महत्वपूर्ण लेख

मोदी विरोधी अमेरिका और ‘आप’

-अभिषेक रंजन-  narendra-modi

‘टाइम’ पत्रिका की मानें तो नरेन्द्र मोदी अमेरिका के लिए मुसीबत बन सकते हैं। हाल में ही भारतीय राजनयिक देवियानी खोबड़ागड़े के साथ हुई बदसलूकी की वजह भारत-अमेरिका संबंधों में काफी खटास पैदा हो गया है। पत्रिका के मुताबिक, अब अगले चुनाव में काफी संभावना है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे, ऐसे में वीजा न देने के फैसले को लेकर अड़े रहने वाले अमेरिका काफी पशोपेश में होगा। ओबामा कभी नहीं चाहेंगे कि उनकी नीतियों को लेकर उन्हें आलोचना सहनी पड़े। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिका मोदी को वाकई पसंद नहीं करता? यदि हां तो क्या अमेरिका मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकेगी?
इससे पहले कि हम उन तथ्यों पर जाएं, यह जानना जरुरी है कि अमेरिका मोदी को क्यों नापसंद करता है ?
पहली बात तो यह है कि मोदी आरएसएस और भाजपा सहित उस संघ परिवार से जुड़े हैं जिसे इसाई मिशनरी और इसाइयों के प्रभुत्वशाली देश नापसंद करते हैं। भारत में अगर आरएसएस और भाजपा नहीं होती तो इसाइयों द्वारा धर्म परिवर्तन के काम को काफी आगे बढ़ाया जा सकता था, लेकिन इनके हिन्दू धर्म विरोधी सभी प्रयासों का पुरजोर विरोध करने की वजह से संघ के कार्यकर्त्ता हमेशा चर्च और इसाइयों के निशाने पर रहते हैं। केरल में संघ परिवार से जुड़े लोगों की लगातार हो रही बर्बर हत्या इसका प्रमाण है। मोदी इस संघ परिवार के मजबूत चेहरा है। जाहिर है, ईसाई धर्म बहुल अमेरिका मोदी को प्रधानमंत्री बनता नहीं देखना चाहता।
दूसरी वजह यह है कि कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार अमेरिकी नीतियों से काफी ज्यादा प्रभावित रहती है। उसके आर्थिक नीतियों में अमेरिका के हितों की ज्यादा चिंता दिखाई देती है। भारत अमेरिका असैन्य परमाणु करार और खुदरा क्षेत्र (रिटेल) में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को तमाम विरोधों के बाद भी मंजूरी दिलाने की कोशिश इसका बड़ा उदाहरण है। नरेन्द्र मोदी और भाजपा इन दोनों फैसलों के खिलाफ़ है। समझना कठिन नहीं है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही दोनों फैसले पलट दिए जाएंगे।
तीसरी वजह यह है कि मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार न केवल आर्थिक मसले पर, बल्कि विदेश नीति के मामले में भी अमेरिका का पिछलग्गू देश बन गया है। भारत की विदेश नीति इतनी ढीली-ढाली कमजोर हो गई है। न केवल पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल जैसे पड़ोसी देश चढ़ बैठे हैं, बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों में भी भारत की प्रतिष्ठा कम हुई है। समुद्री मछुआरे की हत्या के मामले में इटली ने तो आंख दिखाया ही, कैप्टन सुनील जेम्स के मामले में टोगो जैसा देश भी भारत की नहीं सुन रहा था। नरेन्द्र मोदी की छवि और भाजपा के नेतृत्व में बनी अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की मजबूत विदेश नीति के रिकॉर्ड को देखते हुए अमेरिका को लगता है कि भारत की स्थिति विश्व में मजबूत हो जाएगी।
