बिहार अपनी पैदार्इश से ही ज्ञान तथा अध्ययन केन्द्र के रूप में जाना जाता है। यह वही बिहार है जिसने दुनिया को आर्यभटट जैसा विख्यात गणितज्ञ दिया। यह वही बिहार है जहाँ से भगवान बुद्ध ने ज्ञान हासिल कर पूरी दुनिया को शांति का पाठ पढ़ाया। यह वही बिहार है जहाँ के प्राचीन नालंदा विश्वविधालय में पृथ्वी के कोने कोने से लोग ज्ञान अर्जित करने आते थे। भूत हो या वर्तमान, देश-दुनिया के कर्इ हिस्सों में फैले बिहार के लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में अपने ज्ञान की बदौलत सभी को अपना लोहा मनवाया है। वक्त गुजरता गया। जहाँ देश के अन्य राज्य अपने बेहतर भविष्य की ओर प्रगतिशील थे, वहीं बिहार अपने गौरवशाली अतीत को अपनी आँखों के सामने से ओझल होता देख रहा था। देखते ही देखते पता नहीं कब ज्ञान की धरती के नाम से जाना जाने वाला बिहार राजनीतिक उठापटक तथा अपने पिछड़ेपन के लिए चर्चा में रहने लगा। जो लोग हमारे ज्ञान तथा प्रतिभा को सलाम करते थे वही लोग हमें हीन भावना से देखने लगे।
बात 2005 की है। तब मैं राजधानी पटना के एक स्कुल में बारहवीं का छात्र था। स्कुल खत्म होने को था। बोर्ड की परीक्षायें सिर पर थी। हम सात दोस्त थे। हमारे उपर परीक्षा का तनाव तथा भय तो था ही परंतु उससे भी ज्यादा एक दूसरे से बिछड़ने का गम था। सभी अपनी-अपनी दिशा और दशा तय कर चुके थे। अधिकांश लोंगों ने अपनी आगे की पढ़ार्इ तकनिकी क्षेत्र में जारी रखने की ठान ली थी। परंतु वे करें भी तो क्या? राज्य में तब अच्छे इंजिनियरिंग कालेजों का घोर आभाव था। अत: सभी को आगे की पढ़ार्इ के लिए राज्य से बाहर जाना था। कोर्इ बैंगलोर, कोर्इ चेन्न्र्इ, कोर्इ दिल्ली तो कोर्इ मुंबर्इ जाने की सोच रहा था। लेकिन सभी को अपने दोस्तों और परिजनों से दूर जाने का इल्म था। मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा कि ‘काश पटना या इसके आसपास अच्छे इंजिनियरिंग कालेज होते तो हम सभी इसी तरह से आगे भी अपनी पढ़ार्इ हँसते-खेलते पूरी कर लेते। उसके इस ‘काश शब्द ने मुझे भी यह सोचने पर विवश कर दिया कि आखिर ज्ञान की नदीयाँ बहाने वाला बिहार इस मुद्दे पर अचानक इतना कमजोर और मजबूर क्यों दिखने लगा?
