कोरोना से सुरक्षा कैसे

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                          -वैद्य राजेश कपूर     

ब इतना तो स्पष्ट हो चुका है कि कोरोना का विषाणु सम्पर्क से फैलता है, इक्यूबेशन काल 14 दिन नहीं 4 दिन है, यह पहले से प्रकृति में है। सबसे महत्व की बात है कि इसका आवरण मेद (फैट) से बना है और भीतर इसका आर.ऐन.ए. सुरक्षित है। पिछले वर्षों के प्राप्त आँकड़ों के अनुसार इसकी मृत्युदर 0.1% रही है।

इन्फ्ल्यूएंजा जैसे रोगों से इटली में हर साल लगभग 20,000 लोग मरते हैं। इस वर्ष भी यह दर इसी के आसपास रहेगी। 

अमेरीका में हर वर्ष ऐसे रोगों से औसतन 60,000 लोग मरते हैं। इस वर्ष भी मृत्यदर इतनी ही रहनी है। कोरोना नामक इस विषाणु से संसार में लोग पहले भी ग्रसित होते थे। फिर कोरोना का इतना भय क्यों है? इसपर विचार करने की आवश्यकता है। इस आशंका को नकारा नहीं जासकता कि पड़ौसी देश चीन ने “जैविक हथियार” के रूप में इसका प्रयोग किया हो। अतः  आतंकित हुए बिना इससे बचाव के उपाय किये जाने चाहियें। सरकार के साथ हमें पूरा सहयोग करना चाहिये। यह रोग निश्चित रूप से असाध्य नहीं, मारक नहीं है।

हमारे अनेक वर्षों के अनुभवों के अनुसार कोरोना से मृत्यु का प्रमुख कारण अत्यन्त हानिकारक ऐलोपैथिक दवाएं हो सकती हैं जो रोगी के सुरक्षातंत्र के लिये घातक सिद्ध होरही हैं।

आयुर्वेद, पारम्परिक चिकित्सा, होम्योपैथी, प्रकृतिक चिकित्सा में कोरोना जैसे रोगों के अति उत्तम समाधान उपलब्ध हैं। इन पद्धतियों को अवसर न देना एक बड़ी भूल है।

1.किसी भी वायरस से रक्षा के लिये सबसे जरूरी है ‘रोगनिरोधक शक्ति’ या इम्यूनिटी।

1.2.इस शक्ति के स्रोत हैं शुद्ध व ताजी हवा, शुद्ध जल, ऊर्जा से भरा भोजन, विश्राम और सकारात्मक सोच।

1.3. विनायल, नायलोन, डिग्रेडेबल आदि सामग्री से बने मास्क पहनने के कुछ ही मिनेट में हमारी जीवनीशक्ति तेजी से घटने लगती है। होता यह है कि हमारे फेफड़ों में बहुत बड़ी मात्रा में डायाक्सीन व फेरोन गैस पहुंचने लगती है जो सुविज्ञात कैंसर का कारण है। ये गैसें मास्क की सन्थेटिक सामग्री से क्षरित (लीचआऊट) होती हैं। 

पीवीसी, नायलोन आदि के इन दुष्प्रभावों पटर अनेक खोजपत्र इसपर पहले से उपलब्ध हैं।

1.4.बाजार में उपलब्ध सभी मंहगे या सस्ते साबुन ऐस.ऐल.ऐस., पैराबीन्ज़, पपृमिटिड फ्लेवर, परमिटिड कलर से बने हैं। साबुन के ये सब विषैले रसायन शरीर के  रोमछिद्रों से सीधे हमारे रक्तप्रवाह में पहुंचकर हमारे सुरक्षा तंत्र को नष्ट करने लगते हैं, दुर्बल व रोगी बनाते हैं। खोजपत्रों के अनुसार परमिटिड रंग व सुगंध भी कैंसरकारक हैं। अतः हमपर उनका विषाक्त प्रभाव होता है। पैराबीन्ज़ का अर्थ है कीटनाशक, कवक नाशक विषैले रसायन। ऐसे साबुन से बार-बार हाथ धोने का अर्थ है अधिक विषाक्तता, अधिक दुर्बलता, अधिक रोग।

1.5. अल्कोहल तथा पैराबीन से बने सैनेटाईज़र भी रोमछिद्रों से सीधे रक्तप्रवाह में पहुंचकर हमें क्रमशः क्षीण बनाने का काम करते हैं।

