समाज

अयोध्या में भारत जीत गया

-डॉ0 कुलदीप चंद अग्निहोत्री

30 सितम्बर 2010 को अयोध्या में राम जन्म स्थान को लेकर हुए विवाद का अतं हो गया। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि जिस स्थान पर इस समय श्रीराम विराजमान है वही उनका जन्म स्थान है। न्यायालय के अनुसार आम लोगों में इसी स्थल को जन्म भूमि स्वीकार करने की मान्यता है और न्यायालय ने इस मान्यता पर मोहर लगा दी है। श्री राम जन्म भूमि को लेकर यह लडाई 1528 को प्रारम्भ हुई थी। जब विदेशी अक्रातांओं ने राम जन्म भूमि पर मंदिरों को गिरा कर वहां एक विवादस्पद ढ़ांचा खडा कर दिया जिसे कालांतर में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। विदेशी आक्रांताओं के इस आक्रमण में भारत पराजित हो गया और राम मदिर की रक्षा नही कर पाया। लेकिन भारतीयो के लिए राम जन्म भूमि को मुक्त करवाने की यह लडाई उसी समय शुरू को गई थी। विभिन्न काल खण्डों में इसके स्वरूप बदलते गये परन्तु भारतीयों ने पराजय को कभी मन से स्वीकार नही किया और संघर्ष जारी रखा। 60 साल पहले यह संघर्ष न्यायालय में पंहुच गया। सारे भारत की निगाहें न्ययालय के निणर्य पर टिकी हुई थी। यह कुछ उसी प्रकार का मंजर था जैसा 1528 में रहा होगा। बाबर की सेनाएं अयोघ्या में आगे बढ रही होगी लांग उनको रोकने के लिए लड़ भी रहे होगें और यह सोच भी रहे होगें कि मंदिर बचेगा या नही बचेगा। भारत जीतेगा या बाबर जीतेगा। उस वक्त भारत हार गया बाबर जीत गया और मंदिर ढह गया।

आज पूरे 492वे साल बाद सारे भारत की निगाहें इलाहाबाद उच्च न्ययालय के लखनऊ बैंच की और लगी हुई थी। प्रश्न वही पुराना था 1528 वाला। राम मंदिर बचेगा या नही बचेगा। लेकिन इस बार भारत जीत गया और इलाहबाद उच्च न्ययालय ने निर्णय दिया कि रामलला वहीं विराजमान रहेगें और वही उनका जन्म स्थान है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने सही कहा है कि इस निर्णय में न किसी हार है न किसी की जीत है। दरसल राम मंदिर का मसला हिन्दू या मुसलमान के बीच विवाद का मसला है भी नही इस लिए किसी एक की जीत या दूसरे की हार का प्रश्न ही कहां पैदा होता है। यह वास्तव में भारत की जीत है। और विदेशी आक्रातांओं की विरासत की हार है। तीनों जजों ने अपने निणर्य में कहीं न कहीं कहा की बाबरी ढांचा हिन्दू मंदिर के भग्नावशेषों पर खडा किया गया था। इतना ही नहीं बावरी ढांचा बनाने के लिए हिन्दू मंदिरों के मलवे का प्रयोग भी किया गया। न्यायालय के एक न्ययाधीश ने तो यह तक कहा कि मंदिर को गिरा कर उसके स्थान पर बनाया गया ढांचा इसलामी कानून के अनुसार ही मस्जिद नही हो सकता। दुर्भाग्य से सुन्नी वक्फ बोर्ड मंदिरों को गिरा कर विदेशी आक्राताओं द्वारा खडे किये गये ढांचे की विरासत के लिए न्यायालय में लड़ रहा था। न्यायालय ने बोर्ड के इस दावे को खारिज कर दिया। इसलिए यह निर्णय न हिन्दू के पक्ष में है न मुसलमान के पक्ष में है यह भारत के पक्ष में है। 2010 में भारत जीत गया है और बाबर हार गया है। 1528 में बाबर जीत गया था और भारत हार गया था।

