महत्वपूर्ण लेख

तमिलनाडु में हिंदी प्रवेश कैसे करें ?

hindi in tn(भाग एक)
डॉ. मधुसूदन

सारांश:
**तमिलनाडु में हिन्दी प्रवेश हो जाए, तो शेष भारत में विशेष समस्या नहीं होगी।**
**हमें हिन्दी चाहिए”, ऐसी नई माँग, तमिलनाडु में उठने लगी है।**
** आज हिंदी परीक्षार्थियों की संख्या भी बढी है।**
** कुशलता से काम लेने का अवसर है।**
**कुशलता ऐसी,कि,हिन्दी की, बाँसुरी बजे, और चतुराई ऐसी, कि, सत्ता का बाँस न टूटे।**
**ऐसी कुशलता सांप्रत शासन का गुण है।**
पूरा आगे पढें।

(एक) विषय प्रवेश:
इस विषय पर २ या ३ आलेख बनाने का विचार है। और उन पर आधारित ज्ञापन प्र. मंत्री को, आपकी अमरिका यात्रा के अवसर पर देने का विचार है। आज पहला आलेख प्रस्तुत है।
किसी मित्र ने चुनौती भरे स्वरो में कहा, कि, यदि आप तमिलनाडु में हिन्दी को प्रवेश करवा दें, तो शेष भारत में विशेष समस्या नहीं होगी। मुझे भी, मित्र की बात सही लगती है। और, अब ऐसा अवसर भी, आ ही रहा है, ऐसा लगता है। इस प्रक्रिया के शुभ संकेत भी, मुझे क्षितिज पर दिखाई दे रहे हैं।

एक, सांप्रत समाचारों का विश्लेषण करनेपर आप सहमत ही होंगे, ऐसा मानता हूँ। दूसरा कारण है, भारत में पहली बार सशक्त बहुमति के साथ एक हिंदी हितैषी, हिंदी में आग्रह से, बोलने वाला, और हिन्दी के लिए अनुकूल, ऐसा समर्थ प्रधान मंत्री, जीत कर,आया है। आदरणीय अटलजी भी अवश्य हिन्दी समर्थक और हिन्दी हितैषी थे ही, पर उनके पास मोदी जी जैसी बहुमति नहीं थी।

(दो)हिंदी के अनुकूल खिडकी या गवाक्ष:

नीचे निर्देशित सांप्रत, समाचारों का, और, घटनाओं का अर्थ यदि लगाया जाए, तो आज, हिन्दी के पक्ष में, तमिलनाडु में, एक खिडकी अवश्य खुल रही है। इसे महाद्वार समझना गलत होगा; पर खिडकी अवश्य है, या छोटा गवाक्ष ही है। इस खिडकी या गवाक्ष से हिंदी को तमिलनाडु में प्रवेश करवाने के लिए, हिंदी हितैषियों को, और शासन को, बडे कौशल और चतुराई से काम लेना होगा।
कुशलता ऐसी, कि, हिन्दी की, बाँसुरी भी बजे, और चतुराई ऐसी, सत्ता का बाँस भी न टूटे, पर सुरक्षित बचा रहे, ऐसा कुशल समाधान चाहता हूँ। ऐसी कुशलता सांप्रत शासन का गुण है। इस लिए, इस समस्या के, समाधान की दिशा में आगे बढने की, संभावना मुझे निश्चित दिखाई देती है। कहते हैं, कि, कुशल विक्रेता, वस्तुके गुणों का ऐसा बखान करता है; कि, ग्राहक स्वयं ही उस वस्तु को, बिकत लेना चाहता है। ऐसी कुशलता से ही काम लिया जाए, और कुशलता पर भार देता अगला आलेख सोच रहा हूँ। आजका आलेख समाचारों पर केंद्रित है।

(तीन)समाचार:

समाचारों पर यदि लक्ष्य केंद्रित करें, तो, प्रतीत होगा, कि, तमिलनाडु में एक नई लहर चल निकली हैं। कुछ पाठकों ने भी यह अनुमान किया होगा ही। वहाँ, हिन्दी के हित में अनुकूल वातावरण बनता दिखाई दे रहा है। इन समाचारों के अनुसार; आज तमिलनाडु में हिन्दी पढने की ओर झुकाव दिखाई देता है। यह अनुमान निम्न चार समाचारों से, फलित होता है; आप ने भी पढा होगा ही।

