
दुलीचंद कालीरमन
संचार क्रांति के इस दौर में डाटा बहुत महत्वपूर्ण हो गया है और उससे भी ज्यादा डाटा की सुरक्षा
महत्वपूर्ण हो गई है | डिजिटल क्रांति के इस युग में विश्व व्यापार तकनीक आधारित हो गया है |
आपसी लेनदेन और खरीददारी में कॅश की भूमिका घटती जा रही है | भारत सरकार भी डिजिटल
पेमेंट को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है | वर्ष 2016 में की गई नोटबंदी का एक उद्देश्य उद्देश्य
डिजिटल इकोनामी को बढ़ावा देना भी था | वर्तमान में डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में ‘मास्टर-कार्ड’ ‘वीसा’
जैसी बहुराष्ट्रीय अमरीकी कंपनियों का बोलबाला है लेकिन भारत सरकार ने ‘रुपे कार्ड’ के माध्यम से
इन दिग्गजों के बाजार में सेंध लगाने की कोशिश की है | जो काफी हद तक सफल भी रही है लेकिन
इस दिशा में और भी काफी प्रयास किए जाने की आवश्यकता है | डिजिटल भुगतान से बैंकिंग और
वित्तीय धोखाधड़ी में बहुत अधिक बढ़ोतरी हुई है | यदि लेनदेन संबंधी डाटा किसी अन्य देश में स्टोर
किया जाएगा तो इससे संबंधित जांच पड़ताल में उस देश के कायदे कानून आड़े आ सकते हैं |
विदेशी कंपनियों का सारा लेन-देन संबंधी डाटा अमेरिका या अन्य देशों में संचित किया जाता है |
अभी तक डाटा को इतना महत्वपूर्ण नहीं समझा जाता था लेकिन वर्तमान में डाटा डॉलर जैसा हो
गया है | वे कंपनियां जिनके पास भारतीयों का लेन-देन, पसंद नापसंद, आय-व्यय संबंधी बहुत सारा
डाटा है तो वे कंपनियां ‘बिग डाटा एनालिसिस’ और ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ के माध्यम से इस
डाटा को अपनी व्यवसायिक रणनीति बनाने में काम में लेती है और कुछ कंपनियां इस डाटा को मोटी
फीस लेकर दूसरी कंपनियों को भी बेच देती हैं | इस डाटा से भारतीयों के खर्च करने के पैटर्न तथा
उनकी पसंद-नापसंद के बारे में पता लगता है | जिससे कंपनियां उसके अनुसार अपनी रणनीति बनाते
हैं |
भारत में मोदी सरकार ने ‘ई-कॉमर्स पॉलिसी’ में भी कई ऐसे प्रावधान किए हैं जिससे इस क्षेत्र की
कंपनियों जैसे अमेजॉन, फ्लिपकार्ट आदि को अपना डाटा भारत में ही स्टोर करना होगा | लेकिन इन
कंपनियों का तर्क है कि इससे उनकी लागत मूल्य बढ़ जाएगा |
जून 2019 में जापान के ओसाका में जी-20 देशों के सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने डाटा लोकलाइजेशन का मुद्दा उठाया था लेकिन भारत में इस शर्त
को हटाने का अभी तक कोई स्पष्ट वचन अमेरिका को नहीं दिया है |
फेसबुक में भी पिछले दिनों घोषणा की है कि वह अपने डिजिटल करंसी ‘लिब्रा’ सन 2020 तक पेश
करेगी | फेसबुक के दुनिया भर में 2.40 अरब यूजर है इससे स्पष्ट है कि फेसबुक का डिजिटल बाजार
कितना बड़ा होगा | भारत में भी फेसबुक के करोड़ों उपभोक्ता है | जिससे उनके लेनदेन के डेटा की
सुरक्षा व अर्थव्यवस्था की कानूनी पेचीदिगियों के लिए भारत में ही डाटा स्टोर करना महत्वपूर्ण हो
जाता है | फेसबुक की एक सहायक कंपनी ‘कैंब्रिज एनालाईटिका’ का डाटा संबंधी विवाद कई वर्ष पूर्व
सुर्खियों में रहा था |
भारत में गूगल ने Gpay के नाम से अपना पेमेंट ऐप लॉन्च किया है | इस क्षेत्र में ‘पेटीएम’ ‘फोन पे’
‘पे पल’ आदि और भी डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म कार्य कर रहे हैं | भारतीय पेमेंट इंटरफेस ‘भीम’ इस
दौड़ में पिछड़ पता चला जा रहा है | भारतीय रिजर्व बैंक भी समय-समय पर इस प्रकार के दिशा
निर्देश दे चुका है कि भारतीयों के वित्तीय लेन-देन का डाटा भारत में ही सेव किया जाए | भारत
सरकार और वित्त मंत्रालय को समय रहते इन बातों को ध्यान में रखकर नीतियां बनानी होंगी |
जिससे भारत में रोजगार के अवसर और निवेश दोनों ही बढ़ेंगे | ‘अमेजॉन’ ‘वीसा’ ‘मास्टरकार्ड’ आदि
कंपनियों का यह तर्क है कि इससे इन कंपनियों का लागत मूल्य बढ़ जाएगा तथा यह कंपनियां
भारतीय कानून मानने के लिए बाध्य होंगी | इसमें गलत भी क्या है अगर यह कंपनियां इतना
लाभांश भारत से कमाती है तो उसका कुछ अंश भारत में निवेश करने से इन्हें संकोच नहीं करना
चाहिए |
डाटा सुरक्षा को लेकर भारत सरकार ने इस दिशा में कार्य करना भी शुरू कर दिया है | गृह मंत्रालय
और सूचना तकनीक मंत्रालय मिलकर “पर्सनल डाटा प्रोटक्शन बिल-2019” पर कानून बनाने पर कार्य
कर रहे हैं | जिससे देश की सुरक्षा एजेंसियों को डाटा संबंधी आपराधिक जांच में सुविधा हो सके |
डाटा लोकलाइजेशन इसलिए भी जरूरी है क्योंकि अगर नागरिकों से जुड़ा डाटा देश में ही संचित
रहेगा तो उस पर बेहतर नियंत्रण हो सकता है | अगर कोई गलत गतिविधि हो जाती है तो
एन्फोर्समेंट एजेंसीज को जांच में सुविधा होगी |
एक तरफ तो अमेरिका भारत सरकार की डाटा लोकलाइजेशन नीति का विरोध करता है तथा दूसरी
तरफ 5G तकनीक मुहैया करवाने वाली चीनी कंपनी हुवावे पर प्रतिबंध लगा देता है | यह आरोप
लगाता है कि वह डाटा/सूचनाओं को चीनी सरकार को पहुंचा सकती है | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड
ट्रंप और अमेरिकी कंपनियों को यह समझना होगा कि राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर दोहरे मानदंड नहीं
होने चाहिए | डाटा भी राष्ट्रीय सुरक्षा तथा वित्त प्रबंधन से जुड़ा मामला है जिस पर हर देश को
निर्णय लेने का अधिकार है |
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