बलात्कारों से कैसे निपटा जाए ?

बलात्कारों से कैसे निपटा जाए ?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
बलात्कार की राक्षसी घटनाओं से जम्मू-कश्मीर और उत्तरप्रदेश में हंगामा इसलिए खड़ा हो गया है कि इन घटनाओं से कुछ नेताओं का संबंध जुड़ा हुआ है लेकिन पिछले एक सप्ताह में बलात्कार की लगभग आधा दर्जन नृशंस घटनाएं देश के अन्य भागों में हो गई हैं। ये घटनाएं कठुआ और उन्नाव से भी भयंकर हैं। पहले बलात्कार और फिर हत्या ! ये घटनाएं क्या बताती हैं ? पहली बात तो यह कि देश में बलात्कार की घटनाएं आम हो गई हैं। बलात्कार पहले भी होते थे लेकिन इन दिनों भारत का हाल वही हो गया है, जो पश्चिमी देशों का है। क्या हमारी सरकार, संसद और अदालतों ने यह सोचने का कष्ट किया कि भारत में बलात्कार इतना क्यों बढ़ रहा है ? क्या इसके लिए इंटरनेट, फिल्में, अर्धनग्न विज्ञापन, अश्लील साहित्य और संस्कारहीन शिक्षा-व्यवस्था जिम्मेदार है ? यदि हां तो इस मामले में सरकार और समाज कितना जागरुक है ? दूसरी बात यह कि बलात्कार की इन घटनाओं को क्या सिर्फ अदालती कार्रवाई से रोका जा सकता है? नहीं। अदालत के मुकदमों की हवा निकालने के दर्जनों तरीके लोगों ने निकाल रखे हैं। कल की एक खबर थी कि एक बलात्कृत बच्ची के माता-पिता को 20 लाख रु. की रिश्वत दी गई थी कि वे अपनी बेटी के बयान बदलवा दें। नेता, अफसर और मालदार लोग खुद को बचाने और अदालतों को धोखा देने के लिए साम, दाम, दंड, भेद का पूरा प्रयोग करते हैं। ज्यादातर उन्हीं लोगों को सजा होती है, जो साधनहीन होते हैं। और सजा भी कितनी होती है ? थोड़ा-बहुत जुर्माना और दो-चार साल की कैद या कभी-कभी आजन्म कैद। बलात्कार और हत्या के लिए ये भी क्या सजा है ? इससे समाज पर क्या असर पड़ता है ? भावी बलात्कारियों को क्या कोई सबक मिलता है ? सालों तक मुकदमे चलते रहते हैं। चुपचाप सजा हो जाती है। उसका चर्चा तक नहीं होता। यदि बलात्कारियों को सजा-ए-मौत दी जाए और पकड़े जाने के महिने-दो महिने में ही दी जाए तो उसका थोड़ा-बहुत असर समाज पर जरुर होगा। यह सजा-ए-मौत जेल की बंद कोठरी में न दी जाए। वह दी जाए लाल किले पर, विजय चैक पर या कनाट प्लेस-जैसी जगह पर। उसका टीवी चैनलों पर जीवंत प्रसारण भी किया जाए। फिर देखिए बलात्कारों में कमी आती है या नहीं !

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  1. बलात्कार एक ऐसा अपराध है जिसे कोई भी सरकार पूर्णतः नहीं रोक सकती है , कुछ देशों में जहाँ कठोरतम दंड हैं वहां भी गाहेबगाहे ऐसे अपराधों की खबर मिलती रहती है वस्तुतः यह मानव की एक घृणित सोच का एक अंजाम है जिस की वहशीयत किस समय पर पुरुष में सवार हो जाए , अंदाज नहीं लगाया जा सकता
    नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन , सांस्कृतिक बदलाव ,व भारतीय सामाजिक मूल्यों के पतन की वश ऐसा निरन्तर बढ़ता जा रहा है , विभिन्न सर्वे यह भी बताते हैं कि हमारे देश में ६०% से ज्यादा बलात्कार परीचितों के द्वारा ही किये जाते हैं , कोई भी व्यवस्था बलात्कारी के मन को नहीं जान सकती , आप का सुझाव कठोर क़ानून व खुले में सजा देने का कुछ हालात में कारगर हो सकता है , लेकिन आप जैसे वरिष्ठ पत्रकार क्या इस बात को नहीं जानते कि हमारे देश में जहाँ लोकतंत्र के नाम पर हर बात का विरोध किया जाता है वहां यह संभव है ?कभी मानवाधिकार वादी , कभी जतिगत समाजन कभी राजनीतिक दल ऐसा होने ही नहीं देंगे , लचर कानून, प्रभावी लोगों के दबाव , भ्र्ष्ट प्रशासन, राजनीतिज्ञों का दखल , न्याय व्यवस्था में वकीलों की तारीख पर तारीख लेने की आदतें , अदालतों पर मुकदमों का भार , कुछ उनकी भी आगे से आगे तारीख देने की प्रवृति , किसी भी अपराध को दण्डित होने से बचाये रखती है
    जिस देश में पूरा तंत्र ही जब बिगड़ा पड़ा हो वहां आप इस सुधार की क्या उम्मीद कर सकतें हैं ?
    एक क्या कितनी ही निर्भयाएं इसी तरह शिकारहोती रहेंगी , ज्यादा देर नहीं है हो सकता है कि कुछ ही दिनों में भारत की छवि विदेशों में एक बलात्कारी पुरुषों वाले देश की होगी, और विदेशों में भी लोग भारतीयों से सम्बन्ध बनाने में पहले सोचेंगे
    शायद मेरा यह भय अतिवादिता हो , अच्छा हो कि यह सच न हो पर फिर भी देश में आज लड़की के बाप उस के जन्म पर ख़ुशी मनाने के बजाये मध्यकालीन सोच को न अपना बैठें
    हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत न हो लेकिन सवाल विचारणीय जरूर है

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