1.6.कोरोना वायरस को मारने की कोई प्रमाणिक दवा तो बनी नहीं। डेंगू, मलेरिया आदि के अनेक प्रकार के एंटीबायोटिक्स देकर रोगियों को और दुर्बल बनाने की भूल निरन्तर होरही है।

*2.1.तो कुल मिलाकर हम कोरोना से सुरक्षा के नाम पर जितने उपाय कर रहे हैं, वे जीवनीशक्ति नष्ट करने वाले, अधिक रोगी बनाने वाले हैं। इसी प्रकार चलता रहा तो परिणाम यह होगा कि एक-दो मास बाद कुछ करोड़ लोग गम्भीर रूप से बीमार होजाएंगे, जीवनीशक्ति अत्यधिक घटजाने के कारण। 

*हम समस्या के समाधान के नाम पर अपनी समस्याओं को कई गुणा बढ़ा तो नहीं रहे, इसपर विचार करना चाहिये।

*3.समाधान*

हम बचाव व चिकित्सा के लिये निम्न उपाय कर सकते हैं…

3.1.मास्क प्रयोग करना जरूरी है तो सूती वस्त्र के बनाएं। बार-बार धोकर प्रयोग किये जा सकते हैं। प्रेरित किया जाए तो कई गृहणियाँ घर पर ही मास्क बना लेंगी। धोने के लिये निम्बू, फिटकरी, पानी अथवा देसी नरोल साबुन पर्याप्त होंगे।

डिटरजेंट का प्रयोग उचित नहीं।

3.2.वायरस को नष्ट करने के लिये फैट से बनी उसकी सतह को तोड़ने वाली सामग्री चाहिये। तो निम्बू, फिटकरी, गर्म पानी का मिश्रण अथवा रीठा या राख (गाँव के लिये)आदि आसानी से यह काम करेंगे। फैट को नष्ट करने वाली कोई भी सामग्री केवल 20 सेकेंट में विषाणु का आवरण तोड़कर उसके आर.ऐन.ए.को विघटित कर देती है। कपड़े धोने का देसी नरोल साबुन विषरहित है। वह भी बहुत अच्छा काम करेगा।

3.3.सेनेटाईज़र के लिये पानी में फिटकरी, निम्बू का रस, कपूर डालकर प्रयोग करना पर्याप्त है। नीम, तुलसी का काढ़ा या अर्क भी बढ़िया काम करता है। विषैले व महंगे सेनेटाईजर की हमें आवश्यकता ही नहीं। हरकोई घर पर बना लेगा।

3.4.दवाओं के रूप में कुटकी, वासावलेह, सीतोपलादी चूर्ण, कफ़कुठार आदि रसौषधियों का प्रयोग वैद्य के निर्देशन में करना चाहिये। *वासावलेह का प्रयोग निरापद है। एक-एक चम्मच तीन बार रोज गर्म पानी से लेसकते हैं। कैमिस्ट से मिलेगा।

*अमृतधारा का प्रयोग निश्चित परिणाम देता है। भारत के वैद्य सैंकड़ों या हजारों वर्ष से अनेक रोगों के साथ विषाणु (वायरस) रोगों पर भी सफ़लता से इनका प्रयोग कर रहे हैं। अमृतधारा तो घर-घर में हजारों साल से चलता रहा है। 

बाजार के अमृतधारा में हानिकारक युक्लिप्टिस आयल 60-70% तक है। अतः चाहें तो घरपर बना लें। 

शुद्ध भीमसेनी कपूर, पिपरमिंट या सत पुदीना, सत अजवाईन; इन तीनो को समान मात्रा में काँच की शीशी में डाल दें। कुछ घण्टे में पिघलकर अमृतधारा बनजाएगा। यह बाजार वाले अमृतधारे से बहुत अधिक तेज है।

बस इसकी एक बूँद 4-5 चम्मच पानी या खाँड, बूरा, शक्कर आदि में मिलाकर रोज प्रातः लेलिया करें। एक बूँद अपने रुमाल पर भी लगालें।

पूरा दिन सभी प्रकार के कीटाणु, विष्णुओं से आपकी रक्षा होगी।

वमन, दस्त,जुकाम, दमे का.दौरा, दस्त, मरोड़, सरदर्द, सर्दी आदि अनेक रोगों में काम करेगा।

