निर्मल बाबा के बहाने हिन्दू धर्म पर निशाना क्यों?

 अपने गिरेबां में भी तो झांकिये

— अम्बा चरण वशिष्ठ

निर्मल बाबा महान् हैं या गिरे हुये इन्सान, यह तो वही बता सकता है जो उनके सम्‍पर्क में आया हो या जिसने उन्हें आज़माया हो। पर उनके बहाने हिन्दू धर्म या सारे साधू-सन्त समाज को ही निशाने पर रख कर सब को ही ढोंगी या धोखेबाज़ बता देना उतना ही गिरा हुआ काम है जितना कि कोई भी गिरा हुआ इन्सान करता है। एक साधारण व्यक्ति कैसे सारे समाज या पन्थ को ही बदनाम कर सकता है?

यदि किसी परिवार, किसी जाति, समुदाय या धर्म का कोई व्य क्ति चोर, उचक्का, व्यभिचारी या अपराधी निकल आये तो उससे सब की बदनामी तो अवश्यक होती है पर क्या उसके कुकृत्य से सारा परिवार, सारी जाति, सारा समुदाय या धर्म ही ऐसा बन जाता है?

चलो कुछ क्षण के लिये बाबा के आलोचकों के आरोप को सही मान लेते हैं। धोखा देने के लिये ऐसा तो कोई भी ढोंगी कर सकता है। आज अपराध मजबूरी नहीं दिमाग़ का खेल बन गया है। व्यक्ति पहले जनता की नब्ज़ टटोलता है और उसे मूर्ख बना कर धोखा देने का चक्रव्यूह रचता है। लोग विभिन्न स्थानों पर कहीं वकील, कहीं समाजसेवी, कहीं पुलिस अफसर, आयकर या आईएएस अधिकारी, विधायक या सांसद होने का ढोंग रच कर लोगों का ठगते हैं। तो क्या एक व्यक्ति के ऐसा करने पर सभी ऐसे लोगों और व्यवसायों व अधिकारियों पर हम ऐसा होने का इलज़ाम ठोंक देंगे और कहेंगे कि वह सब ऐसे ही होते हैं?

साधु-सन्त व एक पण्डित, पादरी, मौलवी, ज्योतिषी, तान्त्रिक हुये बिना यदि कोई व्यक्ति ऐसा होने का ढोंग रचता है और लोगों को ठगता या लूटता है तो क्या उसके कुकर्म के कारण ये सभी सम्माननीय लोग ठग बन जायेंगे? व्यक्ति बुरा बनता है अपने कुकर्मों से, न कि दूसरे की कुकर्म से। पर यहां तो हिन्दू धर्म, साधू-सन्त, पण्डित, पादरी, मौलवी, आदि सभी एक ही पंक्ति में खड़े कर दिये गये हैं दूसरों के पापों के कारण हालांकि उन्हों ने स्वयं कुछ गलत किया ही नहीं जैसा निर्मल बाबा ने किया हो। यदि कोई ठग अपने आप को हिन्दू, सिक्खी, ईसाई या मुस्लिम आदि होने का ढोंग रच दे और लोगों को धर्म के नाम पर लूटना शुरू कर दे तो कसूर उस व्यक्ति विशेष का है न कि उस धर्म विशेष का जिस से वह सम्‍बन्धित भी नहीं है पर होने का ढोंग करता है। इस प्रकार तो कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म, सम्प्रदाय या जाति को बदनाम कर सकेगा। जैसा कि दिखाया जा रहा है, निर्मल बाबा न तो कोई पूजा-पाठ स्वयं करते हैं न करने की सलाह देते हैं। हां, इतना अवश्य बताया गया है कि वह किसी मन्दिर में कुछ राशि चढ़ाने को कहते हैं, खीर खाने या खिलाने को कहते हैं, किसी विशेष किस्म का पर्स और उसमें कुछ धनराशि रखने को कहते हैं, आादि, आदि। तो इसमें कौन सी बड़ी बात है। हमारे घरों में आम धारणा है कि किसी शुभ काम के लिये जाने से पूर्व दही-मीठा खाकर निकलो। बाहर एक कलश रख दिया जाता है जिसकी जाते समय बन्द ना की जाती है। ऐसा करने के लिये हमारी मां-बहनें-बुज़ुर्ग कहते हैं। साथ यह भी सच है कि सदा हमारी कामनायें पूरी नहीं हो जातीं। फिर भी हम यह सब कुछ करते जाते हैं। वस्तुत: हमारे ही मन में कुछ भ्रान्तियां या भ्रम हैं जिनका फायदा वह लोग उठाते हैं जो भोली-भाली जनता को इस बहाने लूटना चाहते हैं। पीछे एक टीवी चैनल हमारे अग्रणी क्रिकटरों की भ्रान्तियों या भ्रमों की चर्चा कर रहे थे। यह सब निजि मामले हैं। इन को तर्क की कसौटी पर नहीं परखा जा सकता है। हम रातों-रात करोड़पति बन जाना चाहते हैं। मनचाहा पद चाहते हैं। किसी को हटाकर मन्त्री , मुख्य मन्त्री या प्रधान मन्त्री बन बैठना चाहते हैं चाहे हम उस योग्य हों या न। हमारा विश्वास हो गया है कि कोई बाबा-तांत्रिक-ज्योतिषी ऐसा करिश्मा कर सकता है। हम समझते हैं कि ऐसे महानुभाव उस नामुराद बेइलाज बीमारी से भी हमें छुटकारा दिलवा सकते हैं जिसके इलाज के लिये बड़े से बड़े डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिये हों। तब हम अपना सब कुछ लुटाने के लिये तैयार हो जाते हैं। तो फिर इसमें दोष किसका?

