बीत गई है होली, लोग रंगो को छुड़ाने लगे हैं।

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होली

बीत गई है होली,लोग रंगो को छुड़ाने लगे हैं।
अपने चाहने वाले,फिर से याद आने लगे हैं।।

पी थी जिन्होंने भंग,उनका नशा उतरने लगा है।
क्यों किया था ऐसा काम,उनको अखरने लगा है।।

मेहमान जो आए थे,अपने घर को लौटने लगे हैं।
उड़ रहे थे जो पक्षी घौसलो में लौटने लगे है।।

हो गई है गर्मी तेज,पुरवा हवा अब बहने लगी है।
नीम की ठंडी छाया,तन को अच्छी लगने लगी है।।

उतर गया खुमार होली का लोग काम पर जाने लगे है।
अब तो अपने ही अपनो से हाथ छुड़ाने लगे हैं।।

खलती थी जो कलम दवात उसको चाहने लगे हैं।
रस्तोगी भैया फिर से अपनी कलम चलाने लगे है।

आर के रस्तोगी

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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