिबान के दबाव में बनाया गया था जिसका खुलकर दुरूपयोग हो रहा है और लोग अल्पसंख्यकों अहमदियों शियाओं और अपने विरोधियों के खिलाफ इसका मनमाना गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।

     भारत में इतने धर्म और रस्मो रिवाज के रहते ऐसा कानून बनाने से रोज़ किसी न किसी को झूठे आरोप लगाकर फांसी चढ़ाने की मांग उठ सकती है नही ंतो भीड़ उसको खुद मौत के घाट उतार दिया करेगी। सवाल यह भी उठता है कि खुद हज़रत मुहम्मद साहब ने अपने जीवन काल में उस बुढ़िया की कई दिन तक अपने उूपर कूड़ा न फैंके जाने से खैरियत ली थी उसके घर जाकर जो रोज़ उनपर कूड़ा फैंकर उनका अपमान करती थी तो उनके चाहने वाले उनके खिलाफ बयान देने वाले पर कानूनी कार्यवाही कार्यवाही हो जाने के बाद भी उसकी जान लेने की अतिवादी मांग क्यों कर रहे हैं? कानूनी कार्यवाही के बाद उसको नज़रअंदाज़ करके उसके हाल पर भी छोड़ा जा सकता है कि खुदा उसको उसके किये की सज़ा खुद देगा।

     अगर हम सबको अपनी आस्था और अपनी सोच के हिसाब से चलने को मजबूर करते हैं और कोई ऐसा करने से मना करता है तो उसके खिलाफ हिंसक हो जाते हैं तो फिर तालिबान आईएसआईएस अमेरिका और हम सहिष्णु व उदार भारतीयोें में क्या अंतर रह जायेगा? सोचने की बात यह भी है कि अगर इसका उल्टा होता तो सेकुलर लॉबी और मीडिया का एक हिस्सा अब तक आसमान सर पर उठा लेता और यह भारत के हिंदू तालिबानीकरण की कवायद करार दिया जाता लेकिन साम्प्रदायिकता कट्टरता संकीर्णता और असहिष्णुता को लेकर देश में दो पैमाने अपनाये जा रहे हैं जिससे बदले में खाद पानी हासिल कर हिंदूवादी साम्प्रदायिक शक्तियां और उनका सियासी विंग बीजेपी प्रतिक्रिया में दिन ब दिन मज़बूत होती जा रही है।

     इस सारी बहस में यूपी के उन बड़बोले मंत्री का वह बयान दब गया जिसमें उन्होंने एक हिंदू संगठन को कदाचारी बताया था और बाद में इस बयान के जवाब में हिंदू महासभा के नेता तिवारी ने इससे भी ख़राब और बेहद घटिया व घिनौनी टिप्पणी की जिससे आज यह कोहराम और हंगामा बढ़ता जा रहा है। हालांकि दोनों ही गलत हैं लेकिन सवाल यह है कि यह देश संविधान के हिसाब से चलेगा या किसी मज़हबी किताब के हिसाब से ? एक आदमी विवादित बयान देता है और कानून उसके खिलाफ तत्काल सख़्त कानूनी कार्यवाही कर जेल भेज देता है उसपर एनएसए भी लगाया जाता है अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसको ज़मानत भी नहीं दी जाती इससे अधिक एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में इससे अधिक और क्या किया जा सकता है?

     अगर गौर से देखा जाये तो आज हैदराबाद की सीमा से निकलकर पूरे देश में ओवैसी अपनी साम्प्रदायिक पार्टी एमआईएम को फैलाना चाहते हैं तो इसके लिये भाजपा नहीं सेकुलर दल ज़्यादा ज़िम्मेदार हैं । अगर साम्प्रदायिकता बढ़ाने वाले सबसे बड़े मुद्दे बाबरी मस्जिद और शाहबानों केस की बात की जाये कांग्रेस का रिकॉर्ड बेहद ख़राब और विवादित है। दंगों में यही कांग्रेस मुसलमानों को ही नहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद खुद सिखों को सबक सिखाने के आरोपों से आज तक बरी नहीं हो सकी है। ऐसे ही यूपी मंे सपा बसपा तो बिहार में आरजेडी और जेडीयू ने उनको रोज़गार शिक्षा और विकास की बजाये केवल मज़हबी मुद्दों में उलझाकर भाजपा से डराने का काम किया है।

     इतिहास गवाह है कि इन दलों के नेताओं ने अपनी जातियों को आगे बढ़ाने और अकूत धन कमाने के लिये सियासत में मुसलमानों को वोटबैंक बनाकर ही अकसर उनका इस्तेमाल किया है। देश को अगर साम्प्रदायिक टकराव से बचाना है तो सभी तरह की कट्टरताओं का बराबर और निष्पक्ष विरोध किया जाना चाहिये। मशहूर समाजवादी चिंतक राम मनोहर लोहिया का कहना सही था कि कट्टरता तराजू के दो पलड़ों की तरह होती है जिससे एक वर्ग की साम्प्रदायिकता दूसरे वर्ग की साम्प्रदायिकता को सापेक्षता प्रदान करती है। राज़ लखनवी का एक शेर याद आ रहा है

मैं गुनहगार हूं फ़क़त इस हक़ीक़त बयानी का

   लगाकर चाश्नी जुंबां पर हमसे बोला नहीं जाता।।  

 

 

 

2 COMMENTS

  1. अगर आज पाकिस्तान में हजरत मोहम्मद का फिर से जन्म हो जाए तो शायद वहाँ के कट्टरपंथी उन्हें मार डालेगे। क्योंकि जब कोई प्रबुद्ध पुरुष का जन्म होगा तो वह विद्रोही बाते करेगा। लेकिन मुस्लिम धर्मावलम्बी निंदा और बहस से बहुत घबराते है, इस कारण कुरआन का सत्यबोध और सत्यार्थ से वे दूर होते चले जा रहे है। हिन्दू धर्म विपरीत और विद्रोही बातों के प्रति इस्लाम की तुलना में अधिक सहिष्णु है। यह बात हिंदुत्व को मजबूती प्रदान करती है और यह सुनिश्चित करती है की अगला प्रबुद्ध पुरुष, रसूल, तारणहार या संवादाता उनके बीच आने वाला है।

  2. इकबाल जी आप सही कह रहे हैं.कट्टर पंथ दोनों बुरा है,चाहे वह हिन्दू कट्टर पंथ हो या मुस्लिम और दोनों भारतीय प्रजातंत्र या इसके संविधान के विरुद्ध है.इस हालात में कट्टरपंथ को देश द्रोह कहा जा सकता है.किसी भी कट्टर पंथी को देश द्रोही की संज्ञा देनी चाहिए. इस पूरे झगड़े में एक पवित्र शब्द ,जो हमारे संविधान का मूल है बुरी तरह बदनाम हो गया है और वह है सेक्युलर यानि सर्वधर्म सम्मान.कोई अपने धर्म को सर्व श्रष्ठ माने या कोई झूठी प्रशंसा के लिए या वोट बैंक वाली राजनीती केतहत अपने धर्म को भला बुरा कहे,ये दोनों सांप्रदायिक हैं.जब तक हमारी मूल भावना में परिवर्तन नहीं आएगा,तब तक असली सेकुलरिज्म यानि सर्व धर्म को सम्मान देने वाली भावना का विकास होगा हीं नहीं.इसके लिए ऐसे लोगों के समूह को बड़ा होना आवश्यक है जो सच्ची बात सामने ला सकें,पर क्या आज के इस घृणित वातावरण में यह संभव है?

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