खाँसी, जुकाम, ज्वर जैसे रोग होने पर दिन में तीन बार लें। घी, तेल, चिकनाई, ठण्डा बन्द रखें। बहुत अच्छे परिणाम होंगे।

*अमलतास की फली का 2-3 इंच का टुकड़ा तोड़कर 150 ग्राम, 150 ग्राम पानी मिलाकर लोहे या मिट्टी या कलई वाले बर्तन में पकाएं। पककर आधा रहे तो छानकर पीलें। कफ़ रोगों में तुरन्त लाभ मिलेगा।

* डा. विश्वरूप राय चौधरी को यूट्यूब पर सुनें। उनके बताए उपाय करने से गम्भीर रोगी भी ठीक होते देखे हैं। वे सायं या रात्रि भी पत्तों के रस व फलों का सेवन बताते हैं, बस वह न लें। उसके स्थान पर पत्ते पकाकर सूप लेलें।

3.5.जीवनीशक्ति बढ़ाने के लिये ऐलोपैथी में अभीतक कुछ विशेष नहीं है। पर भारतीय परम्परा में गिलोय, तुलसी, हल्दी, मेथी, त्रिफ़ला, पारिजात आदि का सफ़ल प्रयोग होरहा है। सुरक्षातंत्र सशक्त बनाने के लिये दैनिक हरे या सूखे तीन आँवले खाएं। सब्जियों, पत्तों का.रस प्रातः व दोपहर को लें। रात्रि सूप लें। रात को भोजन करने से जीवनीशक्ति दुर्बल होती है। होसके तो रात्री भोजन न करें। स्वास्थ्य में बहुत सुधार होगा, आयु लम्बी होगी।

3.6. बाजार की धूप, अगरबत्ती विशैले रसायनिक पदार्थों से बनी हैं। उन्हें जलाने से पर्यावरण प्रदूषित होता है तथा घर के सभी लोगों की जीवनी शक्ति घटती जाती है। अतः उन्हें जलाना बंद कर देना चाहिए। संभव हो तो हवन अथवा अग्निहोत्र करें। उसके लिए शुद्ध सामग्री का ही प्रयोग करें। अथवा गोबर की धूप नियमित रूप से जलाएं। आप देखेंगे कि कुछ ही दिन में घर के वातावरण में सुखद परिवर्तन होंगे। महत्वपूर्ण यह है कि देसी गाय का गोबर, देसी गाय का शुद्ध घी और चुटकी भर गुड़ को मिलाकर जलाने से सभी प्रकार के रोगाणु, कीटाणु, विषाणु नष्ट होते हैं। विशैली गैसें  समाप्त होते हैं तथा सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होता है। हमारा अनेक वर्षों का अनुभूत अनुभव है।

4.1.ऐलोपैथ अपना काम कर ही रहे हैं, पर आशंका है कि इन दवाओं के कारण कोरोना की मृत्यदर बढ़ रही होगी। इस पर अध्ययन होना चाहिये।

भारत जैसे देश के लिये केवल ऐलोपैथी पर निर्भर रहना उचित नहीं। चिकित्सा की हमारी एक स्मृद्ध परम्परा है। ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि प्लास्टिक सर्जरी, चेचक का टीका, मोतियाबिंद की सर्जरी, बर्फ़ जमाना युरोप ने हमसे सीखा है।

अतः हमें हमारे देश के पारम्परिक चिकित्सकों को भी कोरोना से (स्वतंत्र रूप से) निबटने का पूरा अवसर देना चाहिये।

आशा है उनका एक भी रोगी मरेगा नहीं, सभी ठीक होंगे। बिना दुष्प्रभावों के, बहुत कम खर्च में रोगी ठीक होंगे।

4.2. दोनो (अथवा अधिक) चिकित्सा पद्धतियों के परिणामों के आँकड़ों का संग्रह, तुलनात्मक अध्ययन होना दूरगामी परिणाम देगा। यह प्रयास भारत की स्वास्थ्य नीति के लिये दिशानिर्धारक सिद्ध होसकता है।

11 COMMENTS

  1. Vaidh ji aapke lature sune h hmne u tube pr bhi .bhot gyaan wali baatain suni aapse .
    Sach kha h aapne ki hme bhot vichar krne ki jarurat h.
    Sb kaam sarkar kese kregi.kuch hmara bhi farz h .ki hm ache logo se jude or ek dusre ka bhala kre.
    Desh ko bhi swastha krne m aage aaye.
    Baki Dr.biswaroop ray ji ko bhi sune .
    Corona k khilaf jang unhone bhi bhot ache dhang se ldi h or ld rhe h.
    Hme unka bhi saath dena chahiye

