
कोख में मरती और , हाथरस का परिहास हूँ !
जिस्म नोचते भेडियों, का मै एक अवसाद हूँ ! !
सत्ता के नारों की बस , मैं गढ़ी एक तस्वीर हूँ !
अखबारों की सुर्ख़ियों की, मैं एक लकीर हूँ ! !
मैं माँ, बहन और बेटी का, बस एक इश्तहार हूँ !
चौघट से बाहर घुरती , निगाहों की मैं शिकार हूँ ! !
बहन निर्भया की शहादत का, मैं सिर्फ़ उपहास हूँ !
भेडिये समाज का मैं , एक वर्तमान इतिहास हूँ ! !
गिद्धों की घुरती निगाहों में, मैं चुभती शिकार हूँ !
गिरती नैतिकता और , पतन की मैं प्रमाण हूँ ! !
बोटी- बोटी नोचों गिद्धों, मैं तो बस एक बेटी हूँ !
हवस के गर्म तवे पर पकती , मैं तो एक रोटी हूँ ! !
आँखों में आँसू, चीख आह की , मैं तो एक पीड़ा हूँ !
हर स्वर में मेरे कंपन, मैं तो मौन दर्द की वीणा हूँ ! !
घर- घर में बैठा रावण , मैं तो बस एक सीता हूँ !
मौन हुआ गांडीव जब , फ़िर मैं कैसी गीता हूँ ! !