जहरीली हवा से कैसे बचें ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
दिल्ली की हवा में इतना जहर तैर रहा है कि अस्पतालों में मरीजों का अंबार लगता जा रहा है। वायु-प्रदूषण के कारण पांच साल से छोटे लगभग एक लाख बच्चे हर साल अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं। सर्वोच्च न्यायालय इतना परेशान हो गया है कि उसने दिवाली पर पटाखों पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए हैं लेकिन आजकल पटाखों के बिना भी हवा इतनी जहरीली हो गई है कि कहीं-कहीं वह सामान्य से पांच गुना ज्यादा जहरीली है। सरकार ने जनता को हिदायत दी है कि लोग घरों से बाहर न निकलें, सुबह की सैर बंद करें और घरों में भी अगरबत्तियां वगैरह न जलाएं। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त प्रदूषण नियंत्रण अधिकारी भूरेलाल ने कहा है कि यदि प्रदूषण का यही हाल रहा तो समस्त निजी वाहनों के चलने पर रोक लगा दी जाएगी। दिल्ली में पौने दो करोड़ निजी गाड़ियां पेट्रोल और डीजल से चलती हैं। इनमें से लाखों 10 से 20 साल पुरानी भी हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पेट्रोल की 15 साल और डीजल की 10 साल पुरानी कारों पर रोक लगा दी है लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस तरीके से वाकई प्रदूषण खत्म हो जाएगा ? क्या यह व्यावहारिक तरीका है ? पिछले साल दिल्ली सरकार ने सम-विषम नंबरों की कारों के लिए अलग-अलग दिन तय किए थे लेकिन प्रदूषण में कोई खास कमी नहीं हुई। सबसे पहली बात तो यह कि खेतों में पराली जलाने पर रोक लगनी चाहिए। दूसरी बात, दिल्ली की मुख्य सड़कों पर सिर्फ वे ही कारें चलनी चाहिए, जिनमें कम से कम चार सवारी हों। जिन कारों में कम सवारियां हों, उन्हें दिल्ली की अंदरुनी सड़कों पर चलने की इजाजत न हो। वाशिंगटन में मैंने इस व्यवस्था को लागू होते हुए 40 साल पहले देखा था। तीसरा, निजी वाहनों पर रोक लगाने की बजाय बसों और मेट्रो की पहुंच बढ़ाई जानी चाहिए। दिल्ली में 15000 बसें चलनी चाहिए लेकिन चलती हैं, सिर्फ 5000। बस और मेट्रो का किराया इतना कम होना चाहिए और उनकी पहुंच इतनी ज्यादा होनी चाहिए कि लोग अपनी कारें अपने घर पर ही खड़ी रखें। चौथा, ट्रकों, टेक्सियां और आटो रिक्शाओं पर भी पूर्ण निगरानी रखी जानी चाहिए। ये प्रदूषण के बड़े स्त्रोत हैं। पांचवां, अब सौर ऊर्जा की क्रांति की बेहद जरुरत है। सौर-वाहन प्रदूषण के दुश्मन सिद्ध होंगे। पांचवा, दिल्ली ही क्यों, सर्वोच्च न्यायालय तो पूरे देश का न्यायालय है। कई प्रदेशों के कुछ शहर दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में से हैं। उनके बारे में सरकारों, अदालतों और खुद जनता को ठोस पहली करनी चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here