हम किसी डाक्टर के पास जाते हैं। वह कहता है कि तुम ठीक हो जाओगे। उसे मुंहमांगी फीस देते हैं। बड़े से बड़े अस्पतालों में जातें हैं। सभी कहते हैं कि आप ठीक हो जायेंगे। क्या सभी ठीक हो जाते हैं?

हम अपना मामला लेकर वकील के पास जाते हैं। वह कहता है कि तुम्हारा मामला बड़ा ठोस है। वह कचहरी में मुकद्दमा दाखिल करवा देता है। क्या सब जीत जाते हैं?

निर्मल बाबा हमारे पास नहीं आये। हम उनके पास गये। जो फीस मांगी वह दी क्योंकि हमें कोई चमत्कार चाहिये, करिश्मा चाहिये। हम सोच-समझ कर क्यों नहीं गये? कोई कहता है कि अपने ही बच्चे को जि़न्दा ज़मीन में गाड़ दो चमत्कार हो जायेगा। हम क्यों अपनी तर्क शक्ति को तिलांजलि देकर अपने ही बच्चे को मारने के लिये तैयार हो जाते हैं?

हैरानी की बात तो यह है कि जो मीडिया आज निर्मल बाबा के झूठ की बखियां उधेड़ रहे हैं वही उनके विज्ञापन भी प्रसारित करते थे। क्या उनकी कोई जि़म्मेदारी नहीं है? आरोप तो यह भी लग रहे हैं कि जो आज बाबा के पीछे पड़े हैं वही उनसे विज्ञापन की खासी बड़ी रकम मांग रहे थे। सच क्या है यह तो जाने बाबा या मीडिया। एक बात और उठ रही है। क्या कारण है कि मीडिया केवल हिन्दू धर्म से जुड़े लोगों को ही नंगा करने में लगा है? जो गलत कर रहा है उसका सच तो बाहर आना ही चाहिये। उसे सज़ा तो मिलनी ही चाहिये। पर क्या ऐसा ढोंग और पाखण्ड अन्य पन्थों-सम्प्रदायों में नहीं हो रहा? फिर मीडिया उनका पर्दाफाश क्यों नहीं करता?

इस शंका का समाधान तो मीडिया को ही करना होगा। ***

8 COMMENTS

  1. जब एक पोप किसी नाबालिक बच्ची के साथ दुष्कर्म करता हुआ मर जाता है तो कोई नहीं कहता की सारे ईसाई बुरे हैं. कहना भी नहीं चाहिए. जब अनेह मुस्लिम आतंकी घटनाओं में संलिप्त पाए जाते हैं तो शोर मचता है कि अधिकाँश आतंकी चाहे मुस्लिम हों पर सभी मुसलमान आतंकवादी तो नहीं हैं. यह तर्क भी मान लिया जनाब. पर किसी एक आधी संत के भ्रष्ट होने से सारे हिन्दू संत व हिन्दू समाज बुरा कैसे हो गया ? ये दोहरी कसौटियां कहती हैं कि नीयत की खराबी है, हिन्दू समाज और संतों के विरुद्ध योजना पूर्वक षड्यंत्र चल रहे हैं. ये षड्यंत्रकारी बदल जायेंगे, ऐसी आशा तो नहीं की जा सकती पर इतना ज़रूर है कि हिन्दू समाज इन षड्यंरों को समझे और जागे. निश्चित रूप से ऐसा हो रहा है. यही करने की आज आवश्यकता है. वंदेमातरम !!

  2. हमारे देश की मीडिया दिन प्रतिदिन रसातल को जा रही है इसका एक ही कारण समझ में आता है की उसके मालिक या तो विदेशी है या या उनके गुलाम भारतीय पूंजीपति इसलिए उन्हें यहाँ की जनता के बारे में कोई सरोकार नहीं होता कल मै आजकल चैनल पर निर्मल बाबा से ऐसे घटिया तरीके से सवाल कर रहा था जैसे किसी थाने में थाने दार किसी अपराधी या चोर से पूछता है उसने अपने बॉडी लंगुएज से यह बताया की तुम अपराधी हो यह मै फैसला देता हु सबसे बड़ी बात यह की वह सभी बातों में अपने को एक्सपर्ट समझते है
    बिपिन कुमार सिन्हा

