कला-संस्कृति

भारतीय सभ्यता-संस्कृति का मतलब नहीं बदला जा सकता

-आलोक कुमार-   indian culture

भारतीय संविधान में जिस सेकुलरिज़्म (धर्मनिरपेक्षता) शब्द की व्याख्या है- उसका मूल अर्थ “सर्वधर्म समभाव” के रूप में ग्रहण किया गया था, लेकिन नेहरू परिवार द्वारा शुरू की गई मुस्लिम तुष्टीकरण की रुग्ण – राजनीति ने इस शब्द के मायने ‘एक धर्म विशेष को अपमानित करके दूसरे धर्म विशेष को खुश करना’ कर दिया है। अंग्रेजों ने हमारे देश को एक बार बांटा लेकिन हमारे ये स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष राजनेता हर रोज इस गौरवमयी राष्ट्र को बांट रहे हैं।

क्या आज अल्पसंख्यकों के कल्याण के नाम पर ओछी राजनीति, एक अच्छे-भले सद्भावपूर्ण वातावरण को समाप्त करने का काम नहीं कर रही है ? क्या सिर्फ मुल्ला व जरदारी टोपी पहनना ही धर्मनिरपेक्षता का सूचक है ? अब वो समय आ गया है जब इस तरह के तुष्टीकरण से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को सोचने पर मजबूर होना चाहिए कि ” क्या उन्हें सिर्फ वोट बैंक बनकर रहना है या सम्मानित नागरिक ?” स्वघोषित धर्मनिरपेक्ष दलों को भी देश की जनता को बताना होगा कि आखिर कब तक तुष्टीकरण की राजनीति के नाम पर देशहित शूली पर लटकता रहेगा?

धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारे राष्ट्रीयता को ही बदलने की कोशिश की जा रही है। उदाहरण के लिए संसद में “सरस्वती वन्दना” पर आपत्ति, राजधानी/शताब्दी एक्सप्रेस में “भक्ति-गीतों” के बजने पर आपत्ति, “वन्दे-मातरम” पर आपत्ति इत्यादि। यहां तक कि राष्ट्रीय चिन्हों (राष्ट्रीय फूल: कमल, राष्ट्रीय पक्षी: मोर) पर भी आपत्ति जताई जा रही है। ऐसे असंख्य उदाहरण आज हमारे सामने हैं, ये अलग बात है कि हम जाने-अनजाने में इन बातों को नज़रंदाज़ कर देते हैं।अब विचार करने योग्य बात है कि क्या सही में ये सब धर्मनिरपेक्षता है या धर्मनिरपेक्षता की आड़ में ये ओछी राजनीति करने वाले राजनीतिज्ञ हमारी राष्ट्रीयता को मिटाने कि कोशिश कर रहे हैं ? हज़ारों वर्ष पुरानी भारतीय सभ्यता को मिटाने का षड्यंत्र चल रहा है। भले ही हमारी पूजा-पद्धति कुछ भी हो, हम सनातन धर्म को मानते हों, इस्लाम के अनुयायी हों या ईसा-मसीह की पूजा करते हों, हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते हैं कि दुनिया में भारत-वर्ष की पहचान भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, भगवान बुद्ध, भगवान महावीर, चाणक्य, चन्द्रगुप्त, छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, तक्षशिला, विक्रमशिला, नालंदा, गीता, पुराण, वेद-उपनिषद् इत्यादि से है, ना कि मोहम्मद पैगम्बर, ईसा-मसीह, अकबर, बाबर, हुमायूं, औरंगजेब, बाईबल, क़ुरान, इत्यादि से है।

भारतीय-दर्शन का मतलब भारत का वह गौरवपूर्ण इतिहास है जिसमें रामायण, महाभारत, पुराण, वेद-उपनिषद, भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण, चरक, भास्कराचार्य, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त, समुद्रगुप्त, चाणक्य, पाणिनी, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरबिंद, इत्यादि के बारे में बताया जाता हो और इस बात को कोई भी झुठला नहीं सकता। भले ही कोई कितना भी “धर्मनिरपेक्षता” का राग अलाप ले, “भारतीय सभ्यता-संस्कृति” का मतलब नहीं बदला जा सकता। यही भारतवर्ष की पहचान है, यही भारत-वर्ष की राष्ट्रीयता है। हम इन “छद्म धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों” के छलावे में आकर अपनी पहचान खो रहे हैं और अपनी पहचान, अपनी राष्ट्रीयता को खोकर हम ज्यादा दिनों तक नहीं रह सकते हैं।

आज आवश्यकता है हम सभी भारतीयों (वो सभी लोग जो इस पवित्र भूमि को भारत-माता मानते हैं) को एक साथ खड़े होकर इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिज्ञों को सबक सीखाने की, अपनी विलुप्त हो रही राष्ट्रीयता को पुनः प्रतिष्ठित करने की, अपने इस भारत-माता को पुनः परम-वैभव पर पंहुचाने की और भारतवर्ष को फिर से विश्व-गुरु के रूप में स्थापित करने की।