ये कैसी राजनीति

bspउत्तर प्रदेश के एक प्रमुख राजनैतिक दल बहुजन समाज पार्टी का एक मुस्लिम सांसद भरी संसद में वंदेमातरम् का गान करने से मना कर देता है और लोकसभा अध्यक्ष द्वारा इस पर चेतावनी देने के उपरांत भी वह आगे भविष्य में ऐसा करने की अपनी बात को दोहराता है परन्तु उस मुस्लिम सांसद पर उस दल की नेता किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी नहीं करती न ही उसे पार्टी से निष्कासित किया जाता है। वहीं बसपा का एक सांसद गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करता है तो उसे तुरन्त पार्टी प्रमुख अपनी पार्टी से निलम्बित कर देती है।

क्या मायावती जी के लिए देश से बढ़कर मुस्लिम वोट बैंक हो गया है जो वह एक मुस्लिम सांसद को देशद्रोह करने के उपरांत भी किसी प्रकार का कोई दंड देने की बात तो दूर उसको भविष्य में ऐसा न करने की चेतावनी तक नहीं देती हैं। मुस्लिम जो चाहे वह करे, जो मर्जी कहे, राष्ट्रगीत वंदेमातरम् का अपमान करे परन्तु उन्हें कुछ नहीं कहा जायेगा। वंदेमातरम् जिसको गाकर तथा उससे प्रेरणा लेकर न जाने कितने देशभक्तों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, जिसके द्वारा आज भी भारत पुत्र अपनी माँ भारती की वंदना करते हैं।
यदि नकली धर्मनिरपेक्षतावादी से पूछा जाए तो वह वंदेमातरम् के विरोध को अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहेगा और मोदी जी के समर्थन को घोर साम्प्रदायिकता का नाम देगा।

बसपा प्रमुख अपने आप को दलितों का नेता कहती है और वह अपने आप को महान देशभक्त भारत रत्न डाॅ. अम्बेडकर की वंशज बताती है वह डाॅ. अम्बेडकर जिन्होने भारत माँ की आजादी के लिए न जाने अंग्रेजो की कितनी लाठियां खाई। उन्होंने स्वयं लोकसभा में वंदेमारत को राष्ट्रगान बनाने का समर्थन किया था मायावती जी उन्हीं का नाम लेकर प्रदेश की सत्ता तक पहुंची। क्या कोई दलित वंदेमातरम् का विरोध करता है, क्या वह अपनी भारत माता को डायन कहता है, जो भूमि उसको अन्न देती है क्या वह उसका किसी भी प्रकार का अपमान करेगा या सहेगा परन्तु आज मायावती जी दलितों की नेता न होकर भारत मां को गाली देने कुछ कट्टरवादी मुसलमानों की नेता बन गई है ऐसा जान पड़ता है। माया जी ने एक देशभक्त का समर्थन करने पर अपनी पार्टी के सांसद को तो निष्कासित कर दिया परन्तु देशद्रोह पूर्ण आचरण करने वाले सांसद को अपनी पार्टी में बनाए रखा है।

मायावती जी राष्ट्रवादी संगठनों आरएसएस, वीएचपी, बजरंग दल पर प्रतिबन्ध लगाने की मांग करती जो देश के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर करने को तैयार रहते है परन्तु आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहीद्दीन, सिमी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय जिसने पाकिस्तान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, मार्च 2012 से लेकर आज तक न जाने कितने साम्प्रदायिक दंगे उत्तर प्रदेश में मुसलमानों द्वारा किए गए जिसमें न जाने कितने दलितों को अपने जान-माल की हानि उठानी पड़ी पर कभी उनकी किसी भी प्रकार की जांच, मुम्बई के आजाद मैदान में अमर जवान ज्योति का अपमान करने वाले मुस्लिमों को गिरफ्तार करने की मांग की? क्या मायावती जी सिर्फ मुसलमानों की वोटो के बल पर ही प्रधानमंत्री बनने के सपने संजोये बैठी हैं जिस प्रकार सपा के मुलायम सिंह। उनकी इस प्रकार एक समुदाय विशेष के लिए राजनीति करने के कारण उनमें और मुलायम सिंह में क्या फर्क रह गया है। आखिर मायावती जी अपनी इस प्रकार की राजनीति से देश को किस प्रकार का संदेश देना चाहती है।

आज देश में जिस प्रकार मुस्लिम उन्मुखी राजनीति हो रही है उससे तो ऐसा लगता है कि आने वाले समय में सरकारें सिर्फ मुसलमानों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए ही कानून बनाएंगी और हिन्दुओं को देश निकाला दे देंगी।

आर. के. गुप्ता

2 COMMENTS

  1. स्वयं आंबेडकर जी इस प्रकार के मुस्लिम्वादी नहीं थे. धर्म परिवर्तन
    भी बोद्ध में किया, न की मुस्सल्मान और इसायी में. दुःख की बात है
    की सत्ता लोलुप पढ़े लिखे लोग भी मायावती का साथ दे रहे है.

    साथ साथ मोदी को डुबाने की पूरी कोशिश बीजेपी के ही धुरंधर
    नेता कर रहे है. खुद तो वोह जीत नही सकते, पर अगर कोई जीत सकता
    है उसे भी आगे नहीं बढ़ने देंगे. उन्हें डूब मरना चाहिए.

  2. मायावती जी को जबसे प्रधान मंत्री बनने का सपना दिखाई देने लगा है उन्हें लगने लगा है की मुस्लिमों के तलवे चाटे बिना वहां तक नहीं पहुँच सकती हैं.हालाँकि उत्तर प्रदेश में २०१२ के चुनावों ने उन्हें आईना दिखा दिया था की मुसलमानों की उत्तर प्रदेश में पहली पसंद मुलायम सिंह हैं.फिर भी सेकुलेरिया की बीमारी ऐसी ही है की एक बार शारीर में घुस गयी तो फिर बहुत तगड़े राष्ट्रीयता के इंजेक्शन से ही उपचार हो सकता है.इसके लिए बहन मायावती जी का मानसिक स्वास्थ्य अभी अनुकूल नहीं है.

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