  3. मीडिया को भी तो पैसे कमाना है , जब सब भ्रष्ट्र है तो हम मीडिया से कैसे यह उम्मीद कर सकते है की मीडिया बड़ा पुरुसार्थी होगा और सही खबर दिखाएगा |मीडिया में भी दलालों और राष्ट्र द्रोहियों की कमी तो नहीं है |खबर छापो और जेब भरो देश ,समाज और ,नैतिकता से क्या लेना देना है |
    खबरे या तो मूर्खतापूर्ण होती है जिनको जरुरत से ज्यादा अहमियत दी जाती है या फिर सनसनी भरी |जनता को भ्रमित करने के लिए |
    हम सबको सावधानी पूर्ण अपनी खबरों को बिभिन्न श्रोतो से जानकारी प्राप्त करना चाहिए |
    भारत में बहुत से एतिहासिक , धार्मिक तथा सांसारिक सीरिअल बन रहे है |एतिहासिक और धार्मिक सीरिअल बहुत ही अच्छे और ज्ञानवर्धक है तथा सांसारिक सीरिअल दुर्भावना ग्रसित है |
    हमे अपने संस्कारों के हिसाब से अलग अलग चीजे देखना पसंद होता है |सांसारिक सिरिअल का एकमात्र उद्देशय पैसा कमाना है और उसके पीछे नैतिकता का अभाव है |

  4. सचमुच देश को कथित मीडिया द्वारा तोड़ने का प्रयाश किया जा रहा है .

    इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर १००% भागीदारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से क्रिस्चानो के हाथ में है .

    जिसका मनचाहा उपयोग हिन्दू संस्कृत को बदनाम ,विकृत,व कुंठाग्रस्त करने में किया जा रहा है .

  5. बिलकुल सही कह रहे हैं आप —-कभी कुछ मस्जिदों या मद्रस्सो में होने वाली बातें भी मिडिया में लायो –देश को किस तरफ ले जाया जा हां है –बाबा को पहले सर आँखों पर बिठाया अब्ब जब सर भारी हुआ तो बुरे बन गए —अपने देश में सिर्फ एअक मछली ने सारा तालाब गंदा किया हुआ है उस्सी को उसके घर भेजो सब ठीक हो जायेगा —हमारा मिडिया ओउर हमारी सरकार—— जिसे ना गरीबों की चिंता है ना किस्सनो की बस बाबा की खबर देना बहुत जरूरी है —-ऐसी खबरें दे कर के सनसनी फैलाना —-सब को गुमराह कर रही है

  6. मिडिया क्या कह रहा है या मिडिया किसके कब्जे में है,यह उतना महत्त्व पूर्ण नहीं है,जितना यह महत्त्व पूर्ण है कि निर्मल जीत सिंह नरूला जैसे लोग अपने अंधविश्वासों को आगे बढाने के लिए अधिकतर हिन्दू धर्म का ही सहारा क्यों लेते हैं?.निर्मल जीत सिंह नरूला एक लोकप्रिय नेता श्री इन्दर सिंह नामधारी के साले हैं.लिहाजा शायद सिख धर्म से सम्बन्ध रखते हैं,पर अभी तक कोई भी सिख उनके कारनामों की वकालत के लिए नहीं खडा हुआ है.यहाँ तक की स्वयं इन्दर सिंह नामधारी ने एक तरह से उन्हें ढोंगी माना है.

  7. सारा मीडिया इस समय ईसाई लोबी के कब्जे में है. (देखें : गूगल पर “हु ओंस इण्डिया’ज मीडिया?”).भारतीय परिवार संस्था को सारे सीरियलों में इस प्रकार दिखाया जाता है जैसे की परिवार ही सारे फसाद की जड़ हो.क्या परिवार नाम की संस्था में कोई अच्छाई नहीं है?लेकिन केवल नेगेटिव चीजें ही दिखाई जाती हैं. ये साजिश है या संयोग, अध्ययन का विषय है.

  8. मीडिया ऐसा इसलिए कर रहा, क्योंकि हिंदू हमेशा से सोफ्ट टारगेट रहे हैं (वह मीडिया के लिए हो, धर्मों के लिए या सरकारों के लिए), एवं हिंदू जाति रुपी धाराओं में बनता है, एकजुटता की कमी है. कोई भी उनका कुछ भी कर देता है और वह गाँधीजी के भक्त के तरह हाथ जोड़े खड़ा हैं. वो तुर्क हों, अँगरेज़ हो या फ्रांसिसी सब आये लूटा, धर्मान्तरण कारवाया और हिंदू धर्म को इस कगार पर पहुंचा दिया की अब हिंदू भी अपने आप को पहचानना भूल दूसरे धर्मानुयायी को खुश करने में लगा है. चाहे वो मुलायम हो, दिग्विजय हो या अन्य. हिंदुत्व अपनी संस्कृति, अपनी परम्पराए और अपनी पहचान खोता जा रहा है… एक और पाकिस्तान यहाँ बनने को तैयार है, इसे अभी नहीं बचाया तो कभी नहीं बचाया जायेगा….
    जय हिंद!!

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