मैं जहाज़ी हूं समंदर मेरी पाठशाला है

                 प्रभुनाथ शुक्ल

सात समंदर पार सिंगापुर में हिंदी की अलख जगा रहे विनोद दुबे का हालिया प्रकाशित कविता संग्रह ‘जहाज़ी’ बेहद चर्चित हो रहा है। लोगों यानी पाठकों को खूब पसंद आ रहा है। कविता संग्रह जहाज़ी में कुल 52 कविताएं संकलित हैं। सभी कविताएं जीवन के 52 आयामों को करीने और संजीदगी से जीती हैं। सहज, सरल और बोधगम्य भाषा में लिखी गई रचनाएं लोगों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव डालती हैं। जहाज़ी में जीवन की विविध रंग और रूप कविताओं के माध्यम से जीवंत हैं। यह आम आदमी का जीवन संघर्ष है। बदलते दौर में आदमी का जीवन बाजारवाद की भेंट चढ़ गया है। कविताओं यह पीड़ा साफ झलकती है।

विनोद दुबे मूलत: उत्तर प्रदेश के भदोही के रहने वाले हैं। लेकिन सिंगापुर में एक शिपिंग कंपनी में कार्यरत है। वे युवा हैं लिहाजा उनकी कविताओं में एक युवा की संवेदना और पीड़ा कविताओं में दिखती है। उनकी कविताएं आम बोलचाल की भाषा में लिखी गई है। अपने बारे में वे स्वयं लिखते हैं ‘ मैं जहाज़ी हूं / समंदर मेरी पाठशाला है / मैं सूरज को समुंदर से निकलते / रोज उसी में ढलते देखता हूँ। यह चंद लाइनें उनकी पूरी सोच को दर्शाती हैं।

विनोद की रचनाओं में समंदर और इंसान के जीवन का संघर्ष साफ दिखता है। काव्य संग्रह जहाज़ी की रचनाएं छह खंडों में विभाजित हैं। इस तरह कुल 52 कविताएं संकलित की गई हैं। इन्होंने एक उपन्यास ‘इंडियापा’ भी लिखा है। सिंगापुर में रहकर वह हिंदी के प्रचार प्रसार में अच्छी खासी भूमिका निभा रहे हैं। भारतीय उच्चायोग की तरफ से उन्हें ‘हाईली इंरिचेड पर्सनैलिटी’ सम्मान से सम्मानित किया गया है। साहित्यिक संस्था विश्वरंग की तरफ से ‘प्रवासी साहित्यकार सम्मान’ भी मिला है इतनी व्यस्तताओं बाद भी जब दिल को कोई बात प्रभावित करती है तो कविता निकल उठती है और जहाज में ही कविता लिखने बैठ जाते हैं।

कारपोरेट जगत की विसंगतियों को उन्होंने छूने का प्रयास किया है। कारपोरेट पिंजरा नामक शीर्षक से उन्होंने लिखा है’ हमें कुछ और करना था/ कुछ और ही कर रहे हैं हम/ जितना जी रहे हैं हम/ उससे ज्यादा मर रहे हैं हम। अपनी पेशागत विडंबनाओं को उन्होंने दर्दे-ए -जहाजी नामक शीर्षक से कुछ यूं बयां किया है। हम जहाजी हैं हमारा काम / लोग क्या खाक समझ पाएंगे / जमीन वाले सिर्फ अपनी समझ से / सिर्फ अंदाजा ही लगाएंगे।

मां के चले जाने के बाद पिता के अकेलेपन को उन्होंने बखूबी उकेरा है। मां मर गई तो पिता क्या हो गए / जैसे दो में से एक नहीं / सिर्फ शून्य शेष रह गया। भाई बहन के प्यार रक्षाबंधन के त्यौहार पर उनकी पीड़ा देखिए। हम बहनों के पास / नहीं था कोई सगा भाई/ राखी होती थी मेरे पास / पर मिलती नहीं थी कलाई। प्रेम के भाव को प्रदर्शित करती है रचना बेहद सुंदर है। देह किसी और का / किसी और का मन/ कई औरतें जीती रहती हैं / मीरा जैसा जीवन। मित्रता को प्रदर्शित करने वाली पंक्तियां बेहद प्रभावित करती है। दोस्ती के खातिर कर्ण की तरह / किसी भी अर्जुन से भीड़ जाते हैं / दुर्योधन सही था या गलत / यह सब बाद में बतियाते हैं।

विनोद दुबे ने जहाज़ी कविता संग्रह में जीवन के हर पहलुओं को जीने की कोशिश की है। स्वदेश से लेकर विदेश तक जिस मुद्दे ने उन्हें छुआ उसी पर उनकी कलम उठ गई। त्योहारों पर उन्होंने बेहतर लिखा है। रामनवमी शीर्षक से अपनी कविता में उन्होंने लिखा है। दशहरा दिवाली रामलीला / बस कुछ दिनों का इत्र है / ता उम्र महकने दो भीतर / यह जो राम का चरित्र है। विदेश की धरती भले ही सुख-सुविधाओं से भरी हो लेकिन अपने वतन की मिट्टी हमेशा महकती है। दिवाली पर घर न पहुंचने की पीड़ा को दर्शाती है यह रचना। इस बार कैसे भी मन मार लेते हैं / पर अगले साल नहीं रोक पाएंगे/ वक्त और नसीब जरा साथ जो दे / तो अगली दिवाली घर पर मनाएंगे।

सावन शीर्षक से उन्होंने बचपन की यादों को कुछ इस तरह पिरोया है। कागज में उम्मीद मिलाकर / हम नाव बनाया करते थे/ आंगन के पानी में वह सारे / ख्वाब आया करते थे। विनोद दुबे की सभी कविताएं पठनीय हैं और दिल को छूती है। निश्चित रूप से जहाज़ी उनका पहला कविता संग्रह है। लेकिन पाठक को बेहद प्रभावित करता है। विदेश में रहकर हिंदी की अलख जगा रहे हैं। इसके लिए उन्हें साधुवाद। अगर आप साहित्य प्रेमी हैं तो उनके कविता संग्रह जहाज़ी
को जरूर पढ़े।

कविता संग्रह: जहाज़ी
लेखक: विनोद दुबे
प्रकाशन: सृजन फ्लाई ड्रीम, जैसलमेर
समीक्षक : प्रभुनाथ शुक्ल

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