कविता

जीवन की उलझी राहों में ………

hjkख़ुद से दूर रहना चाहता हूँ ,
अपने हीं अक्स से घबराता हूँ ,
प्यार किसी से करता हूँ ,
क्या प्यार उसी से करता हूँ ?
अपने अन्दर के विद्रूप से डरता हूँ ।
जीवन की उलझी राहों में ,
ख़ुद के सवालों से घिरता हूँ ,
अपनी सोच , अपने आदर्शों के
पालन से जी चुराता हूँ ,
अपने अन्दर के विद्रूप से डरता हूँ । ।