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हिन्दू चिंतन आज की वैश्विक आवश्यकता : डॉ. मोहनराव भागवत

संघ अनुभूति से समझने का विषय है। संघ में ऐसे व्यक्ति कैसे तैयार होते हैं जो अपना सुखदुख भूलकर राष्ट्र के लिये स्वयं का होम कर देते हैं। संघ में श्रीपति और नाना जी देशमुख जैसे राष्ट्रभक्त तैयार होते हैं। संघ दूर से समझ में नहीं आता। कुछ बाते करने की होती हैं। संघ कार्य केवल हमारे राष्ट्र की नहीं बल्कि विश्व की आवश्यकता है। आज दुनियाँ के देश यह मानकर चल रहे हैं कि यदि हिन्दू संस्कृति का विराट स्वरूप विश्व के सामने खडा हो जाए तो सभी को समान रूप से शांति, प्रेम और सौहार्द मिलेगा। भारत जबजब खडा होता है तब भारत में राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, विवेकानंद, अरविन्द, गांधी, सुभाषचन्द्र बोस पैदा होते हैं और राष्ट्र और धर्म रक्षा के लिये बच्चों तक को होम करने वाली लंबी श्रृंखला यहाँ चलती है। उक्त उद्गार भोपाल के लाल परेड ग्राउण्ड में वार्षिकोत्सव और हिन्दू समागम कार्यक’म के अवसर पर रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघ चालक माननीय डॉ. मोहनराव भागवत ने व्यक्त किये।

उन्होंने कहा कि कल ही संघ के दो वरिष्ठ कार्यकर्ता अपना पार्थिव त्यागकर उत्तम गति को प्राप्त हुये हैं। एक का कार्यक्षेत्र कर्नाटक, महाराष्ट्र रहा ऐसे श्रीपति शास्त्री जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन इतिहास के अध्यापक के अलावा संघ कार्य में लगाया तथा दूसरे स्व. नानाजी देशमुख जिन्होंने बचपन में अनाथ अवस्था में किसी तरह अपना पालनपोषण किया लेकिन प्रखर व्यक्तित्व को प्राप्त करने के बाद अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। वे राजनीति में गए और यह बताया कि राजनीति में उत्तम कार्य कैसे किए जाते हैं। जब राजनीति में फल मिलने का अवसर आया तो स्वयं को समाज सेवा में समपिर्त कर दिया। प्रयास ओर लगन से कैसे राष्ट्र का विकास होता है यह उन्होंने चित्रकूट में साकार कर दिखाया है। वह उत्तम संगठक थे। श्री भागवत ने कहा कि उनके जाने से प्रत्येक स्वयंसेवक के मन में खिन्नता है लेकिन सामूहिक सकंल्प भी है कि जिस कार्य को उन्होंने छोडा है उसे पूरा करना अब उनका कतर्व्य है। संघ में श्रीपति और नाना जी जैसे देशभक्त तौयार होते हैं। संघ दूर से समझ में नहीं आता। कुछ बाते करने की होती हैं। संघ अनुभूति से समझने का विषय है।
 
डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा कि संघ कार्य हमारे राष्ट्रजीवन और सम्पूर्ण विश्व की आवश्यकता है। धर्म संस्कारों के कारण आचरण में आता है संस्कृति और धर्म दोनों का आधार समाज है। जो अपना हिन्दू धर्म और संस्कृति है वह वसुदैव कुटुम्बकम की बात करती है। वह देने की बात कहती है, त्याग की बात कहती है। इसलिये वह हमारी ही नहीं विश्व की आवश्यकता है। श्री भागवत ने कहा कि आज जो देश इतना सम्पन्न है वह उतना ही समस्याग’स्त और दुःखी है विज्ञान की जितनी प्रगति हुई, उतनी समस्या बी आखिर कयों ? क्योंकि हर कोई सभी कुछ अपने हिसाब से चलाना चाहता है। दुनिया के चिंतक जो इन समस्याओं के मूल में पहॅुंचे तब उन्हें लगा कि इसके पीछे जो कारण जिम्मेदार हैं। वह है, मैं ही सही बाकी सब गलतकी भावना का होना। कुछ लोगों में कट्टरता प्रमाण में कम है। वे शांति के नाम पर प्रेम और सौहार्द का चौंगा पहनकर संदेश देने जाते हैं और छलकपट के जितने रूप हो सकते हैं करते हैं।
 
उन्होंने कहा कि अमेरिका आर्थिक दवाब बनाकर पूरी दुनिया को मुठ्ठी में कर लेना चाहता है। चीन साम’ाज्यवादी ताकत दिखाकर दूसरों को दबा रहा है। ऐसे में यह कहने वाला विचार कौन सा है विविधता में एकता देखो। इसे लेकर चलने वाला समाज भारत का हिन्दू समाज है। दूसरों के लिये जीना, जीना है और अपने लिए ही जीना पशुता है ऐसा मानने वाला दुनिया में भारत का हिन्दू समाज है और कोई नहीं। त्याग संयम का जीवन जिओ और प्रकृति के साथ रहो। यह शिक्षा हमें हिन्दू समाज से मिलती है। यूरोप में पतिपत्नि के सम्बन्ध, देश भक्ति आदि सभी कुछ सौदा है। हर बात को पैसे के तराजू पर तोला जाता है। इसी कारण वहाँ अशांति है जबकि अपने यहाँ परिवार को महत्व दिया गया है। इसलिये आज दुनिया के देश कहते हैं यदि हिन्दू संस्कृति विराट रूप से विश्व में खडी हो जाए तो सभी को प्रेमशांति और सौहार्द मिलेगा।

