सुशासन बाबू का नालन्दा व कल्याणबिगहा प्रेम

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-आलोक कुमार-    nitish

एक कुशल और सफ़ल शासक वही होता है जो व्यापक दृष्टिकोण रखता हो। बिहार में आज कहीं सही मायने में विकास हो रहा है तो वो नालन्दा है, उसमें भी विशेषकर कल्याणबिगहा। नालन्दा या कल्याणबिगहा के विकास से मुझे कोई गुरेज नहीं है लेकिन सिर्फ़ और सिर्फ़ नालन्दा और कल्याणबिगहा ही क्यों ? नीतीश जी राज्य के मुखिया हैं, नालन्दा के सांसद और विधायक नहीं अपने गृह -जिले और अपने गांव से एक हद तक प्रेम भी ठीक है लेकिन न्याय के साथ विकास की अवधारणा में समग्र विकास समाहित है ना की एक स्थान विशेष का विकास। एक बात और जब लालू यादव अपने शासनकाल में और बतौर रेलमंत्री अपने गृह-जिले के विकास में लगे थे तो नीतीश कुमार उसका प्रबल विरोध किया करते थे आज खुद दोहरी नीति पर चलने को विवश हैं आखिर क्यूं ? कहीं ना कहीं मंशा साफ़ नहीं दिखती ! कहीं जाति-प्रेम तो नहीं आड़े आ रहा ?

हर राजनेता को अपने क्षेत्र से मोह होता है और यह मोह होना स्वाभाविक भी है आखिर यह क्षेत्र ही तो उसे चुनकर एक नेता के रूप में स्थापित करता है। लेकिन बड़े नेता इस मामले में कुछ दिखावा अवश्य करते हैं जैसे कि उनके लिए पूरा प्रदेश ही समान हो। कुछ इसी तरह बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का अंदाज है। वह पूरे बिहार से अपना संबंध जताते हैं लेकिन सच्चाई कोई नहीं छिपा सकता है। अपने क्षेत्र नालंदा से उन्हें भी लगाव है और क्षेत्र के विकास की चिंता भी है परन्तु वे इसे उजागर न होने देने का प्रयास करते हैं। लेकिन हिंदी फिल्म का एक लोकप्रिय गाना है ना “सच्चाई छिप नहीं सकती बनावट के…”

नीतीश जी ने नालंदा विश्वविद्यालय की जिस लगन से स्थापना करवाई है ( दूसरे विश्वविद्यालयों को अपनी बदहाली के आंसू बहाते छोड़कर ) उससे नालंदा के लोग अभिभूत हैं। निःसंदेह इस विश्वविद्यालय का अपना इतिहास रहा है, नीतीश उसी की बार-बार दुहाई दे रहे हैं। लेकिन विक्रमशीला क्यूं उपेक्षित है ? विश्वविद्यालय की बात तो गले उतरती है लेकिन उन्होंने तो नालंदा में पुलिस प्रशिक्षण केन्द्र भी खुलवा दिया है। राज्य का पहला महिला थाना भी नीतीश जी के जिले में खुला है। पटना से हवाई -अड्डा अन्यत्र ले जाने की बात हुई तो नए स्थान के रूप में नालंदा का नाम सामने आया। पौधे लगाकर हरित बिहार की शुरुआत भी नीतीश जी ने अपने गाँव कल्याणबिगहा में चंदन का पौधा लगाकर शुरू की। तीरंदाजी प्रशिक्षण विद्यालय की स्थापना भी नीतीश जी के गांव कल्याणबिगहा में, शायद ये ज्यादा बेहतर किसी आदिवासी बहुल ईलाके में होता शायद बांका या पूर्णिया, कटिहार के इलाके में ! मत्रिमंडल की कई ” तफरीह वाली बैठकों ” का आयोजन भी नालंदा में ही हुआ, अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन सेंटर का निर्माण भी राजगीर नालंदा में ही हुआ, वैसे तो बिहार में खाना-पूर्ति के लिए अनेक महोत्सव होते हैं लेकिन राजगीर महोत्सव पर सरकार का विशेष ध्यान और कृपा होती है। खुद की पार्टी के लगभग सारे शिविर और बैठकों का आयोजन भी नीतीश जी अपने गृह -जिले (राजगीर) में ही करना पसंद करते हैं , इसका दबे स्वर में विरोध उनकी ही पार्टी के नेता और कार्यकर्ता ये कहकर करते हैं कि ” क्या नीतीश जी को वोट केवल और केवल नालंदा की जनता ने ही दिया था …? “हद तो तब हो गयी जब नीतीश जी ने राजगीर में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम बनाने के प्रस्ताव को अपनी कैबिनेट से मंजूरी दिलवा डाली।जिस राज्य की राजधानी में एक भी राष्ट्रीय स्तर का स्टेडियम नहीं है , वहाँ राजगीर में क्रिकेट स्टेडियम की प्रासंगिकता पर प्रश्न उठना लाजिमी है (राजगीर एक धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन स्थल है )।

जितनी परियोजनाओं की शुरुआत नीतीश जी के गृह जिले में हुई है बिहार में कहीं नहीं (सबों का जिक्र अगर यहां पर करूं तो ये आलेख अनावश्यक लम्बा और उबाऊ हो जाएगा), चाहे इको टूरिज्म हो, सड़क परियोजनाएं हों इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज व डेंटल कॉलेज की स्थापना हो। ये विकास प्रेम है या कुछ और ? नालन्दा सुशासन बाबु के स्वजनों की भूमि है, ये सर्वविदित है। उद्देश्य विकास या कुछ और…?

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