  2. वैद्य राजेश कपूर जी, प्रवक्ता.कॉम पर प्रस्तुत आपके सभी आलेख व टिप्पणियों में आपके विचार सदैव ज्ञानवर्धक तो होते ही हैं लेकिन स्वयं मेरे लिए उनका एक विशेष प्रेरणादायक महत्त्व रहा है| उन्नीस सौ चालीस के दशक के उत्तरार्ध दिल्ली के करोल बाग़ स्थित छप्पर वाला कुआं के चौराहे के समीप एक हकीम (गुनगना) और कुछ ही दूर नाई वाला गलियों में एक वैद्य हुआ करते थे बचपन में खांसी जुकाम बुखार अथवा फोड़ा-फुंसी होने पर बाबूजी मुझे उनके पास ले जाया करते थे| जिह्वा पर च्वर्के की कड़वाहट आज भी अनुभव कर सकता हूँ| भारत में आयुर्वेद और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का फिर से प्रचलन न केवल स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है बल्कि मैं समझता हूँ कि ऐसी स्थिति सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से भी हितकारी है|

    आयुर्वेदिक चिकित्सा के फिर से प्रचलन द्वारा सामाजिक व आर्थिक अपेक्षित लाभ केवल परंपरागत भारत की कुल जनसंख्या को सोच कर ही लगाया जा सकता है| आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गाँव में रह रहे बहुसंख्यक परम्परागत भारतीय आत्मा और परमात्मा के बीच केवल स्वस्थ शरीर को महत्वपूर्ण समझते हैं और यदि उन्हें पाश्चात्य सभ्यता की अनावश्यक उपलब्धियों से उत्पन्न मृग तृष्णा से दूर रखा जा सके तो युगपुरुष मोदी जी के स्वच्छ-भारत में आयुर्वेद व आयुर्वेदिक चिकित्सा उनके स्वास्थ्य को दीर्घ आयु तक सुडौल बनाए रख सकते हैं| क्रमशः

  3. डॉ कपूर साहब इतना सुगठित, बहुउपयोगी लेख जनसामान्य के लिए प्रस्तुत करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार। डॉ राज।

  4. बहुत ही अच्छी जानकारी है आपकी। वास्तम में कोरोना से बचना बहुत ही जरूरी है। यह पुरे विश्व भर में माहमारी की तरह व्याप्त होता जा रहा है।

  5. बहुत ही अच्छी जानकारी है आपकी। वास्तम में कोरोना से बचना बहुत ही जरूरी है। यह पुरे विश्व भर में माहमारी की तरह व्याप्त होता जा रहा है।

  6. बहुत सुन्दर व ज्ञानवर्द्धक ! लेकिन भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय तो वही करेगा जो युरोप-अमेरिका में होगा । कृपया अपना फोन नम्बर और पता भेजें सर !

    • मनोज ज्वाला जी, प्रवक्ता.कॉम पर प्रस्तुत आपके आलेख पढ़ उनसे बहुधा सहमत, मैं उन्हें शोधकर्ताओं व भारतीय नीति-निर्माताओं के लिए सामग्री के रूप में देखता हूँ| हमें थॉमस बैबिंगटन मैकॉले को नेहरु की कांग्रेस के साथ पीछे छोड़ते युगपुरुष मोदी जी के नेतृत्व के अंतर्गत केंद्र में स्थापित राष्ट्रीय शासन के साथ मिल भारतीय सभ्यता से नाता जोड़ना है| यदि समय बीतते आयुर्वेद को लेकर वैद्य राजेश कपूर जी के विचार लोकप्रिय हो कार्यान्वित किये जाएं तो आप और हम स्वास्थ्य मंत्रालय में बैठे वही करेंगे जो देश व देशवासियों के हित में होगा| समान विचारधारा के होते यदि हम कहीं इकट्ठे बैठे होते तो मैं आपको छेड़ते “सर” को त्याग महाशय, महोदय, श्रीमान, जनाब, लाला जी, और न जाने कितने संबोधनों को प्रयोग में लाने के लिए कहता!

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