हिंदुत्व और चाटुकारिता को पहचानना होगा

hindu सिद्धार्थ शंकर गौतम

कौन कहता है धर्म और राजनीति का मेल नहीं हो सकता? यकीन न हो तो जरा संगम तट पर चल रहे महाकुंभ में राजनीति के चौसर पर चल रही चालों को देखिए। ऐसा प्रतीत होता है मानो धर्म ही अब राजनीति का मार्ग प्रशस्त करने की ओर अग्रसर है। चूंकि भारत धार्मिक मान्यतों पर चलने वाला देश है और यहां की अधिसंख्य आबादी धर्म के चलते अपने तमाम फैसले लेती है लिहाजा अब जनता के राजनीतिक फैसलों के लिए भी धर्म का सहारा लिया जा रहा है। विश्व हिन्दू परिषद से लेकर तमाम संत समुदाय व अखाड़े देश के भावी प्रधानमंत्री कैसा व कौन हो तथा राजनीति की दशा-दिशा को लेकर चिंतन कर रहे हैं। इस चिंतन में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर्वेसर्वा मोहन भागवत सहित कई राजनीतिक हस्तियां मौजूद हैं। २ दिन चलने वाले इस चिंतन-मंथन सत्र का हासिल तो बाद में निकल कर आएगा किन्तु इसने देश की राजनीति को गर्मा दिया है। एक ओर तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को एनडीए की ओर से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करने की मांग उठ रही है वहीं राजनाथ सिंह के ऊपर गठबंधन को बचाए रखने का दबाव है। खासकर जदयू और शिवसेना को साधना उनके लिए कहीं टेढ़ी खीर है। उधर सत्ता के शीर्ष पर काबिज कांग्रेस ने भी कुंभनगरी में श्रद्धालुओं के स्नान के बीच राजनीति गर्मा दी है। खबर है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी भी कुंभ में डुबकी लगाने वाले हैं। उनके कुंभनगरी में पहुंचने के उत्साह के बीच कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने चापलूसी की हदों को पार करते हुए कुंभ मेला क्षेत्र में ऐसी होर्डिग लगाई हैं जिसमें राहुल गांधी को भगवान शंकर के रूप में दिखाया गया है। इससे भी एक कदम आगे बढ़ते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को झांसी की रानी लक्ष्मीबाई बना दिया गया है। ऐसी भी सूचना है कि यह होर्डिग मेला प्रशासन की अनुमति के बगैर लगाया गया है। इस होर्डिंग को लगाने के पीछे जो कारण नजर आ रहा है वह यह है कि कुछ दिनों पहले कांग्रेस के जयपुर सम्मेलन में सोनिया गांधी ने सत्ता को जहर बताया था। कुंभ में लगे इस होर्डिग के माध्यम से कांग्रेस कार्यकर्ता यह चाहते हैं कि २०१४ के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सफलता दिलाने के लिए राहुल गांधी भगवान शंकर की तरह जहर को गले में उतार पार्टी को फिर सफलता दिलाएं। होर्डिंग में भगवान शंकर के साथ राहुल गांधी की तस्वीर लगाई गई है। यही नहीं भगवान शंकर की तरह राहुल के माथे पर तीसरी आंख बना दी गई है और महादेव के नीलकंठ की तरह राहुल के गले के हिस्से को भी नीला दिखाया गया है। राजनीति का यह पैंतरा आखिर किस तरह की राजनीति को इंगित कर रहा है? क्या राजनीति में अब इतना खोखलापन आ गया है कि उसे धर्म के थोथे माध्यम से ढकेला जाए?

 