न्यायालय के इस निर्णय का भारत के लोगों ने एक स्वर में जिस प्रकार स्वागत किया है। उससे सिद्ध होता है कि मंदिर को लेकर लोगों में न तनाव है और न विवाद है। अलबता वोट बैंक की राजनीति करने वाले कुछ लोग तनाव पैदा करने का प्रयास अवश्य़ करते रहते है लेकिन इस बार उन्हें भी सफलता नही मिली। देश के आम मुसलमान ने जिस प्रकार इस फैसले का स्वागत किया है। उससे संकेत मिलते है कि यह निणर्य राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को मजबूत करने वाला सिद्ध हुआ है। वास्तव में जो लोग राम को भगवान नही स्वीकार करते वह भी इतना तो मानते ही है कि राम हमारे पुरखों मे शामिल हैं। हमारा मजहव कोई भी हो, चाहे वैषणव पंथी, चाहे शैव पंथी, चाहे महोम्मदपंथी, चाहे कबीर पंथी या फिर नानक पंथी, राम के अस्तिव से कोई इंनकार नही करता। बाबर इस देश में किसी का पुरखा नही है, चाहे वह हिन्दु हो चाहे मुसलमान। ऐसी स्थिति में भारत राम की विरासत की रक्षा करेगा न की बाबर की विरासत की। न्यायालय ने भी राम की विरासत के पक्ष में ही निर्णय दिया है। इस निर्णय को आधार मानकर सभी मजहबों के लोगों के बीच जो सदभावना पैदा हुई है उसे आगे बढाने की जरूरत है। अब जब न्यायालय ने स्वीकार कर लिया है कि यही स्थान राम जन्मभूमि है और रामलला अपने उचित स्थान पर विराजमान है तो उस स्थान को और सुन्दर बनाने एवं भव्य रचना का निर्माण करने से कैसे मना किया जा सकता है। इस मुकदमें में तो रामलला स्वयं वादी थे और न्यायालय ने उनके पक्ष में निर्णय दिया है। अब जब राम न्यायालय में जीत चुके हैं। तो क्या समस्त भारतीयों का, चाहे वे हिन्दु हों या मुसलमान ,कर्तब्य वनता है कि राम के लिए भव्य मंदिर का निर्माण करें।

न्यायालय ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। और उसने विवादित स्थान को राम की जन्म भूमि करार दिया है। अब भारत सरकार की बारी है। भारतीय संसद अप्रत्यक्ष रूप से सभी भारतीय की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। इसलिए भारत सरकार को चाहिए की वह संसद में सर्वसम्मति से राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए विधेयक बनाकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे। भारत की संसद ने मैहमूद गजनबी द्वारा धवस्त किए गये सोमनाथ मंदिर के पुननिर्माण के लिए ऐसा ही प्रस्ताव संसद ने पारित किया था। जो काम गजनबी ने सोमनाथ में किया था वही काम कालान्तर में बाबर ने अयोघ्या में किया। जिस रास्ते से सोमनाथ मंदिर का पुननिर्माण हुआ था उसी रास्ते से अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए। इसके रास्ते में जो रूकावटे थी उन्हें इलाहबाद उच्च न्यायालय ने अपने 30 सितम्बर के निर्णय से दूर कर दिया है। यदि अब भी भारत सरकार इस मामले पर हक्लाने लगेगी तो इसका अर्थ होगा कि भारत न्यायालय में तो जीत गया है लेकिन भारत सरकार के हाथों ही हार रहा है। आशा है कि भारत सरकार कम से कम भारत को हराने का काम तो नही करेगी। यदि ऐसा होता है तो इससे स्वतः सिद्ध हो जाएगा कि भारत सरकार के भीतर अभी भी ऐसा गिरोह है जिसकी रूचि राम की विरासत में नही वल्कि विदेशी आक्रांतां बाबर की विरासत मे ज्यादा है। मघ्य प्रदेश की पूर्व मुख्य मंत्री उमा भारती ने ठीक ही कहा है कि पितृ पक्ष में न्यायालय ने भारत के एक पुरखे के पक्ष मे निर्णय दिया है। देखना है भारत सरकार इस पितृ पक्ष में किसके साथ है – राम के या बाबर के।