अनिल अनूप
हर समय हर लम्हा दूसरों की फिक्र करने वाली औरत के रुप में मां,एक बेटी, एक पत्नी और एक बहू ना जाने कितने ही किरदार निभाती !महिला चाहे कुछ भी करे लेकिन ये एक ऐसा कठोर सत्य है जो हमेशा से होता आया है और शायद होता भी रहेगा.. हमेशा दर्द औरतों को ही सहना पड़ता है..
एक मां के रुप में अपने बेटे हो या बेटी की परवरिश करने के बाद वो हर एक मां की आज यही कहानी है कि उसके अनमोल रत्न तो है लेकिन उसके साथ नहीं उसके पास नहीं . कारण- पैसा धन दौलत या जायदाद ..आज वो अकेली है लड़ रही है अपने ही बेटों से इसीलिए कि उसके अपने बेटे जो कभी उसके साथ रहते थे पास रहते थे आज उसी को उसके घर से बेघर कर रहे है. सच ही तो आज ये कहने के लिए आम बात जो हो गई है क्योंकि घर घर की बस यहीं एक कहानी है ..लेकिन सबको खुश रखने वाली आज एक नहीं कई मां कभी अपने बेटे से लड़ रही है अपने ही हक के लिए तो कहीं कई मां चुप है ये सोचकर कि बेटा ही तो है..कल सब उसका ही तो होगा ना..ये सोचकर घुट रही है और दर्द सह रही है….

एक मां के रुप में अपने बेटे हो या बेटी की परवरिश करने के बाद वो हर एक मां की आज यही कहानी है कि उसके अनमोल रत्न तो है लेकिन उसके साथ नहीं उसके पास नहीं . कारण- पैसा धन दौलत या जायदाद ..आज वो अकेली है लड़ रही है अपने ही बेटों से इसीलिए कि उसके अपने बेटे जो कभी उसके साथ रहते थे पास रहते थे आज उसी को उसके घर से बेघर कर रहे है. सच ही तो आज ये कहने के लिए आम बात जो हो गई है क्योंकि घर घर की बस यहीं एक कहानी है ..लेकिन सबको खुश रखने वाली आज एक नहीं कई मां कभी अपने बेटे से लड़ रही है अपने ही हक के लिए तो कहीं कई मां चुप है ये सोचकर कि बेटा ही तो है..कल सब उसका ही तो होगा ना..ये सोचकर घुट रही है और दर्द सह रही है….
आज ना जाने कितनी मां बेघर है ,कितनी मां अकेली है और कितनी ही मां चुप है ,घुट रही है और ना जाने कितनी मां अपने हक के लिए लड़ रही है अपने ही हक को पाने के लिए. प्यारी मां अब “बेचारी” मां हो गई है.. और इस मां के दर्द को कोई नहीं समझता है ….सही कहा है किसी ने लड़की पराया धन है और औरत का कोई घर नहीं होता है पहले पिता का घर फिर बाद में पति का घर .रिश्तों में ही बंधकर रह जाती है बस..अगर अब बात करें लड़की की तो क्या गारंटी है वो सुखी रहेंगी भी या नहीं. वो भी एक दर्द से गुजरती है..हमारे देश में ना जाने कन्या होना ही गुनाह है ? पता नहीं बेटी इतनी बोझ क्यों लगती है..और जब बात पूजा पाठ की आती है तो काली हो या दुर्गा या लक्ष्मी के नाम आते ही ऐसे पूजते है बस कि घर में लक्ष्मी (पैसा ) तो आये लेकिन लक्ष्मी (कन्या) ना आये। सच तो है मगर कड़वा भी.लड़की की जिंदगी की बात करें तो वो भी खुश कहां है ?कुछ तो इस दुनिया में नहीं आ पाती और तो कुछ आती तो है या तो उन्हें पढाया नहीं जाता घर में ही बंद रखा जाता है. अगर वो पढ़ रही हो तो अपने मां बाप का सपना साकार भी करें… तो कैसे ? कभी इसी दुनिया के बुरे लोग उन्हें जीने नहीं देते उदाहरण – निर्भया को ही लो वो लड़की अपने मां बाप के सपनों को साकार करने आयी थी लेकिन हुआ क्या …???सारे सपने चूर चूर हो गए और जिंदगी से भी हाथ धोना पड़ा ..जब वो रेप का शिकार हुई . उसकी कोई गलती नहीं थी और ना जाने कितनी लड़की रोज़ किसी ना किसी घटना का शिकार हो जाती है – उदाहरण-ऐसि़ड एटेक, छेड़छाड़ . पर शायद गलती यही है कि हम लड़की का जन्म लेकर पैदा हुए है .सारी की सारी गलती भी लड़की पर मढ़ दी जाती है.हम सभी जानते है कि कभी कभी बहुत से केस दर्ज नहीं होते है .रेप के शिकार के और हमारे देश में ना जाने कितनी ही लड़कियां खो जाती है हर रोजं कहीं ना कहीं बेच दी जाती है.. लड़की अगर सुंदर है तो भी उनकी गलती है और नहीं हो तो भी उनकी गलती मानी जाती है..अब बात करें ” बहू” की तो रोज़ घर में अपने परिवार का ख्याल रखती है ,उसको या तो दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता है या फिर उसको रोज मारा पिटा जाता है (घरेलू हिंसा)की जाती है..या इसलिए भी मार दिया जाता है कि उसने एक लड़की को जन्म दिया है..ऐसा देश है मेरा जहां रोज ऐसा होता है..लोग एक दूसरे की “आदत” बदलना जरुर चाहेंगे लेकिन “सोच” नहीं.
