बढ़ती हुई बलात्कार की घटनाएं और उदासीन तंत्र

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-आलोक कुमार-
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बंगलुरु के स्कूल में छह साल की बच्ची के साथ बलात्कार, लखनऊ के मोहनलालगंज में युवती की गैंगरेप के बाद हत्या वगैरह-वगैरह… आखिर कहा जा रहा है हमारा समाज और देश ? निर्भया काण्ड के बाद लगा था कि कानून का सख्ती से पालन होगा और ऐसी घटनाओं पर कुछ हद तक अंकुश लगेगा लेकिन हुआ बिल्कुल उल्टा, बलात्कार की घटनाओं में कमी आने की बजाए निरंतर वृद्धि ही हो रही है। कानून, प्रशासन, पुलिस और सरकारें असहाय दिख रही हैं लेकिन राजनीति गर्म है और नेताओं के अजीबोगरीब बयानों का सिलसिला जारी है।

वर्तमान केंद्र की सरकार भी मूकदर्शक की भूमिका में ही नजर आ रही है। इसका मुजाहिरा उत्तरप्रदेश को देखकर किया जा सकता है जहां अब बलात्कार और उसके उपरांत हत्या रोज़मर्रा की जिन्दगी का हिस्सा बन चुके हैं लेकिन फिर भी केंद्र की सरकार राज्य की सरकार पर ना जाने किन कारणों से कोई भी कठोर कारवाई करने से परहेज कर रही है ? जबकि अपने चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी जी ने बालिकाओं, युवतियों व महिलाओं की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में गिनाया था। शायद दिल्ली की कुर्सी में ही दोष है… लगता है उस पर बैठते ही दिमाग रूपी स्टोरेज-डिवाईस खुद बख़ुद ‘फॉर्मेट’ हो जाता है।

पूरे देश की ही अगर बात की जाए तो केंद्र और राज्य की सरकारों के स्तर से अब भी बदलाव के लिए कोई बेचैनी या बौखलाहट नहीं दिखाई दे रही। यह एक नकारात्मक स्थिति है और इसी वजह से हमारे देश में यौन हिंसा की घटनाएं कम होने की जगह निरंतर बढ़ती जा रही हैं। इस मसले पर सरकार की निष्क्रियता, उदासीनता और राजनीति के हितार्थ साधा गया मौन स्थितियों को और जटिल बनाने में सहयोग कर रहा है। यौन हिंसा पर होने वाली कानूनी और सरकारी पहलें अभी भी बेहद प्रारंभिक स्तर की ही हैं। इस दिशा में अब तक किए गए प्रयास देश और पीड़ित तबके का भरोसा जीतने के लिहाज से नाकाफी ही रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक देश में हर तीन मिनट पर कहीं न कहीं किसी महिला के खिलाफ हिंसा से संबधित मामला दर्ज होता है, हर 29वें मिनट पर एक महिला के साथ बलात्कार होता है, फिर भी हालात में दिनों-दिन बदतर ही होते जा रहे हैं।

बलात्कार की घटनाओं के प्रति राजनेताओं, सरकारों और प्रशासन का संवेदनहीन रवैया भी अपने चरम पर ही है। घटनाओं अपर नियंत्रण एवं अपराधियों के विरुद्ध कोई वाजिब कार्रवाई करने की बजाय नेता, सरकार और प्रशासन ऐसी-ऐसी बेहूदी दलीलें देते हैं, जिससे अपराधियों के हौसले और बढ़ जाते हैं और मानवता भी शर्मसार नजर आती है। कभी दुराचार की वारदातों के पीछे महिलाओं का देर रात घर से बाहर निकलने को जिम्मेदार ठहराया जाता है, तो कभी उनके आधुनिक परिधानों को इसकी वजह बताया जाता है, अपने चुनावी फायदे को ध्यान में रखकर कभी बलात्कार को युवा-जोश बताकर जायज ठहराया जाता है और ये सब होता है सिर्फ और सिर्फ अपनी नाकामी को छिपाने के लिए। यदि मौजूदा कानून का ही सख्ती से पालन हो और व्यवस्था दुरुस्त रहे, राजनीतिक महकमा और उसकी सरपरस्ती में आने वाला प्रशासनिक अमला अपने दायित्वों को लेकर सजग बना रहे, तो निश्चय ही बलात्कार की घटनाओं में कमी आ जाएगी, पर हकीकत में ऐसा कुछ नहीं होता। जब भी शासन-प्रशासन व व्यवस्था के पूरे तंत्र की उदासीनता पर सवाल उठाए जाते हैं, तो सरकारें कुछ फौरी वादे करके अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती हैं।

1 COMMENT

  1. सही है, राज्य सरकार उदासीन हैं, केन्द्र सरकार भी सिर्फ़ बातें बनाना जानती है, जब सरकारों मे ही बलात्कार के आरोपी हैं… जनता ने उन्हे वोट दिये हैं… उनसे क्या उम्मीद करें…. बयान बाज़ी के अलावा वो कुछ नहीं कहेंगे…. अपराधियों को कड़ी सज़ा मिलेगी…. न्यापालिका अपना समय लेगी …… बस !

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