ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद में हिन्दू समाज सत्य को स्वीकारे

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– दिव्य अग्रवाल

ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद की सुनवाई सैकड़ो वर्षो बाद आज सम्भव हो पायी इसके कुछ मुख्य कारण हैं। अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन जो  प्रभु हनुमान की तरह धर्म स्थापना हेतु कार्यरत हैं याचिकाकर्ता वो पांच महिलाऐ जो प्रकृति के पांच तत्वों की तरह माँ जगदम्बा व् नंदी जी को अपने आराध्य महादेव से मिलन कराने हेतु संघर्ष कर रही हैं। चेतनायुक्त वो हिन्दू समाज जो इन सबके पीछे पूरी शक्ति के साथ कार्य कर रहा है एवं सबसे महत्वपूर्ण माननीय न्यायाधीश जिन्होंने धर्मराज युधिष्ठिर की तरह सत्य को स्वीकारते हुए ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी वाद को माननीय न्यायालय में सुनवाई हेतु स्वीकृति प्रदान की है । परन्तु इस सबके पश्चात भी यह सोचने का विषय है की सत्य को स्वीकारने में या सार्वजनिक होने में इतना समय क्यों लगा, क्या सत्य हेतु संघर्ष करने का दायित्व कुछ मुट्ठी भर लोगो का ही है। क्या यह समाज भूल जाता है की सत्य व् धर्म की जीत तभी होती है जब संगठित होकर संघर्ष किया जाता है समय रामायण का हो या महाभारत का धर्म स्थापना हेतु सबको संघर्ष करना पड़ता है। हो सकता है की आज इस निर्णय के पश्चात बहुत सारे लोग अपने लिविंग रूम में बैठकर बड़े खुश हो पर क्या वास्तव में उन्हें ख़ुशी मनाने का अधिकार है। क्या ऐसे बुद्धिजीवी / शिक्षित व् सुरक्षित लोगो ने सत्य व् धर्म हेतु चींटी जितना भी प्रयास किया है। यदि नहीं तो उन लोगो को यह भी विचार करना चाहिए जिस ख़ुशी में हमारा परिश्रम / योगदान / संघर्ष किसी भी रूप में सम्मलित या समाहित न हो उस ख़ुशी व उत्सव में भी उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होती। अतः हिन्दू समाज को याचिकाकर्ता ,अधिवक्ता व् उन लोगो का साथ अवश्य देना चाहिए जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस  धर्म यज्ञ में अपनी आहुति अर्पित करते हैं क्यूंकि अभी तो सत्य की ओर मात्र एक एकदम आगे बढ़ा है सफलता हेतु रास्ता बहुत लम्बा व् संघर्षपूर्ण है। 

दिव्य अग्रवाल

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