(तीन-१) N D T V का, जून १६ २०१४ का समाचार:
===>”हमें हिन्दी चाहिए”, ऐसी नई माँग, तमिलनाडु ( दक्षिण) में, बदलाव की भाषा बोलती सुनाई दे रही है।—लेखक है, सॅम डॅनियल स्टालीन, जो N D T V का समाचार देते हैं। यह जून १६-२०१४ का समाचार है।
===>”आगे –चेन्नई के छात्र कहते हैं, हिन्दी और अन्य भाषाओं की शिक्षा का अभाव उनके व्यावसायिक नियुक्तियों में और उनकी उन्नति को क्षति पहुंचाता है।”
===>उदाहरणार्थ, ९वी कक्षा का छात्र अनिरुद्ध, समुद्री (Marine Engineering) अभियान्त्रिकी पढना चाहता है। वह कहता है, उसे तमिल सीखनेपर विवश किया जा रहा है। कहता है, “यदि मैं उत्तर भारत में नियुक्ति चाहूं, तो मुझे हिन्दी का ज्ञान होना चाहिए।” ऐसा उसने N D T V के पत्रकार को कहा।
===>तमिल-भाषी भाई जिष्णु और मनु संस्कृत और हिन्दी (दोनों) सीखना चाहते हैं। कहते हैं, वे, “कि, हम घर में, तमिल बोलते हैं। उसी भाषा को शाला में सीखना, ऊबाऊ हो जाता है।”
” His brother added, “Even in other countries they encourage students to learn as many languages as possible.”
उसके भाई ने कहा, कि, अन्य देशों में भी अधिकाधिक भाषाओं के सीखने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है।

(तीन-२) दूसरा संकेत:
दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा के सांख्यिकी आँकडे इसी लहर की पुष्टि करते हैं।
फोर्ब्स सामयिक से –**दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा काफी व्यस्त है। उसके (२०१०) के समाचार के, अनुसार, प्रति वर्ष (६००,०००) अर्थात ६ लाख छात्र, राज्य में, परीक्षाएं देते हैं, और इस संख्या में भी प्रतिवर्ष , +२० % के अनुपात में वृद्धि हो रही है। १९६५ में जब हिन्दी विरोधी आंदोलन चरम पर था, २०,००० से भी संख्या में अल्प, परीक्षार्थी हुआ करते थे। **हिन्दी विरोधी आंदोलन ने ही हिंदी के प्रति लोगों की उत्सुकता बढायी। उन्हें जाग्रत किया, और हमारे पास लाया।** कहते हैं समिति के कार्यवाह, श्री. अन्नामलाई।**यह (२०१०) का समाचार है।
६००,०००/२०,००० =३० इसका अर्थ हुआ कि आज १९६५ की अपेक्षा ३० गुना युवा छात्र तमिलनाडु में हिन्दी सीख रहें हैं। यह समाचार काफी उत्साह जनक ही मानता हूँ।
ये आँकडे २०१० के हैं। आज यदि २०% प्रतिवर्ष की वृद्धि मान लें, तो चार वर्षों में आज १२४४१६० छात्र हिन्दी सीख रहे हैं।
**तो आज १९६५ के प्रमाण में ६२ गुना छात्र हिन्दी सीखी जा रही है।**

(तीन-३)हिन्दी विरोधी व्यंग्यचित्र:

“तमिल पुस्तकों से हिन्दी विरोधी व्यंग्यचित्र हटाने की माँग” जो २०१२ में की गयी, वह भी इसी संकेत की पुष्टि करती है।
तमिल पुस्तकों से हिन्दी विरोधी व्यंग्यचित्र हटाने की माँग। Remove anti-Hindi agitation cartoon: Says Karunanidhi. आपने, करुणानिधि द्वारा, तमिलनाडु में, पाठ्य पुस्तकों से हिंदी-विरोधी (Cartoon) व्यंग्यचित्र हटवाने की माँग का, समाचार २०१२ में पढा होगा ही। राजनीतिज्ञ जब ऐसी माँग करते हैं, तो उसके पीछे कुछ कूटनैतिक कारण ही होने चाहिए। कहा जा सकता है, कि, इसका कारण है, तमिलनाडु के युवा छात्र, जो भारी संख्या में आज कल हिन्दी सीख रहें हैं। अर्थात प्रदेशका हिन्दी विरोधी दृष्टिकोण बदल रहा है; और हिन्दी विरोध शिथिल पड रहा है।

(तीन-४) हिंदी की शालाएँ:

पर तमिलनाडु की शासकीय शालाएं अब भी हिंदी नहीं पढाती। कारण लगता है, जिन शासको ने १९६५ में हिन्दी का विरोध कर प्रादेशिक तमिल भाषा का अभिमान जगाया था; वे अपना हिंदी विरोधी दृष्टिकोण सरलता से, छोडने के लिए तैयार नहीं दिखते ।
पर शालाओं के होनहार छात्र शासकीय शालाएँ छोड केंद्र संचालित शालाओं में जहाँ हिन्दी पढायी जाती है; जा रहे हैं। उसी प्रकार निजी विद्यालयों में भी जिन छात्रों के, अभिभावक निजी (प्रायवेट) पाठशाला शुल्क देने की सामर्थ्य रखते हैं, ऐसे छात्र प्रवेश ले रहे हैं। और निजी विद्यालयो में हिन्दी पढाई जाती है।
इन समाचारों से पता चलता है; कि हिन्दी पढने की प्रवृत्ति तमिलनाडु में बढ रही है।

