
विश्व हास्य दिवस- 3 मई 2020 पर विशेष
-ललित गर्ग –
विश्व हास्य दिवस विश्व भर में मई महीने के पहले रविवार को मनाया जाता है और इस वर्ष कोरोना महामारी के बीच जन-जन में व्याप्त तनाव, परेशानी एवं मानसिक असंतुलन के बीच इस दिवस का विशेष महत्व है। हास्य सकारात्मक और शक्तिशाली भावना है जिसमें व्यक्ति को ऊर्जावान और संसार को शांतिपर्ण बनाने के सभी तत्व उपस्थित रहते हैं। विश्व हास्य दिवस का आरंभ संसार में इंसान को स्वस्थ एवं प्रसन्न रखने, शांति की स्थापना और मानवमात्र में भाईचारे और सद्भाव के उद्देश्य से हुई। आज पूरे विश्व में लगभग दस हजार से भी अधिक हास्य क्लब हैं।
इस समय जब अधिकांश विश्व कोरोना कहर के डर से सहमा हुआ है तब हास्य दिवस की अत्यधिक आवश्यकता महसूस होती है। इससे पहले इस दुनिया में इतनी चिन्ता, अनिश्चितता एवं महामारी का प्रकोन कभी नहीं देखा गया। हर व्यक्ति के अंतर आत्मद्वंद्व मचा हुआ है, भय एवं आशंकाएं परिव्याप्त है। ऐसे में हंसी दुनियाभर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सकती है। हास्य व्यक्ति के विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र को प्रभावित करता है और व्यक्ति में आत्म विश्वास,सकारात्मक ऊर्जा एवं आनन्दित जीवन जीने की इच्छा का संचार करता है। जब व्यक्ति समूह में हंसता है तो यह सकारात्मक ऊर्जा पूरे क्षेत्र में फैल जाता है और क्षेत्र से नकारात्मक ऊर्जा को हटाता है। हास-परिहास पीड़ा का दुश्मन है, निराशा और चिंता का अचूक इलाज और दुःख मुक्ति के लिए रामबाण औषधि है।
आज का जीवन मानव इतिहास का सबसे जटिल आपदा एवं महामारी के प्रकोप का समय है, आम आदमी कोरोना कहर के तनाव एवं परेशानियों से घिरा हैं, ऐसे जीवन में व्यक्ति के चेहरे से मुस्कान ही गायब हो गयी है, हास्य एवं विनोद से वंचित जीवन मानव के लिये एक जटिल पहेली बनता जा रहा है। जबकि जीवन में विनोद का सर्वाधिक महत्त्व है। हास्य ही एक ऐसा माध्यम है, जो व्यक्ति के तनावपूर्ण जीवन में कुछ क्षणों के लिए खुशी लाता है। हास्य-रस एक बुझे हुए दीपक में तेल की नवऊर्जा का संचार करता है।
हास्य-व्यंग्य का इस महामारी के समय हमारे जीवन में इसलिये भी सर्वाधिक महत्त्व है क्योंकि यह जीवन को स्वस्थ बनाये रखने में यह अहम् भूमिका का निर्वाह करता है। उत्तम स्वास्थ्य के लिए हँसना भी उतना ही जरूरी है जितना श्वास लेना। हास्य जीवन का अनमोल तोहफा है, जो व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के साथ-साथ समस्याओं से जूझने की ताकत देता है। हास्य जीवन का प्रभात है, शीतकाल की मधुर धूप है जो ग्रीष्म की तपती दुपहरी में सघन छाया का काम करती है। इससे आप तो आनंद पाते ही हैं दूसरों को भी आनंदित करते हैं।
हास्य के बिना न केवल जीवन अधूरा है बल्कि नीरस भी है। जीने की कला का यह सबसे बेहतर रास्ता है, जो हमारे थके हारे मन को ताजगी देता है, जीवन की विडम्बनाओं पर खुल कर हंसने का अवसर देता हैं और कोरोना की जटिल परिस्थितियों से जूझने का मनोबल भी देता है। हास्य बीमारी से लड़ने का सशक्त हथियार है जो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ता है। केवल मनुष्य जाति को ही हास्य का आनन्द लेना आता है। यदि जीवन में हास्य न हो तो जीवन भारभूत बन जाता है। इसलिये जितने भी महापुरुष हुए है उन्होंने हास्य को अपने जीवन में महत्वपूर्ण बनाया। हास्य में किसी व्यक्ति, संस्था पर व्यंग्य नहीं होता। किसी का मजाक उड़ाने की भावना नहीं होती, इसलिये इसका आनन्द सभी ठहाका लगाकर उठाते हैं, लेकिन यही हास्य जब व्यंग्य के साथ सम्मिलित होकर निन्दा की घोषणा करने लगता है, तब उपहास बनकर महाभारत का युद्ध करा देता है, इसलिये उपहास किसी का भी करना