चौथा कारण है कि मोदी और भाजपा स्वदेशी विचारों को आगे बढ़ाने के समर्थक हैं। हाल में हुई कई घपले-घोटाले विदेशों से ख़रीदे गए सौदों में देखने को मिली है। साफ़ है कि मोदी के नेतृत्व में अमूमन भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टोलेरेंस की नीति पर चलने वाली भाजपा सरकार की नीतियां अमेरिका के हितों के विरुद्ध होगी। भारत अपनी स्वदेशी तकनिकी और आर्थिक नीतियों से ही ताकतवर बन जाएगा, ऐसे में अमेरिका का एक बड़ा बाज़ार समाप्त हो जाएगा। मतलब साफ़ है कि मोदी का प्रधानमंत्री बनना अमेरिका के हित में कतई नहीं है। जाहिर है, वह कुछ ऐसे षड्यंत्रों का सहारा ले रहा है ताकि मोदी की छवि ख़राब की जाए। अमेरिका चाहता है कि किसी भी तरीके से मोदी को कमजोर किया जाए ताकि भाजपा सरकार न बना पाए और उसके हितों की सुरक्षा हो सकें।
मोदी का विरोध करने के लिए अमेरिका कर क्या रहा है
कल ही दिल्ली हाईकोर्ट ने जाने माने अधिवक्ता एम.एल.शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए केंद्र को एक नोटिस जारी करके कुछ बिन्दुओं पर जबाब मांगा है। चौंकाने वाली बात इसमें यह है कि यह नोटिस अमेरिका से आम आदमी पार्टी के समर्थन में आए लाखों फ़ोन कॉल से संबंधित है। इस याचिका में यह आरोप लगाया गया है कि पिछले साल 2013 में नवंबर और दिसंबर महीने में 6 लाख से भी ज्यादा फ़ोन कॉल अमेरिका से आम आदमी पार्टी के समर्थन में आए है। तक़रीबन 10 करोड़ से भी ज्यादा खर्च वाले इन फ़ोन कॉल का मकसद आम आदमी पार्टी के समर्थन में प्रचार और लोगों से वोट मांगना था। अपनी याचिका में शिकायतकर्ता ने यह भी आरोप लगाया है कि यह सारा काम बिना गृह मंत्रालय की जानकारी के बगैर हुआ है जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा, देश की अखंडता और भारतीय लोकतंत्र के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है।
समझने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए कि अमेरिका ने मोदी विरोध के नाम पर अपना एक मुखौटा खड़ा कर दिया है ताकि किसी भी तरह मोदी को रोका जा सकें। अमेरिका स्थित फोर्ड फाउंडेशन से अरविन्द केजरीवाल और मनीष सिसौदिया के बड़े गहरे संबंध रहे हैं। फोर्ड फाउंडेशन ने ही केजरीवाल को रेमन मैग्सेसे पुरस्कार देकर नाम चमकाने का मौका दिया। अब वही सत्ता हथियाने में मदद कर रही है।
मोदी को वीजा न देने की बात बार-बार अमेरिका दुहराता रहता है। सोचने वाली बात है कि जब मोदी ने कभी वीजा मांगा ही नहीं तो देने और न देने की बात कहां से आ जाती है। पिछले ही दिनों अमेरिकी कांग्रेस में एक प्रस्ताव मोदी को वीजा न देने के लिए लाया गया जिसमें 2 मुस्लिम सहित 43 सदस्य शामिल थे। जाहिर बात है, वीजा का मुद्दा बार-बार उछालकर अमेरिका मोदी को नीचा दिखाना चाहता है, ताकि यह बात पुरे दुनिया सहित आम भारतियों के पास जाए कि मोदी को अमेरिका वीजा नहीं दे रहा। ऐसे आदमी को प्रधानमंत्री बनाना सही रहेगा!
अमेरिका में कुछ ऐसे बुद्धिजीवियों का समूह भी सक्रीय है जो विश्व पटल पर गुजरात के दंगे के नाम पर भारत को बदनाम करने और मोदी की छवि बिगाड़ने में जुटा रहता है। व्हार्टन विवाद उसी का एक छोटा सा नमूना है। इसके साथ ही भारत के वामपंथी बुद्धिजीवियों का भी अमेरिका कनेक्शन है, जो वहां के धार्मिक और राजनीतिक मामलों के समूह को मोदी विरोध के लिए उकसाते रहते हैं। अब जबकि कोर्ट से मोदी को क्लीन चीट मिल गई है, फिर भी डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट दिन-रात इसी जुगत में जुटा रहता है कि कहां से कुछ ऐसा ढूंढ़ निकाले जिससे मोदी घिरते दिखाई दें। साफ़ है, अमेरिका मोदी को प्रधानमन्त्री बनते नहीं देखना चाहता। अब देश की जनता को यह तय करना है कि वह अमेरिकी इच्छा का सम्मान करेगी या अपने स्वाभिमान की रक्षा करके अपने और देश के हित में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने या न बनाने का फैसला लेगी।