बिखर कर निखरी है महामहिम राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की जिंदगी

 

भारतीय लोकतंत्र के गौरवमयी इतिहास में 25 जुलाई 2022 को एक सुनहरा पन्ना जुड़ रहा है। यह भारत के लोकतंत्र की ताकत ही है कि अत्यंत साधारण वनवासी पृष्ठभूमि की एक  महिला आज देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद आसीन हो रही हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर काबिज होने वाली देश की पहली आदिवासी महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मूजी की बिखर कर निखरने की कहानी समस्त महिलाओं और दुःख-दर्द से हतास, जिंदगी से  निराश लोगों के लिए प्रेरणादायक है। कठिनाइयों से भरपूर उनकी जीवन यात्रा अत्यंत मार्मिक और त्रासदी से भरी रही है। पहले पढ़ाई के लिए संघर्ष किया और फिर परिवार के दर्दनाक हादसों ने उन्हें परेशान किया। किन्तु उन्होंने साबित कर दिया कि एक महिला टूट सकती है मगर बिखरकर निखर भी सकती है।

ओडिशा में मयूरभंज जिले के कुसुमी ब्लॉक के उपरबेड़ा गांव में  20 जून 1958 को बेहद गरीब और पिछड़े आदिवासी परिवार में जन्मीं मुर्मू का शुरुआती जीवन काफी संघर्षमय रहा। तमाम अड़चनों के बावजूद उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन (बीए) किया। राजनीति में आने से पहले वह रायरंगपुर के अरविंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च में मानद सहायक शिक्षिका थीं। वह सिंचाई विभाग में कनिष्ठ सहायक के रूप में भी काम कर चुकी हैं। पति और दो बेटों को खोने के बाद भी उन्‍होंने हिम्मत नहीं हारी और लगातार आगे बढ़ती रहीं। संघर्षशील और लोकतांत्रिक मर्यादा के लिए प्रतिबद्ध द्रौपदी बचपन से ही दृढ़ और सच के साथ मजबूती से डटे रहने वाली रही हैं। चाहे पढाई के लिए जिदकर गांव से भुनेश्वर जाने की बात हो या श्याम चरण मुर्मू से प्रेम विवाह उन्होंने अपने जिद के आगे परिस्थिति को झुका दिया। 

आज जब द्रौपदी मुर्मू देश के सर्वोच्च पद पर पहुंचकर एक कीर्तिमान स्थापित की है तो उनकी जिंदगी की संघर्ष के बारे में बताना आवश्यक हो गया है कि अबतक उनके जीवन में कैसे एक के बाद एक दर्दनाक हादसे होते गए। कैसे उनका का हंसता-खेलता परिवार बर्बाद हो गया और पांच साल के इस त्रासद दौर से बिल्कुल टूट चुकी द्रोपदी अपने आपको संभाला और टूटी जिंदगी बिखरने नही दी। इतना ही नहीं उन्होंने जिंदगी में सबकुछ हार जाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। अक्सर इंसान के टूट जाने के बाद बिखर जाने की कहानी सुनने को मिलता है लेकिन इनकी कहानी बिखर कर निखरने की है। शून्य से शिखर पर पहुंचने की कहानी है।

जैसाकि पढाई पूरी करने के बाद द्रौपदी मुर्मू की शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी और दोनों से चार बच्चे दो बेटे और दो बेटियां हुई । पति श्याम चरण मुर्मू बैंक में कर्मचारी थे और वे स्वयं कॉलेज में पढ़ाती थी। सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन शायद नियति को यह अच्छा नई लगा। साल 2009 के बाद द्रोपदी मुर्मू को कई व्यक्तिगत त्रासदियों का सामना करना पड़ा। 2009 से 2014 के बीच उन्होंने अपने पति, दो बेटों, मां और भाई को खो दिया। साल 1984 में द्रौपदी के जीवन की पहली ट्रेजडी उनकी पहली संतान की मौत हैं, जो महज 3 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गई। 2009 में उनके एक25 वर्षीय बेटे लक्ष्मण मुर्मू की रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गई थी। ‘जब बड़े बेटे की मौत हुई तो द्रौपदी बिल्कुल हिल गईं थीं और 6 महीने तक डिप्रेशन से उबर नहीं पाईं थीं। उन्हें संभालना मुश्किल हो रहा था। तब उन्होंने अध्यात्म का सहारा लिया। शायद उसी ने उन्हें पहाड़ जैसे दुखों को सहने शक्ति दी।’

बेटे की मौत के सदमे से द्रौपदी अभी उभर भी नहीं पाई थीं कि उन्हें दूसरी झकझोर देने वाली खबर मिली। ये घटना 2013 की है। जब द्रौपदी के दूसरे बेटे की मौत एक सड़क दुर्घटना में हो गई। द्रौपदी के दो जवान बेटों की मौत चार साल के अंदर हो चुकी थी। वह पूरी तरह से टूट चुकीं थीं।  दो बेटों की मौत का दर्द अभी कम भी नहीं हुआ था कि 2014 में द्रौपदी के पति श्यामाचरण मुर्मू की भी मौत हो गई। बताया जाता है कि श्यामाचरण मुर्मू को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें घरवाले अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। श्यामाचरण बैंक में काम करते थे। अब द्रौपदी के परिवार में सिर्फ एक बेटी है जिनका नाम इतिश्री है जो बैंक में नौकरी करती हैं।

बच्चों और पति का साथ छूटना द्रौपदी मुर्मू के लिए कठिन दौर था लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और समाज के लिए कुछ करने के लिए राजनीति में कदम रखा और पार्षद से आज ‘प्रेसिडेंट’ तक का सफर तय किया।  उन्होंने अनेक कीर्तिमान एवं उपलब्धियां हासिल की है। देश के किसी राज्य की पहली आदिवासी राज्यपाल बनाने के बाद विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद आसीन होने का गौरव प्राप्त हुआ है।

अवधेश कुमार सिंह

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