एक बड़ा गंभीर मामला है। लोक में जिनका उपहास होता है, जरूरी नहीं कि वे उपहास का पात्र हो। आज तक अनुभव यह है कि लोक में जिसका उपहास किया जाता है, वह वास्तव में प्रतिभा-सम्पन्न व्यक्ति होते हंै। प्रभु यीशू से सुकरात तक जाने कितने उदाहरण हैं, जिनसे यह सिद्ध किया जा सकता है कि उपहास सहनेवालों ने विश्व को नये विचार दिये हैं और दुनिया को सुन्दर बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान किया है। दार्शनिक शिवानन्द का कहना है, ‘‘मजाक चतुराई से किया गया, अपमान है।’’ इसलिये भूलकर भी किसी का उपहास मत कीजिये। हमें यह अधिकार नहीं है कि हम किसी का उपहास करें।
दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है ही नहीं, जो पूर्णतः निर्दोष हो। तब हममें ही अनेक अवगुण हैं, दोष हैं, विकार हैं, तब हम अन्य किसी के अवगुणों को लेकर उसका उपहास कैसे कर सकते हैं? हिन्दी में एक बड़ी अच्छी लोकोक्ति है, ‘सूप हंसे तो हंसे, चलनी भी हंसे जिसमें बहत्तर छेद’। अगर हमंे हंसना ही हो तो अपनी कमजोरियों पर ही हंसना चाहिये। जो व्यक्ति निर्मल हृदय होगा, वह किसी का उपहास कर ही नहीं सकता। उसमें तो अपार करुणा होती है। दुनिया में आज तक उपहास से किसी का सुधार नहीं हुआ है। इसके कारण खून-खराबा अवश्य हुआ है। सामाजिक और राजनीतिक जीवन में हम हर दिन एकदूसरे का उपहास करने सेे होने वाली असामान्य स्थितियों को देखते ही है। द्रोपदी के उपहास के कारण ही महाभारत जैसा भयावह युद्ध हम इतिहास में देखते हैं। हिन्दी में एक लोकोक्ति प्रचलित है, ‘रोग का घर खांसी, झगड़े का घर हांसी’, अर्थात् अनेक रोगों का मूल खांसी है और झगड़ों का मूल कारण किसी की हंसी उड़ाना है। खलील जिब्रान ने सटिक लिखा है, ‘‘उपहास मृत्यु से अधिक कटू है।’
शरीर में पेट और छाती के बीच में एक डायफ्राम होता है, जो हँसते समय धुकधुकी का कार्य करता है। फलस्वरूप पेट, फेफड़े और यकृत की मालिश हो जाती है। हँसने से ऑक्सीजन का संचार अधिक होता है व दूषित वायु बाहर निकलती है। नियमित रूप से खुलकर हँसना शरीर के सभी अवयवों को ताकतवर और पुष्ट करता है व शरीर में रक्त संचार की गति बढ़ जाती है तथा पाचन तंत्र अधिक कुशलता से कार्य करता है, इसलिये कोरोना को परास्त करने के लिये हास्य-योग बहुत उपयोगी है।
लखनऊ के रेलवे स्टेशन से आदमी बाहर निकलता है तो बड़े अक्षरों में लिखे बोर्ड पर नजर टिकती है- ‘मुस्कुराइए कि आप लखनऊ में हैं।’ यह वाक्य पढ़ते ही यात्रियों के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल जाती है। इस एक वाक्य में लखनऊ की जिंदादिली व खुशमिजाजी के दर्शन होते हैं। जीवन में निरोगी रहने के लिए हमेशा मुस्कुराते रहना चाहिए। खाना खाते समय मुस्कुराइए, आपको महसूस होगा कि खाना अब अधिक स्वादिष्ट लग रहा है। थैकर एवं शेक्सपियर जैसे विचारकों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि प्रसन्नचित व्यक्ति अधिक जीता है। मनुष्य की आत्मा की संतुष्टि, शारीरिक स्वस्थता व बुद्धि की स्थिरता को नापने का एक पैमाना है और वह है चेहरे पर खिली प्रसन्नता।
हास्य एक सार्वभौमिक भाषा है। इसमें जाति, धर्म, रंग, लिंग से परे रहकर मानवता को समन्वय करने की क्षमता है। हंसी विभिन्न समुदायों को जोड़कर नए विश्व का निर्माण कर सकता है। यह विचार भले ही काल्पनिक लगता हो, लेकिन लोगों में गहरा विश्वास है कि हंसी ही दुनिया को एकजुट कर सकती है। मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से यह स्पष्ट हुआ है कि अधिक हँसने वाले बच्चे अधिक बुद्धिमान होते हैं। हँसना सभी के शारीरिक व मानसिक विकास में अत्यंत सहायक है। जापान के लोग अपने बच्चों को प्रारंभ से ही हँसते रहने की शिक्षा देते हैं।