हिंदी पर है मान मुझे

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राष्ट्रभाषा हिंदी है हमारी प्यारी
सरस-मधुर बोली लगे हमें न्यारी।
हर भाषा पर पड़ जाए जो भारी
ऐसी निराली मातृभाषा है हमारी।
गुलाम बन रहे अंग्रेजी के सब आज
विदेशी भाषा में करने लगे काज।
अंग्रेजी को कितना भी अपना ले समाज
पर हिंदी से ही है हमारी लाज।
निज गौरव अभिमान है यह
हिंदी पर है मान मुझे।
फिर से कहती हूँ
बार-बार सहस्र बार यही दोहराती हूँ
हिंदी है स्वाभिमान मेरा
हाँ-हाँ हिंदी पर है मान मुझे।

ओजस्विनी-सहज-सुगम है हिंदी
राष्ट्र के मस्तक की है यह बिंदी।
साहित्य का इसमें असीम सागर है
ज्ञान की छलकाती जैसे गागर है।
साहित्यकारों की है यह अमिट पहचान
सब विषयों का हो रहा इसमें अनुसंधान।
व्यापकता बहुत इसकी, नहीं कोई शंका
विदेशों में भी बज रहा आज इसका डंका।
हिंदी है स्वाभिमान मेरा
हाँ-हाँ हिंदी पर है मान मुझे।

फिर क्यों हिंदुस्तानी इससे नाता तोड़ रहे
इतनी समृद्ध भाषा से मुहँ मोड़ रहे।
आधुनिकता का चश्मा चढ़ाने को
समाज में झूठी शान दिखाने को
अंग्रेजी का चोला ओढ़े हैं।
पर पारस्परिक संवाद में
हिंदी में ही सुख-दुःख सुनाते हैं।
दबी जबान में अकसर हिंदी में ही
आपस में फुसफुसाते हैं।
हिंदी है स्वाभिमान मेरा
हाँ-हाँ हिंदी पर है मान मुझे।

सिर्फ मातृभाषा या राष्ट्रभाषा नहीं
यह आत्मीयता की भाषा है।
मिले इसका उचित दर्जा इसे
यही हम सबकी अभिलाषा है।
सिर्फ पखवाड़ा या हिंदी दिवस मनाने से
नहीं काम चलेगा।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में इसको अपनाकर
यह लक्ष्य सधेगा।
महत्ता से इसकी कोई अनजान नहीं
हिंदी की विदेशों में भी शान काम नहीं
फिर क्यों कहने में आती लाज तुझे कि
हिंदी पर है मान मुझे।

लक्ष्मी अग्रवाल

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