(चार)हिंदी का विरोध कौन कर रहा है:

आजका होनहार छात्र हिन्दी का विरोध नहीं कर रहा।पर, पुराण पंथी पीढी जो, अंग्रेज़ी लिखने में क्षमता रखती है, उस की ओर से विरोध हो रहा है। लिखना जानने के कारण उनका विरोध अधिक मुखर भी हो रहा है। अब इस पुरातन निवृत्त पीढी को कहीं शेष भारत में नियुक्ति के लिए प्रयास भी तो करना नहीं है। यह पीढी निवृत्त हो कर, अपने सुरक्षित आसन के पैंतरे से विरोध कर रही है। { अंशतः मेरे छात्रों, और पूर्व छात्रों का, वार्तालाप, और समाचारों का सार, यही है।}
हिंदी विरोध अब भी सुनाई देता है, पर अब विशेषतः, मात्र निवृत्त वृद्ध विरोध करते दिखते हैं। उनकी संख्या घटने की भी अपेक्षा है।
दूसरा हिन्दी विरोध करनेवाले राजनीतिज्ञ है, जिनका आसन हिंदी विरोध पर टिका हुआ था। पर जब वे देखेंगे, कि, प्रजा का हिन्दी विरोध ढीला हो रहा है, तो वें अवश्य अपना पैंतरा बदलने की क्षमता और चतुराई रखते हैं। जिस प्रकार से हिंदी विरोधी कार्टून हटाने की माँग करूणानिधि ने की थी, उसी प्रकार राजनीतिज्ञ कुछ शब्दों का जुगाड कर ही लेंगे।
संक्षेप में युवा पीढी बदल रही है, निश्चित, उसे समझ आ रही है, और भी अनुभव होता है, कि शेष भारत में, अंग्रेज़ी की अपेक्षा हिन्दी में ही बहु-संख्य प्रजा वैचारिक लेन देन करती है।बाजार में भी शेष भारत में हिंदी ही, चलती है। यात्रा स्थलों पर भी हिंदी ही काम आती है।

(पाँच) आगामी आलेख के बिंदू:

परन्तु हिन्दी को तमिलनाडु में फैलानेवालों को निम्न वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर रण-नीति गढनी होगी। इन बिंदुओं पर आगे के आलेख में विस्तार सहित लिखा जाएगा।
(१) जान लें, कि, तमिल प्रजा के लिए हिन्दी सीखना, अन्य सभी प्रदेशों की अपेक्षा सर्वाधिक कठिन है।
—इस लिए संवेदनशीलता से काम लिया जाए। साथ साथ तमिल प्रजा को, हिंदी सीखने के लिए, कुछ सीमित वर्षों तक, सर्वाधिक प्रोत्साहन भी दिया जाए। आर्थिक प्रोत्साहन भी सोचा जाए।
(२) तमिल लिपि की उच्चारण मर्यादा भी इस कठिनता का कारण है।
(३) पर हिंदी की उपयुक्तता जो तमिलों की, समझ में भी आ रही है; हमारा प्रभावी शस्त्र है;
इसी उपयुक्ततता के आधार पर प्रवेश करना होगा, धीरे धीरे विस्तार कर फैलना होगा।
(४) तमिलनाडु में हिंदी का प्रवेश अनेक स्तरों पर किया जाए, न केवल लिखित स्तर पर।
(५) देवनागरी लिपि को ही बिना हिंदी भाषा पहले सर्वत्र पढाया जाए।
(६) अल्प-शिक्षित छोटे व्यावसायिकों को केवल हिंदी बोलना ही, संस्कृत भारती की सफल पद्धति के ढाँचे से, सिखाया जाए।
(७) अनेक राष्ट्रवादी तमिल भाषी भी, हिंदी के विद्वान हैं। साथ, जिन्हें वहाँ के राजनीति का भी ज्ञान है, और कुशलता पूर्वक जो हिंदी को प्रचलित करने का प्रयास करेंगे; ऐसे विद्वानों की सहायता ली जाए। अंदर का जानकार जो सहायता कर सकेगा, वो दिल्ली में बैठा हिंदी का कोरा विद्वान नहीं कर सकता।
पाठकों की ओर से, टिप्पणी अपेक्षित है; विशेषतः हिंदी हितैषी पाठकों से,
अपना अलग मत भी अवश्य टिप्पणी में दर्शाएँ जिससे अगले आलेख की रचना में सहायता हो।
वंदे मातरम्‌।