आज भी रुढ़ीवादी परंपरा में जी रहे है. हम पर्दा प्रथा की बात करें तो आज भी कई घरों में पर्दा रखवाया जाता है संस्कार माने जाते है ,अच्छी बात है लेकिन एक बात ये भी है शर्म ऑखों में होती है और जिसकी नज़र बुरी है उसके लिए तो हजार पर्दे भी बेकार है . संस्कारी होना जरुरी है ,एक दूसरे का आदर करना जरुरी है ,लेकिन पुराने रीति रिवाज़ भी उतने ही निभाए जाए जितना हो सके..किसी की बलि ना चढाई जाये.एक लड़की पलती कहीं है और रहन-सहन पहले अलग होता है फिर शादी के बाद उसे किसी और तरीके के रहन सहन को अपनाना पड़ता है, रीति रिवाज अपनाने पड़ते है .ये तो हमेशा से होता आया है और होता ही रहेगा क्योकि लड़की पराया धन है, पर उससे भी उतना ही करवाओ जितना हो सकें। वो भी इंसान है आजकल तो जिंदगी का ही पता नहीं आज है और कल नहीं. हो सके तो उसे बांधों मत जीने दो..आखिर वो भी इंसान है!!!!अब हम उन औरतों की भी बात करेंगे जिन्हे हम अपने से अलग मानते है या अपने दायरे में समाज से अलग रखते है ,लेकिन सच ये भी है वो भी एक इंसान है हमारी ही तरह . वो तो रोज़ ही मर मर कर जीती है . मैं यहां उन औरतों की बात कर रहा हूं जो वेश्या कहलाती है …जो हर रोज जीती तो है लोकिन मर मर कर .कुछ को इस काम में धकेल दिया जाता है तो कुछ को इस काम को मजबूरी में करना पड़ता है और कुछ तो इसको अपनी जिंदगी ही मान चुकी है क्योंकि समाज अपनाएगा नहीं ये जानकर वो चाहकर भी उस दुनिया से बाहर आना तो चाहेंगी लेकिन नहीं आ पायेगी ये जानती है कि समाज रोज उन्हे कोसेगा नई जिंदगी की शुरुआत करना भी चाहे तो कैसे..शायद यहीं अब उन औरतों की जिंदगी है …यहां हर पहलू से हर औरत की बात कही है मैंने ..सोच आपकी है आप उसे किस नजरिए से देखते है..हो सकता है मेरी कुछ बातों से आपको निराशा या गुस्सा आए लेकिन ये बात भी जरुर ध्यान रखना कि औरत भी एक इंसान ही है उसे भी दर्द होता है ,ऐसा दर्द जो उसे रोज सहन करना पड़ता है. हर रुप में चाहे मां हो बेटी हो बहू हो ,हर औरत की हर घर में अपनी एक कहानी है जो उसके जन्म लेते ही शुरू और मरने तक ही खत्म होती है लेकिन जिंदगी चलती तो है मगर रोज़ फिर एक नये दर्द के साथ शुरु भी हो जाती है.
