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धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

– लोकेन्द्र सिंह (लेखक माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक हैं।)

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पाँच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। अब उनमें एक और स्थान जुड़ गया- अयोध्या धाम। जिस प्रकार का आस्था का सैलाब प्राण प्रतिष्ठा उत्सव के बाद रामलला के दर्शन को उमड़ा है, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि आनेवाले समय में भारत का सबसे बड़ा धार्मिक पर्यटन स्थल अयोध्या धाम होगा।

भारत के शहर-शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग पहुँचते हैं। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी, उज्जैन, द्वारिका, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि ऐसे स्थान हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में पहुँचते हैं अपितु विदेशी और भारतीय मूल के नागरिक श्रद्धा के साथ आते हैं। पिछले आठ-दस वर्षों में भारत के धार्मिक पर्यटन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल धार्मिक स्थलों को पुनर्विकसित कराया है, अपितु आगे बढ़कर धार्मिक पर्यटन का प्रचार-प्रसार भी किया है। जिसके परिणाम हमें धार्मिक पर्यटन में हो रही वृद्धि के रूप में दिखायी देते हैं। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के कुल पर्यटन में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है।

भारत सरकार की पहल पर पर्यटन मंत्रालय ने कुछ वर्ष पहले धार्मिक पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए चरणबद्ध विकास योजना तैयार की थी। इसमें 53 धार्मिक स्थानों को वरीयता के आधार पर पहले चरण में विकसित जा रहा है। इनमें से कई धार्मिक स्थल पूर्ण रूप से विकसित हो चुके हैं। दूसरे चरण में 89 जगहों पर काम होगा। वर्तमान समय में राष्ट्रीय विचार की सरकार केंद्र में है, उसके अब तक के कार्यकाल के आधार पर अनुमान लगाया जा सकता है कि हिन्दू संस्कृति के प्रसार हेतु धार्मिक पर्यटल स्थलों को विकसित करने का यह क्रम आगे भी लगातार चलता रहेगा। देश को सात नए टूरिज्म सर्किट में भी बांटा गया है। ये सर्किट सूफी, बौद्ध, जैन, ईसाई, सिख, हिन्दू और सर्वधर्म के तौर पर विकसित किए जा रहे हैं। धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देना सरकार की प्राथमिकता में है। इस बात को यूँ भी समझ सकते हैं कि बड़े तीर्थस्थलों पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भी बार-बार जा रहे हैं। केदारनाथ और सोमनाथ परिसर का उन्होंने कायाकल्प कर दिया है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर और महाकाल लोक ने तो दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया।

भारत सरकार ने ‘तीर्थयात्रा कायाकल्प और आध्यात्मिक वृद्धि अभियान’ (प्रसाद) नाम से योजना शुरू की है। प्रसाद योजना का उद्देश्य प्रमुख धार्मिक स्थलों के बुनियादी ढांचे एवं सुविधाओं में सुधार करना है। इसे 2015 में पर्यटन मंत्रालय द्वारा ‘स्वदेश दर्शन योजना’ के हिस्से के रूप में प्रारंभ किया गया था। सरकार ने 1586.10 करोड़ रुपए की 45 विकास योजनाओं को स्वीकृति दी गई है। भारतीय संस्कृति की गूंज दुनिया को सुनायी दे, इस मन्तव्य के साथ ही सरकार इसलिए भी धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा दे रही है क्योंकि यह लोगों को वृहद स्तर पर रोजगार दे रहा है। धार्मिक पर्यटन का एक पहलू अगर धार्मिक और आध्यात्मिक सरोकार हैं तो दूसरा पहलू आर्थिक और सामाजिक विकास भी है। भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, पर्यटन उद्योग भारत के कुल कार्यबल का लगभग 6 प्रतिशत रोजगार देता है। धार्मिक पर्यटन स्थलों से सरकार को वर्ष 2022 में 1,34,543 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। जबकि यही आंकड़ा 2021 में 65,070 करोड़ रुपये का था। पर्यटन मंत्रालय के अनुसार 2022 में पर्यटकों की संख्या 143.3 लाख करोड़ तथा 66.40 करोड़ विदेशी पर्यटक भारत आए।

आर्थिक विषयों के विशेषज्ञ एवं हिन्दू दृष्टि से अर्थव्यवस्था पर लेखन करनेवाले विद्वान प्रह्लाद सबनानी के कहते हैं कि “भारत में यात्रा एवं पर्यटन उद्योग 8 करोड़ व्यक्तियों को प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से रोजगार प्रदान कर रहा है। देश के कुल रोजगार में पर्यटन उद्योग की 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी है”। यह भी याद रखें कि देश के पर्यटन में धार्मिक यात्राओं की हिस्सेदारी 60 से 70 प्रतिशत के बीच रहती है। जब धार्मिक पर्यटन से रोजगार के अवसर भी निर्मित हो रहे हों, अर्थव्यवथा मजबूत हो रही हो तब सरकार क्यों पीछे रहना चाहेगी और फिर भारतीय धार्मिक सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने एवं संवारने में मोदी सरकार को किसी प्रकार का संकोच भी नहीं है। आज भारत की बागडोर ऐसे नेता के हाथों में नहीं है, जिन्होंने कभी भारतीय संस्कृति के मानबिन्दु सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण एवं उसके लोकार्पण में बाधाएं उत्पन्न की थीं। वर्तमान नेतृत्व एवं सरकार भारतीयता पर गर्व करते हैं और उसके संवर्धन, संरक्षण एवं प्रसार-प्रचार को प्राथमिकता में रखते हैं। नि:संदेह, हमें भविष्य में देश के लगभग सभी धार्मिक महत्व के छोटे-बड़े स्थान पूर्ण रूप से विकसित दिखायी देंगे।

मध्यप्रदेश के उज्जैन में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाकालेश्वर मंदिर के भव्य और दिव्य ‘महाकाल लोक’ का उद्घाटन किया था तब उन्होंने विश्वास व्यक्त किया था कि देश की ऐसी धरोहरें निश्चित तौर पर ना केवल धार्मिक पर्यटन को बढ़ाएंगी बल्कि हमारी संस्कृति के जागरण का भी काम करेंगी। उनका यह वक्तव्य धार्मिक पर्यटन के महत्व को भी रेखांकित करता है। स्मरण रखें कि भारत के ‘स्व’ की अनुभूति करने और उसकी स्थापना के लिए गुरु नानकदेव से लेकर स्वामी विवेकानंद तक ने देशाटन किया है। यह बात अनुभव सिद्ध है कि भारत को समझने के लिए भारत का भ्रमण अवश्य किया जाना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक गौरव गाथा को जानने के लिए हमें उन स्थानों पर जाना ही होगा, जहाँ से भारत बोलता है। धार्मिक पर्यटन भारत के इतिहास, संस्कृति, समाज जीवन एवं उसकी परंपराओं के प्रति हमारी समझ को गहरा करता है और नयी दृष्टि भी प्रदान करता है। भारत की विविधता को देखना है और उसमें साम्य को समझना है, तब हमें निश्चित ही भारत के सभी हिस्सों में भ्रमण करना चाहिए। विशेषकर धार्मिक स्थलों पर अवश्य जाना चाहिए, तब हम देख पाएंगे कि ये धार्मिक स्थल भारत की विविधता को एक माला में पिरोते हैं। 

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