खैर सभी अपनी मंजिल की बढ़ चले थे। मेरे सारे दोस्त देश के अलग-अलग कोनों में जाकर बस गए। मैंने आपने स्नातक की पढ़ार्इ पटना से ही जारी रखने का निर्णय लिया। तब मेरे सामने पटना विश्वविधालय के अलावा कोर्इ दूसरा विकल्प नहीं दिख रहा था क्योंकि अन्य विश्वविधालयों की स्थिति ठीक नहीं थी। मैंने अपने तीन साल के स्नातक कोर्स के दौरान पटना विश्वविधालय में जो अनुभव किया उससे धीरे-धीरे चीजों को समझने और परखने की ताकत मिल गर्इ। मै समझ गया था कि विधालय पास करने के बाद छात्र राज्य से बाहर जाने वाली डगर क्यों थाम लेते हैं। मैंने पटना कालेज से पत्रकारिता विशय में स्नातक किया। यह विशय बिहार के लिए बिल्कुल नया था। अत: हमारा विभाग पूरी तरह से एडहाक शिक्षकों पर निर्भर था। मैने देखा की यह हाल हमारे ही नहीं बलिक कालेज के कर्इ अन्य विभागों का भी है। जी हाँ, 1863 र्इ. में स्थापित यह वही पटना कालेज है जो एक समय पूर्वी भारत में उच्च शिक्षा का एकमात्र उत्कृष्ट केंद्र था।
मेरी इस कहानी का तात्पर्य अपनी दास्तान बयान करना नहीं बलिक बिहार में अपेक्षित सुधारों के बीच संभावनायें तलाशना है। आज बिहार में बदलाव की बयार बह रही है। बदहाली से निकल विकास की पटरी थामने वाले इस राज्य ने देश और दुनिया में एक नया आदर्श स्थापित किया है। वर्तमान में प्रदेश के पास कर्इ विश्वविधालय हैं। फिर भी गुणवत्र्तापूर्ण शिक्षा की तलाश कर रहे छात्रों के जेहन में पटना विश्वविधालय के अलावा कोर्इ और नाम क्यों नहीं आता? जबकि अन्य राज्यों में हम नजर दौड़ायें तो छात्रों के पास पढ़ार्इ के लिए कर्इ विकल्प मौजूद होते हैं। देश की राजधानी दिल्ली में अगर कोर्इ किसी छात्र का दाखिला दिल्ली विश्वविधालय में नहीं हो पाता तो उसे इस बात का गम उतना नहीं सताता जितना पटना विश्वविधालय में दाखिला न मिल पाने से यहाँ के छात्रों को सताता है। क्योंकि वहाँ के छात्रों के पास जामिया, जवाहर लाल नेहरू तथा इंद्रप्रस्थ विश्वविधालय सरीखे कर्इ उम्दा विकल्प मौजूद हैं। महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु समेत अन्य राज्य के छात्रों के पास भी ऐसे कर्इ विकल्प मौजूद हैं जिससे वे अपने भविष्य के इमारत की मजबूत नींव रखने में सक्षम हैं।
वक्त के साथ-साथ कर्इ परिवर्तन हुए। आज हमारे पास आर्इआर्इटी, एनआर्इटी, चाणक्य नेशनल ला कालेज, आर्यभटट ज्ञान विश्वविधालय जैसे संस्थान है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अथक प्रयासों की बदौलत हमें केंद्रीय विश्वविधालय की दो शाखाओं का तोहफा मिला है। आधुनिकता की ओर अग्रसर बिहार में आज छात्रों के बीच सबसे अधिक लोकप्रीय कोर्स एमबीए के लिए भी चद्रगुप्त प्रबंधन संस्थान जैसे अन्य अध्ययन केंद्र हैं। कुल मिलाकर विकास की रोशनी सूबे की शिक्षा व्यवस्था को भी रोशन करती नजर आ रही है। फिर भी शिक्षा क्षेत्र के कर्इ कोण आज भी अंधकार में क्यों नजर आते हैं? हर वर्ष बड़ी संख्या में राज्य की प्रतीभा विदेषों अथवा अन्य राज्यों में पलायन कर रही है। तभी तो दिल्ली, पुणे तथा बेंगलुरू की गाड़ीयों में बिहार के छात्रों की भीड़ बढ़ती ही जा रही है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर छात्र अपने राज्य को अपना भाग्य विधाता चुनने से इतना कतराते क्यों है?
