आखिर कब तक मिलेगा घोटालेबाजों को संरक्षण

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-रमेश पाण्डेय-
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शर्म आती है पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार पर, शर्म आती है केन्द्र सरकार की कार्यशैली पर। शारदा समूह जिसने चिट फंड कंपनी बनाकर गरीबों के खून पसीने की कमाई को लूटा, जांच में सच सामने आया, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं। दूसरी तरफ, ऐसे घोटालेबाजों को अप्रत्यक्ष तौर पर संरक्षण प्रदान किया जा रहा है। मजबूरन उच्चतम न्यायालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा और सीबीआई जांच का आदेश देना पड़ा। इस मामले को लेकर राज्य या फिर केन्द्र की सरकार सजग होती तो शायद उच्चतम न्यायालय को यह एक्शन लेने के लिए मजबूर न होना पड़ता। उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी तो अफसरों के लिए शर्मसार होने भर को पर्याप्त है। पर दुख है कि इन्हें शर्म नहीं आती। इस मामले में दस हजार करोड़ रुपए का घोटाला होने का मामला सामने आया है। ध्यान देने की बात है कि न्यायालय ने यह आदेश देते समय इस तथ्य का संज्ञान लिया कि कथित घोटालेबाजों को ‘उच्च पदों’ पर आसीन व्यक्तियों से ‘संरक्षण’ मिल रहा है। न्यायमूर्ति तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि जनता से कथित रूप से हजारों करोड़ रुपए एकत्र करने के ऐसे घोटाले में राज्य पुलिस की जांच पर शायद भरोसा किया जाएगा, क्योंकि इसमें व्यवस्था में उच्च पदों पर आसीन लोगों का संरक्षण प्राप्त होने का आरोप है और वह भी खास कर उस स्थिति में जबकि उन नियामकों ने भी, जिनसे इस तरह के घोटाले की रोकथाम की अपेक्षा थी, उन्होंने ने भी उसकी ओर से मुंह फेर लिया था। न्यायालय ने इस घोटाले को ‘अनैतिक मामला’ करार देते हुए कहा है कि दुर्भाग्य से राज्य पुलिस द्वारा की गयी जांच में धन बरामद करने की दिशा में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुयी है। न्यायालय ने सेबी की रिपोर्ट का जिक्र करते हुये कहा कि शारदा समूह ने 160 कंपनियां बनायीं और इनमें से चार कंपनियां इस अनैतिक काम में सबसे आगे थीं। न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की है कि शारदा रियलटी इंडिया लि. के लिये 2,21,000 एजेन्ट काम करते थे और रिपोर्ट का अनुमान है कि शारदा समूह की कंपनियों ने 2459 करोड़ रुपए एकत्र किए थे। न्यायाधीशों ने कहा, पोंजी योजनाओं में लिप्त होने वाली कंपनियों की जड़े दूसरे राज्यों में भी हैं जिसकी वजह से इस घोटाले के अंतर्राज्यीय आयाम हैं। इतने बड़े पैमाने पर धनसंग्रह करने के अंतरराष्ट्रीय धनशोधन पहलू की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है और इसकी प्रभावी जांच कराने की आवश्यकता है।

न्यायालय ने टिप्पणी की है कि इस समय वह इस घोटाले की जांच की प्रगति की निगरानी के लिए दल गठित करना आवश्यक नहीं समझती है और इस सवाल को भविष्य के लिये छोड़ा जाता है। न्यायलय के आदेशानुसार केंद्रीय जांच ब्यूरो शारदा और ओडीशा में 44 अन्य कंपनियों की जांच करेगा जो कथित रूप से इस घोटाले में लिप्त हैं। इस घोटाले में सांसद कुणाल कुमार घोष को 23 नवंबर, 2013 को गिरफ्तार किया गया था। घोष शारदा समूह की कंपनियों के मीडिया मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे। पूरे घटनाक्रम और न्यायालय की टिप्पणियों से साफ है कि इस घोटाले में सफेदपोशों की संलिप्तता है और यह एक सुनियोजित तरीके से किया गया है। यह तो एक मामला है जो सामन आ गया है। इसी तरह से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत कई और राज्यों में चिट फंड कंपनियों के जरिए गरीबों की गाढ़ी कमाई को लूटा जा रहा है। यह लूट उन्हें बेहतर भविष्य का सपना दिखाकर की जा रही है और सरकारें खुलेआम ऐसे लोगों को संरक्षण प्रदान कर रही हैं।

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