कविता

मैने फूलदान सजाया

उपवन मे जो पुष्प खिले थे,

पवन सुगंधित कर देते थे,

सुमन सुन्दर अति मनोहारी,

कुसुम यही शोभा बगिया के।

 

इन्हें तोड़ डाली से काँटे काटे,

फिर एक प्यारा सा गुलदस्ता

रत्न जटित एक फूलदान मे,

उन्हें संवारा और सजाया।

 

मैने अपना कक्ष सजाया,

तन मन मेरा अति भरमाया ,

दो दिन तक वो खिले रहे फिर

तीसेरे दिन चेहरा लटकाया।

 

मैने क्यों व्यर्थ ही उन्हें सजाया,

फूलों की आयु को यों ही घटाया

उपवन मे वो अधिक सुखी थे

तोड उन्हें डाली से मैने क्या पाया।//