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अनिल जी ! हर महिला बेचारी नहीं होती — आज की अङ्ग्रेज़ी माध्यम से पढ़ी कुछ तथाकथित एडवांस महिलाओं ने पूरी भारतीय संस्कृति – विरासत को नेस्तनाबूद कर दिया है — जिनकी नहीं भागी है वो भी अच्छे हालात में नहीं हैं — पर शरम के मारे बोलते नहीं हैं — अंदर-अंदर घुट के आत्महत्या तक कर लेते हैं ??? — पाकिस्तान केवल सीमाओं पर युद्ध नहीं कर रहा है — पेट्रोडालर के सहारे अब वो हमारे घरों तक पहुँच गया है —- काश हिन्दुस्तानी महिलाएं समझ पातीं कि किस तरह बगदाद – काबुल के गुलाम बाज़ारों में उनकी पूर्वज महिला-पुरुषों को पूर्ण नग्न करके — एक -एक अंग की जांच – पड़ताल करके बेचा गया था और यही हाल रहा तो दस सालों के बाद फिर वही भयानक समय आने वाला है — आज भी क्वान्टम थ्योरी पर रिसर्च करने वाले डॉ वशिष्ठ नारायण सिंह ( जो भारत का नाम ऊंचा कर सकते थे ) पटना के डीआईजी की बेटी (अपनी पत्नी) के कारण एम्स दिल्ली में विक्षिप्त पड़े हैं वो तथाकथित एडवांस महिला न तलाक देती है जिससे कि कोई अन्य गरीब महिला की सेवा से वे ठीक हो जाएँ न मदद में आती है ( पर सोशल मीडिया पर महिलाओं के हक में लंबी-लंबी हाँकने वाली और महिला समितियों की नेत्रियाँ चुप हैं ????? ) क्यों — रास्ता चाहिए – असम के आईएएस मुकेश कुमार – कानपुर के आईपीएस दास साहब –और अब डीएसपी राजपाल सिंह तथा दिल्ली के बिल्डर को पत्नी प्रताड़ना के कारण आत्महत्या करनी पड़ती है — एक जज की पत्नी सड़क पर अखबार बिछाकर ड्रामा कर रही है — याद कीजिए इतिहास को —- तराइन की दूसरी लड़ाई में मुहम्मद गौरी की पत्नी ईरान जाकर अपने अब्बा हुजूर की सारी फौज उनके मुख्य सिपहसालार के साथ गौरी की मदद में भेजवा दी थी ? दूसरी तरफ पृथ्वीराज चौहान की पत्नी संयोगिता अपने पिता जयचंद से मदद नहीं ला सकी थी ( संयोगिता को लाने में ही पृथ्वीराज के 12 सिपहसालार तथा नरनाह कान्ह – जिनके बराबर का योद्धा उस समय पूरे उरेसिया में नहीं था और तराइन की पहली लड़ाई में इन्होंने ही गौरी को बांधकर पृथ्वीराज के सामने ला पटका था वे शूरवीर भी मारे जा चुके थे ) फलत: महान सम्राट पृथ्वीराज के हारने के बाद संयोगिता और उनकी बेटियों को नग्न करके पूरी सुलतानी फौज के हवाले कर दिया गया था — क्या हुआ होगा सोचकर ही मन दहल जाता है ?– कहाँ थे देवी – देवता — अमर शक्तियाँ ——– परंतु इन सब दुर्दशा के लिए आज की कुछ तथाकथित एडवांस महिलाएं तैयार हैं पर अपने पति का साथ देने को तैयार नहीं हैं ( गोंडा उत्तर प्रदेश में दो पुलिस की विधवाएँ स्थानीय लेखपाल-वकीलों से मिलकर 82 साल के दंपत्ति ( 9451838619 ) का जीना मुश्किल किए हैं जबकि उनके पति के जीवित रहते सब ठीक था, पति के मरने के बाद प्रतिदिन कचहरी में घूमना —- , आसपास के दबंग – अविवाहित सब उन महिलाओं के ही साथ हैं – क्यों मत पूछिएगा नहीं तो सच कहने के लिए मुझपर केस दायर हो जाएगा ) — हाय रे तकदीर ? विनाश काले विपरीत बुद्धि ??? दूर की छोड़ो कश्मीर में क्या हुआ था तथाकथित एडवांस महिलाओं के साथ:—–संख्या कम होने की कीमत क्या कीमत चुकानी पड़ती है — इस लड़की से सुनिए :—-
https://youtu.be/4pRJ0XZJSoo