राजनीति समाज

भारतीय संस्कृति का प्रतीक है देश की पहली मस्जिद

तनवीर जाफ़री

भारतवर्ष के सत्तालोभी चतुर राजनीतिज्ञों द्वारा भारतीय समाज को हिंदू-मुस्लिम व मंदिर-मस्जिद के नाम पर विभाजित कर सत्ता शक्ति प्राप्त की जा रही है। देश में कई जगह से इस प्रकार के विवादों की ख़बर आती रहती है। पिछले दिनों तो कुछ मनचले तथाकथित स्वयंभू हिंदुत्ववादी नवयुवकों द्वारा कुछ ऐसी हरकतें की गईं जिससे भारतवर्ष के धर्मनिरपेक्ष स्वभाव तथा हमारे देश के संविधान की मूल भावना को काफ़ी गहरा आघात पहुंचा। मुट्ठीभर लोगों द्वारा उत्तर प्रदेश व हरियाणा में कुछ स्थानों पर शुक्रवार की सामूहिक नमाज़ अदा करने वाले सैकड़ों नमाजि़यों को कुछ गिने-चुने असामाजिक तत्वों द्वारा नमाज़ पढऩे से रोक दिया गया तथा उन्हें अन्यत्र जाकर नमाज़ पढऩे को कहा गया। ऐसी घटनाओं में क़ाबिल-ए-तारीफ़ बात यह रही कि नमाजि़यों द्वारा उन उत्पाती युवकों के साथ किसी तरह के टकराव की स्थिति नहीं पैदा की गई। अन्यथा इन जगहों पर सांप्रदायिक तनाव फैल सकता था। बहरहाल इस घटना के बाद ऐसे युवकों की हौसला अफ़ज़ाई करने वाले कई बयान सत्ताधारी नेताओं की ओर से दिए गए। किसी ने कहा कि नमाज़ पढऩे की जगह मस्जिद में है तो किसी ने अपना उपदेश इन शब्दों में दिया कि-ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने की ग़रज़ से नमाज़ पढऩा ठीक नहीं तो किसी ने नमाजि़यों को बंगलादेशी नागरिक बता कर मामले को दूसरा मोड़ देने का प्रयास किया।
बहरहाल, उपरोक्त संदर्भ में कुछ बातें समझना बहुत ज़रूरी हैं। सर्वप्रथम तो निश्चित रूप से नमाज़ केवल मस्जिदों में ही अदा की जानी चाहिए और अपनी इबादत के लिए मस्जिद का प्रबंध करने की जि़म्मेदारी भी मुसलमानों की ही है। दूसरी बात यह कि लगभग पूरे देश में जहां-जहां अधिक मुस्लिम आबादी रहती है ऐसी जगहों पर ख़ासतौर पर प्रत्येक शुक्रवार को यह देखा जाता है कि मुस्लिम समाज मस्जिद में जगह भर जाने के बाद सडक़ों पर अपना मुसल्ला बिछा देता है। अब यह बताने की ज़रूरत नहीं कि वह सडक़ या गली नमाज़ पढऩे के एतबार से कितनी पाको-पाकीज़ा रहती है।और सोने पर सुहागा यह कि नमाज़ पढ़ते समय अक्सर नमाज़ी अपनी सजदा करने की जगह के सामने ही चोरी हो जाने के भय से अपना जूता-चप्पल भी संभाले रखते हैं। साफ़ ज़ाहिर होता है कि ऐसे नमाजि़यों को अपने जूते की ज़्यादा फ़िक्र रहती है नमाज़ और सजदे की गरिमा व मर्यादा की कम। इस संदर्भ में यह बात भी साफ़ है कि सडक़ों व गलियों में नमाजि़यों का मुसल्ला बिछने के बाद राहगीरों को बेहद परेशानी का सामना करना पड़ता है। तमाम दुकानदारों की दुकानदारी नमाज़ ख़त्म न होने के समय तक चौपट रहती है। राहगीर रास्ता नहीं चल पाते, स्कूल की छुट्टी होने पर बच्चों को उधर से निकलने में परेशानी उठानी पड़ती है। मैं नहीं समझ पाता कि दूसरों को तकलीफ़ देकर या दूसरों की बददुआएं लेकर की गई इबादत को ख़ुदा कैसे कुबूल करता होगा? इस प्रकार की आपत्ति के उत्तर में यह कहना कि हिंदुओं या अन्य ग़ैर मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा सडक़ों पर जागरण किए जाते हैं या शोभा यात्रा निकाली जाती है या कुंभ,महाकुंभ व अनेक स्नान व पर्व के नाम पर सडक़ों व पार्कों आदि का इस्तेमाल किया जाता है तो इस प्रकार के तर्क भी कुतर्क ही कहे जाएंगे। क्योंकि बुराई तो बुराई ही है। किसी बुराई का जवाब दूसरी बुराई से नहीं दिया जा सकता।प्रत्येक समाज या समुदाय में व्याप्त कमियों या बुराइयों का ज़िम्मा सम्बंधित समाज के लोगों को ही दिया जाना चाहिए। हां यदि इस प्रकार के सवाल-जवाब में उलझने की कोशिश की गई तो साजि़श कर्ताओं को सफ़लता ज़रूर मिलेगी।