इसका जवाब तलाशने हेतु हमें किसी छात्र के मन को टटोलना होगा।
संभवत: इसका कारण यह है कि बिहार में भले ही कर्इ जगहों पर अत्याधुनिक कोर्स प्रारंभ हुए हो, लेकिन आज भी ये राज्य छात्रों के बीच रोजगारपरक विश्वसनीयता स्थापित करने में नाकाम रहा है। क्या यह अजीब विडंबना नहीं कि बिहार के छात्र आर्इआर्इटी प्रवेश परीक्षा में उच्च स्थान प्राप्त करने के बाद भी आर्इआर्इटी कानपुर अथवा मुंबर्इ को प्रथम विकल्प के रूप में चुनते हैं जबकि राजधानी पटना इसकी एक शाखा मौजूद है। बात सिविल सेवा परीक्षाओं की करें तो बिहार के छात्र हर वर्ष देश की सबसे उत्कृष्ट परीक्षा में अपना परचम लहराते हैं पर छात्र इस परीक्षा की तैयारी हेतु मोटी रकम खर्च कर बाहर जाने को विवश हैं।
बदलती बयार के इस शोर-शराबे में हमारी शिक्षा व्यवस्था पूरी तरह से पटरी से न उतर जाये इसके लिए सरकार और हमें गंभीरता से सोचना होगा। शिक्षा को गुणवत्तापूर्ण बनाकर अगर छात्रों के पलायन के कुछ हिस्से पर भी नियंत्रण पा लिया गया तो बिहार की धरती पर फिर से ज्ञान की फसल लहलहा उठेगी। आज हमें जरूरत है पटना विश्वविधालय की गरीमा को वापस लौटाने की। आज हमें जरूरत है नालंदा अतंर्रराष्ट्रीय विश्वविधालय के बेहतर भविष्य की नींव रखने की। आज हमें जरूरत है 65 प्रतिशत से भी कम साक्षरता दर के इस कलंक को मिटाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित करने की। और ऐसा तभी संभव है जब सरकार शिक्षा की ओर अपनी दया-दृष्टी बनाये रखे। जिस प्रकार स्कुलों में पोशाक तथा सार्इकिल राशि सरीखे योजनायें चलाकर छात्र-छात्राओं को विधालय तक पहुँचाने की अनूठी एवं कारगर पहल मुख्यमंत्री ने की है, इसी प्रकार राज्य की उच्च शिक्षा को भी ठोस बनाने हेतु प्रयास करने चाहिए। विश्वविधालयों में शिक्षकों के खाली पदों को भरकर विरान कक्षाओं में रौनक लौटाने में ही प्रदेश का उज्जवल भविष्य है। साथ ही उच्च शिक्षा प्रदान कर रहे सरकारी कालेजों में रोजगार की संभावनायें जगाकर छात्रों को उनके बेहतर भविष्य की बुनियाद रखने से यहाँ के छात्रों का पलायन तो रूकेगा ही, अन्य विकसित प्रदेषों के छात्र भी बिहार आकर अपनी शिक्षा हासिल करेंंगे जिससे राज्य का गौरवशाली अतीत हमें वापस मिलता दिखार्इ देगा। बिहार को ज्ञान की धरती फिर से पुकारेगी दुनिया अगर विकास की बयार हमारी उच्च शिक्षा पर पड़ी धूल की परत को अपने साथ उड़ा ले जाये।
जय बिहार
में इस लेख के लेखक को धन्यवाद् देना चाहूँगा की उनोने इस विषय पर आपनी सोच को प्रकासित किया और इस लेख से में पूरी तरह से सहमत भी हु, लेकिन मेरी यह सोच है की बिहार को अगर फिर से ज्ञान के क्षेत्र में प्रथम आना है तोह बिहार के लोगो को भी बिहार के प्रति आगे आना परेगा, केवल बिहार को सुधारने का जिम्मा सरकार पे हम नहीं थोप सकते.!
जय बिहार !!
आपका लेख हिंदी मगज़ीन पूर्वांकुर में छापना चाहता हूँ आपकी अनुमति चाहिए मेरा ईमेल mpbaranwal58@gmail.com mobile no. 9555889006 hai