मत पूछो,कोरोना मे दिन कैसे मैंने काटे, हाथो मे पड थे छाले,पैरों में चुभे थे कांटे। दर दर ठोकरें हर जगह मुझे खानी पड़ी थी, ये मेरे लिए मुश्किल की बहुत बड़ी घड़ी थी।
घर में बन्द था,नहीं जा सकता था मै बाहर, बच्चे भी मना कर रहे थे,जाओ नहीं बाहर। घर में बैठ कर लिखता था मै कुछ कविता, तड़फ रहा था मै सुने तो मेरी कोई कविता।
कर रहा था मै घर से ही दफ्तर का काम, मिल रहा न था मुझे तनिक भी विश्राम। बना लिया था घर को मैंने अपना था कार्यलय, मंदिर भी बन्द थे इसलिए घर बना था देवालय।
मुंह पर मास्क लगाना,रकखी दो गज की दूरी, समझो इसे डर मेरा,या समझो मेरी मजबूरी। घुटता था दम मेरा काम करने में होती परेशानी, जान है तो जहान है इसे समझो न मेरी नादानी।
कुछ फरमाइशें लेकर मतलब से कोई मिलने आया, जिनकी की थी मैंने सहायता कोई काम न मेरे आया। ले रहे थे सब अपने अपने मतलब के खर्राटे, पूछो मत कोरोना मे दिन मैंने किस तरह काटे।
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था|
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