जहां तक कुंभ में साधू संतों के जमावड़े और हिंदुत्व को पुनः उसके पुराने स्वरुप को जिंदा करने की बात है तो यह पहल अवश्य राजनीति में शुचिता का वरण करेगी। वर्तमान में वैसे भी हिंदुत्व में ठहराव-सा आ गया है। हिंदू समाज को विभाजित करने का कुचक्र चल रहा है। कुछ कमी हम में है, तो कुछ हमारी राजनीति में। आज हिंदू बंटा हुआ है। कुटिल राजनीतिज्ञों की राजनीतिक चालों में फंसकर हिंदू विभाजित हो गए हैं। इतिहास गवाह है कि जो भी समाज संगठित रहा है, दुनिया में उसका ही सिक्का चला है। उदाहरण के लिए पूरी दुनिया में यहूदियों की संख्या सवा करोड़ से ज्यादा नहीं है, पर विश्व की ४७ प्रतिशत संपत्ति पर इनका आधिपत्य है। जिन वैज्ञानिक आविष्कारों का सुख पूरी मानवता भोग रही है, उनमें से साठ फीसदी से अधिक यहूदियों ने ही किए हैं। ऐसा नहीं है कि यहूदियों में वर्ण व्यवस्था नहीं थी। प्राचीनकाल में इस समाज में तीन वर्ण होते थे, मगर सदियों तक शोषित तथा दबे-कुचले यहूदियों ने स्वयं को संगठनात्मक स्तर पर इतना मजबूत और एकात्म किया कि वर्तमान में यहूदी एक सशक्त ताकत के रूप में पूरी दुनिया से अपना लोहा मनवा रहे हैं। हिटलर ने यहूदियों पर जुल्म ढाए, मुस्लिम शासकों ने उनका वजूद मिटाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। फिर भी, यहूदी सिर उठाकर जी रहे हैं। इसका कारण सिर्फ एकता है। जब यहूदी एक हो सकते हैं, वे वर्णो और वर्गो से मुक्त हो सकते हैं, तो हिंदू क्यों नहीं? आखिर हिंदू भी तो सदियों से दबे-कुचले रहे हैं। फिर, यहूदियों के मुकाबले हिंदू आबादी भी बहुत ज्यादा है। तब कहीं तो कमी होगी? ऐसे कई संगठन हैं, जो हिंदुओं को एकजुट करने के प्रयास में लगे हुए हैं, तब यह काम हो क्यों नहीं रहा है? दरअसल, जो भी संगठन हिंदुओं को एकजुट करने का पवित्र कार्य कर रहे हैं, उनमें व्यावहारिकता की कमी स्पष्ट रूप से दिखती है। लगता है, मानो रंगमंच पर कोई नाटक चल रहा है, जिसका प्रमुख पात्र भी हिंदू है और खलनायक भी हिंदू। हिंदू तभी एकजुट हो सकेंगे, जब वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल उन्हें ढाला जाएगा। भाषावाद, जातिवाद, प्रांतवाद आदि का भेद पूरी तरह समाप्त हो। सांस्कृतिक, आर्थिक व राजनीतिक भेदभाव बंद हो। वर्तमान में हिंदुओं को एकजुट करने के जितने भी प्रयास होते हैं, उनमें इन सभी बुराइयों को दूर करने के प्रयास नहीं किए जाते। राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने हिंदुत्व को जमकर नुकसान पहुंचाया है। एक सशक्त, एकात्म और संगठित हिंदू समाज के निर्माण के लिए जब तक प्रचीनकाल से चली आ रही बुराइयों को दूर नहीं किया जाएगा, हिंदू एकजुट नहीं हो सकते। आज हिंदू और हिंदुत्व की अवधारणा ही भारत को विदेशी आक्रांताओं से बचा सकती है। अपने आसपास के परिवेश में हम आसानी से देख रहे हैं कि दूसरे धर्म-संप्रदाय स्वयं की संगठनात्मक क्षमताओं में कैसे वृद्धि करते जा रहे हैं, वह भी हिंदुओं की भागीदारी से। कई हिंदू इन धर्म-संप्रदायों को ग्रहण करके इनका आधार बढ़ा रहे हैं। मात्र अंशकालीन लाभ के लिए देश के पथभ्रष्ट राजनीतिज्ञ दीर्घकालीन नुकसान की अनदेखी कर रहे हैं, जिसे किसी भी नजरिए से उचित नहीं ठहराया जा सकता। यदि भारत में हिंदू ही सुरक्षित न रहा, तो कौन रहेगा? अब यह कैसे होगा और कौन करेगा यदि संतों के चिंतन का निष्कर्ष इस तक पहुंचता है तो तो ठीक है नहीं तो जिस तरह हिंदुत्व वोट बैंक का साधन बनता रहा है, आगे भी बनता रहेगा।

 

Previous articleभारत वर्ष के चार (4 ) नाम
Next articleयात्रियों को चाहिए सुचारू,सुरक्षित एवं सुविधा संपन्न ‘भारतीय रेल’
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,016 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress