हिन्दुत्व बचाना है तो जातिवाद को आईना दिखाना होता

—विनय कुमार विनायक
वर्ण और जाति क्या है?
यह प्रश्न हमेशा से पूछा जाता
और हमेशा पूछा जाएगा
क्योंकि हर हिन्दू चाहता
अपनी जाति उत्पत्ति को जानना
यह जानकर कि वर्ण जाति है
हिन्दुओं के पतन का मूल कारण
हर हिन्दू जानता है वर्ण जाति से
कोई मनुष्य श्रेष्ठ नहीं होता ना होगा
सब जानता जाति की उत्पत्ति है विवादित
विविध नस्ल वंश रक्त मिश्रण से बनी जाति
हर जाति आकाश पाताल एक कर देती
अपनी उच्चता दिखाने व नीचता छुपाने में
मगर लाख कोशिशों के बावजूद
कोई जाति कभी उच्च नहीं बन पाती
और अपनी नीचता भी नहीं छुपा पाती
शास्त्रों में हर जाति की उत्पत्ति
निम्न जाति समाज से हुई बतलाई गई
वर्ण का अर्थ होता है वरण करना
यानि कर्म प्रयत्न व चाह से वर्ण बना
ब्राह्मण का अर्थ अध्ययनशील ब्रह्म ज्ञानी
हर अध्ययन शील व्यक्ति ब्राह्मण होता
क्षत्रिय का अर्थ है रक्षक योद्धा की प्रवृत्ति
हर व्यक्ति में है आत्म रक्षा व देश भक्ति
वैश्य का अर्थ होता वणिक व्यापार वृत्ति
हर कोई धन दौलत कमाने को होता इच्छुक
शूद्र यानि सेवा भाव मानव का स्वभाव होता
अस्तु हर व्यक्ति, हर परिवार, हर समाज
हमेशा से चारों वर्णों को वरण करते आ रहा
एक वर्ण से दूसरे वर्ण में आना जाना लगा रहा
यानि शूद्र से ब्राह्मण होना ब्राह्मण से शूद्र होना
किन्तु कालांतर में वर्ण, जाति घेरे में घिर गया
आज जाति की स्थिति बंद घेरे में बंद हो गई
जाति जन्म व्यवसाय से बंधकर रुढ़ होती गई
जबकि आज जातियों से जातिगत पेशा छिन गई
फिर भी ज्ञानी अब्राह्मण ब्राह्मण नहीं हो पाता
अनपढ़ जाहिल ब्राह्मण अब्राह्मण शूद्र नहीं होता
आज एक जाति को दूसरी जाति से प्यार नहीं
एक जाति को दूसरी जाति का बड़प्पन स्वीकार नहीं
आज कोई जाति किसी जाति का मददगार नहीं
आज गर्व से कहो हम हिन्दू हैं कोई तार्किक विचार नहीं
आज ब्राह्मण खुद को पहले हिन्दू नहीं, ब्राह्मण कहता
जबकि शास्त्रवेत्ता ब्राह्मणों ने ब्राह्मण पर खुद लिखा
‘गणिक गर्भ संभूतो वशिष्ठश्च महामुनि
तपसा जातो ब्राह्मण: संस्कारस्च कारणम्
बहवो अन्येनपि विप्रा पूर्वं अद्विजा’
आज राजपूत खुद को हिन्दू नहीं, राजपूत कहता
जबकि उसे पता है शबर बर्वर
शक हूण कुषाण पहलव भी राजपूत जाति
आज वैश्य खुद को बनिया वैष्णव साबित करता
जबकि ‘वर्धकी गोप: नापित: वणिक कोल किरात
कायस्था इति अंत्यजा समाख्याता चान्ये ते गवाषने—’
उस व्यास ऋषि ने लिखा जो धीवर कन्या से जन्मे
भगवान राम के पुरोहित वशिष्ठ ऋषि के वंशज थे
ऐसे में शूद्र हीन भाव ग्रस्त हो हिन्दू कहने से हिचकते
आखिर हिन्दू धर्म के पवित्र धर्मग्रंथ तुलसी के मानस में
‘सुपच किरात कोल कलवारा वर्णाधम तेली कुम्हारा’
‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी’
‘पूजहि विप्र सकल गुणहीना शूद्र न पूजहु वेद प्रवीणा’
पढ़कर कोई कैसे गर्व से कहेगा ‘हम हिन्दू हैं’?
तुलसी ने विदेशी आक्रांताओं के विरुद्ध मुख नहीं खोला
किन्तु वनवासी आदिवासी दलित जातियों को गालियां दी
तुलसी ने वही किया जो मनुस्मृतिकार भृगु, गुरु परशुराम
द्रोणाचार्य जैसे ब्राह्मणवादी शूद्र अंत्यज के प्रति करते रहे
तुलसी ने राम को विप्र धेनु सुर संत हितकारी
दलित स्त्री विरोधी बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी
यद्यपि हिन्दू धर्म शास्त्रों में उच्च कोटि का ज्ञान है
मगर कर्मकांड जातिवादी पाखंड का बहुत गुणगान है
जातिवाद की विशेषता है कि हर जाति खुद को विशिष्ट
और दूसरी जाति को घृणा भाव से निकृष्ट समझती
आज हर जाति परशुराम राम कृष्ण से वंश मूल मिलाती
पराई जाति से रावण कौरव कंश जैसा व्यवहार करती
पर धर्मांतरित हो चुके लोगों से भयवश सम्मान दिखाती
आज गुरु गोबिंदसिंह के एक सिख से सवा लाख तुर्क भय खाते
लेकिन एक धर्मांतरित मुस्लिम से लाखों लाख हिन्दू डर जाते
इसका एक ही मतलब है हर सिख और हर मुस्लिम के पीछे
सारा सिख समुदाय, सारा मुस्लिम जगत खड़ा हो जाता
किन्तु संकटग्रस्त हिन्दू के समर्थन में हिन्दू आगे नहीं आता
आज भी हिन्दू धर्मी हर कर्म जाति जानकर तदनुसार ही करते
क्योंकि हिन्दू नामक कोई जाति कोई धर्म वास्तव में है नहीं
क्योंकि कोई गैर हिन्दू कभी हिन्दू बन सकता ही नहीं
नए हिन्दू बने या हिन्दू धर्म में वापसी करने वाले को बोलो
किस जाति खांचे में डालोगे, किस जाति में विवाह कराओगे?
क्या कुंवारे मारोगे या प्यार करने के जुर्म में मरवाओगे?
कुछ भी जबाव नहीं हिन्दू मठाधीशों चारों शंकराचार्य के पास
जाति अहं की दीवार किसी को हिन्दू ना बनने, ना रहने देती
इस गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए कि कोई धर्मांतरित जन
हिन्दू धर्म में वापसी कर शूद्र अछूत जाति बनने आएगा
बल्कि हिन्दुओं की कमजोरी जानकर हिन्दुओं को और डराएगा
हिन्दुत्व बचाना है तो जातिवाद को आईना दिखाना होगा
किसी को गुरु गोबिंदसिंह बनके जाति मिटा एक बनाना होगा!
—विनय कुमार विनायक

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