भारत में खर्च के लिए क्रेडिट कार्ड पर निर्भरता की प्रवृत्ति में लगातार इजाफा हो रहा है। क्रेडिट कार्ड कंपनियां भी आज उपभोक्ताओं को क्रेडिट कार्ड जारी करने के एवज में फ्री गिफ्ट्स यथा स्मार्ट वाच, स्पीकर, इयर बड्स व अन्य गिफ्ट आइटम्स आदि बांटकर उन्हें अपने चंगुल में फंसा रहीं हैं। क्रेडिट कार्ड कंपनियों से फ्री गिफ्ट्स पाकर आम आदमी भी इन कंपनियों के चंगुल में आसानी से फंस जाता है और बहुत बार आनलाइन खरीदारी के बाद क्रेडिट कार्ड बिल का पेमेंट नहीं करने की स्थिति में क्रेडिट कार्ड कंपनियां उपभोक्ता से ‘बिग फाइन’ वसूलतीं हैं और उपभोक्ता स्वयं को ठगा सा महसूस करता है।
उल्लेखनीय है कि आज 39 प्रतिशत लोग महानगरों में और छोटे शहरों के 45 प्रतिशत लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए क्रेडिट कार्ड पर निर्भर हैं। दोनों ही ‘बाय नाउ पे लेटर’ का सहारा ले रहे हैं। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि अक्टूबर माह में त्योहारी सीजन के कारण क्रेडिट कार्ड से खर्च 14.5 प्रतिशत बढ़कर पहली बार दो लाख करोड़ रुपए के पार निकल गया जो कि एक बहुत बड़ी धनराशि है। हैरानी की बात यह है कि आज ज्यादातर सैलरीड क्लास लोगों के ऊपर 25 लाख रुपए तक का कर्ज है। वास्तव में आज स्थिति यह है कि ज्यादातर सैलरीड लोग होम लोन ले चुके हैं जैसा कि घर खरीदना सैलरीड लोगों की पहली प्राथमिकता होती है। आश्चर्यजनक है कि आज देश में केवल 13.4 नौकरीपेशा लोग ही कर्ज से मुक्त हैं। आज नौकरीपेशा लोग अपने स्वास्थ्य, रिश्तों, प्रसिद्धि और तरक्की पर पैसा खर्च करते हैं। आज भारत के नौकरीपेशा लोग एजुकेशन लोन, कार लोन, होम लोन ले रहे हैं। उल्लेखनीय है कि आज सेलेरीड पर्सन लोन और क्रेडिट कार्ड्स का सबसे ज्यादा उपयोग कर रहे हैं। ऐसे लोग आनलाइन खरीदारी में अपनी रूचि का प्रदर्शन कर रहे हैं।
इन सबके पीछे कारण यह है कि आज के समय में एक ओर जहां लिविंग कास्ट बढ़ गई है, वहीं पर दूसरी ओर बढ़ती महंगाई भी सैलरीड क्लास लोगों को अपने लक्ष्यों को हासिल करने में आड़े आ रही है और वे अपने वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने के लिए आज लोन और क्रेडिट कार्ड जैसे फाइनेंशियल प्राडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। हालांकि, यहां गौरतलब है कि खर्च के साथ आज आमदनी में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हुई है लेकिन बावजूद इसके सैलरीड क्लास के अधिकतर लोगों का कर्ज में डूबना आश्चर्यचकित करता है। खर्च के लिए क्रेडिट कार्ड और बैंक लोन पर निर्भरता की यह प्रवृत्ति भारतीय समाज में पहले कभी नहीं रही और क्रेडिट कार्ड और लोन जैसे फाइनेंशियल प्राडक्ट्स का इस्तेमाल आज अन्य देशों की तरह भारतीय समाज में भी एक नया ट्रेंड बनकर उभर रहा है। वास्तव में भारतीय समाज का यह नया ट्रेंड चार्वाक दर्शन को साकार करता नजर आता है जिन्होंने कहा था -‘यावज्जीवेत्सुखं जीवेत् ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्।
भस्मीभूतस्य देहस्य पुनरागमनं कुतः।। अर्थात्
मनुष्य जब तक जीवित रहे तब तक सुखपूर्वक जिये। ऋण लेकर भी घी पिये। जो देह दाह संस्कार में राख हो चुकी, उसका पुनर्जन्म कहां ?