श्री भागवत ने पाकिस्तान का जिक’ करते हुये कहा कि हमारी पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान हमारा शत्रु है। हमने अपनी मातृभूमि के टुकडे भी किये और दुःख भी झेल रहे हैं। हम इतने भोले हैं वह बारबार आतंकवादी भेजता है हम अंहिसा की बात करते हैं। आताताईयों को अंिहसा के मार्ग पर चलाने के लिये सबक सिखाना चाहिए यही धर्म है। उन्होंने कहा कि हिन्दूस्थान हिन्दू राष्ट्र है यह स्पष्ट कल्पना सभी के मन में होनी चाहिए। भारतभूमि के अपार प्रेम के कारण तीन लाख पाकिस्तानी हिन्दू भारत आए लेकिन कश्मीर में आज तक उनकी कोई चिंता नहीं। सो तीन लाख काश्मीरी हिन्दुओं को भ’म के कारण कश्मीर छोडना पडा उनके अधिकारों की किसी को फिक’ नहीं। श्री भागवत ने प’श्न किया कि क्या भारत में हिन्दुओं का कोई हिस्सा नहीं। भारत का प्रधानमंत्री संविधान से उपर उठकर कहता है संसाधनों पर पहला हक उनका है। हिन्दुओं की अवहेलना हिन्दू आचायोर्ं का अपमान, हिन्दुओं के पैसों का दुरूपयोग। यह सब आखिर क्यों ? केवल नेताओं के मतों की आस है इसलिये। सुप्रीम कोर्ट के बारबार कहने पर भी घुसपैठियों को नहीं भगाया जाता, वह सीमावतीर इलाकों में बस रहे हैं। सिर्फ अपने वोटरों की सं’या बाने के लिये नेता यह सब कर रहे हैं । उन्हें सहयोग कौन दे रहा है? राजनीतिज्ञ सारे देश में एकता का भाव नहीं भरतो। भाषापंथ-सम्प्रदाय को लेकर झगडा करवाना यह सब विदेशी ताकते तो कर ही रही है लेकिन हमारे लोग भी राजनीति के लिये यह सब करते हैं। पंथसंप्रदाय हमें जोड नहीं सकते ऐसे में कौन है। जो हमें जोडता है वह है हिन्दुत्व का विचार। वास्तव में जोजो भारतीय है वह सब हिन्दू है, जो हिन्दू नहीं वह भारतीय नहीं। आज जो भारत में समस्याएँ है वह इसीलिए हैं क्योंकि इस अखण्ड मातृभूमि के प्रति चैतन्य माँ जगत जननी का स्वरूप देखने का अभाव है।
उन्होंने कहा कि हिन्दुत्व ही समन्वय की बात कहता है, जो संस्कृति विश्व के प्रति कृतज्ञता का भाव रखती है वह हिन्दू संस्कृति है। इण्डोईरानी प्लेट में रहने वाले सभी 40 हजार वर्ष से एक समान हैं। भारत में रहने वाले सभी समान पूर्वजों के वंशज हैं हम कोई भी पूजा पद्धति अपनाए और भाषा बोले। हम भारत माता के पुत्र है, हिन्दू परम्परा के संवाहक हैं। हिन्दुत्व वास्तव में मानवता है वही हम सभी को जोडता है। हमारी एकता का आधार भी वही है।
श्री भागवत ने कहा कि भारत में यदि हिन्दुत्व के आधार पर विकास योजनाएँ बने तो देश अवश्य सम्पन्न होगा। पश्चिम के मूल्य आज अपने देश के परिवारों को तोड रहे हैं वहाँ के लोग भारत के मूल्यों को आशाभरी ह्ष्टि से देख रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम लोग हजार वर्ष गुलाम रहे क्योंकि हमने शक्ति की उपासना छोड दी। शक्ति सेनापुलिस की नहीं लोक की होती है। आज इसी के जागरण की आवश्यकता है। लोगों की आँखों से स्वार्थ सिद्धि हटाकर जरूरत भारत के प्रति अपार श्रृद्धा भरने की है।
सारे देश में एकता का वातावरण उत्पन्न करने का काम रा.स्व.संघ का है। स्वयंसेवक के व्यवहार पर समाज की आस्था और विश्वास है। यही कारण है जो 1 लाख 57 हजार से अधिक सेवा कार्य स्वयंसेवक बिना किसी लोभ लालच के अपनी चमडी घिसकर कर रहे हैं। मनुष्य निर्माण से देश का वातावरण प्रभावित होता है। समाज का आचरण भी वैसा ही बनता है। वातावरण बनाने का काम करने वाले कार्यकतार रा.स्व.संघ की शाखा से निकलते हैं। इसलिए जो लोग संघ को दूर से देखते हैं मैं आह्वान करता हूँ वे संघ को आकर पास से देखें। एक घण्टा शाखा में देकर बाकी 7 घण्टें समाज के अच्छे कार्य में लगा दें। लोग दर्शक बनकर न रहें आगे आकर काम करें। यह हमारी भारत माता है। नई पी को सामर्थसम्पन्न देश हम सभी को सौंपना है।
सरसंघचालक श्री भागवत के उद्बोधन के पूर्व हिन्दू समागम स्वागत समिति अध्यक्ष श्री आर.डी.शुक्ला ने स्वागत भाषण दिया वहीं आयोजन समिति के महासचिव श्री दीपक शर्मा ने सभी का आभार माना