रहा सवाल यह कि जिन राजनीतिज्ञों ने नमाजि़यों को गुरूग्राम में नमाज़ पढऩे से रोकने वालों की हौसला अफज़ाई की है उन्हें न तो भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि समझा जा सकता है न ही वे उदार हिंदुत्व की वास्तविक भावनाओं की नुमाईंदगी करते हैं। शायद उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं कि भारत में लगभग साढ़े चौदह सौ वर्ष पूर्व अर्थात् पैगंबर हज़रत मोहम्मद के जीवनकाल में ही निर्मित की गई पहली मस्जिद जो केरल के त्रिशूर जि़ले के कोडुंगलूर क्षेत्र में बनाई गई थी यह मस्जिद न तो किसी मुस्लिम पूंजीपति ने बनाई थी न ही इसके लिए अरब से पैसा भेजा गया था और न ही इसके लिए मुसलमानों ने चंदा इकठ्ठा  किया था बल्कि इस मस्जिद का निर्माण केरल के तत्कालीन हिंदू राजा चेरामन पेरूमल ने स्वयं करवाया था। इस मस्जिद का निर्माण इसलिए कराया गया था ताकि अरब से समुद्री रास्ते से मालाबार आने वाले मसाला व्यापारी जब केरल आएं तो उन्हें नमाज़ पढऩे के लिए कोई परेशानी न उठानी पड़े। आज भी राष्ट्रीय धरोहर के रूप में यह मस्जिद हिंदू-मुस्लिम एकता की कहानी बयान करती है। इस मस्जिद में हिंदू व मुस्लिम सभी धर्म के लोग आते हैं तथा यहां से शिक्षा भी ग्रहण करते हैं। इसी मस्जिद की स्वर्ण अलंकृत प्रतिकृति भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुल अज़ीज़ को भेंट कर बड़े गर्व से यह समझाने का प्रयास किया कि भारत में हिंदू-मुस्लिम कितने भाईचारे से रहते हैं।
हमारे देश में मुंबई जैसे महानगर से कई बार ऐसी खबरें मिल चुकी हैं जिससे यह पता चला कि कभी मस्जिद में जगह भर जाने की वजह से तो कभी बारिश के चलते गणेश प्रतिमा के पूजा पंडाल में स्थानीय हिंदू भाईयों ने मुसलमानों को आमंत्रित कर नमाज़ पढऩे का आग्रह किया। और सैकड़ों मुसलमानों ने गणेश प्रतिमा के समक्ष अपनी नमाज़ अदा की। पिछले दिनों पंजाब से एक ऐसी ही खबर सुनाई दी कि एक गांव में जहां गुरुद्वारा तथा मंदिर तो मौजूद थे परंतु मस्जिद नहीं थी। मस्जिद न होने की वजह यह थी कि उस गांव में मुसलमानों की संख्या सबसे कम भी थी और वे गरीब भी थे। ऐसे में गांव के हिंदुओं व सिखों न मिल कर उन्हें न केवल मस्जिद बनाने के लिए ज़मीन मुहैया कराई बल्कि मस्जिद की इमारत हेतु सामग्री भी खरीद कर दी।अयोध्या की हनुमान गढ़ी से लेकर पूरे देश में विभिन्न सरकारी व ग़ैर सरकारी स्थानों पर रोज़ा इफ़्तार होता आया है। इसमें भी नमाज़ पढ़कर ही इफ़्तार किया जाता है। हमारे देश में हज़ारों ऐसी मिसालें मौजूद हैं जो हमें यह बताती हैं कि कहां-कहां मुस्लिम नवाबों,जागीरदारों व ज़मींदारों ने मंदिरों व गुरुद्वारों के लिए ज़मीन व धन-दौलत मुहैया कराया। यहां तक कि अयोध्या में हनुमानगढ़ी सहित कई ऐसे प्राचीन मंदिर हैं जिन्हें मुस्लिम शासकों ने ज़मीनें भी दीं और धन-दौलत भी दिया। इसी प्रकार देश में हज़ारों ऐसी मस्जिदें,दरगाहें व इबादतगाहें हैं जो हिंदू राजाओं,जागीरदारों तथा धनवान लोगों द्वारा बनाई गई हैं। मोहर्रम के आयोजन से देश के लाखों हिंदू परिवार पूरी श्रद्धा के साथ जुड़े होते हैं।
सत्ता के नशे  में चूर राजनेताओं ने चाहे बहुसंख्यवाद की राजनीति कर या फिर अल्पसंख्यकों को खुश करने की होड़ में देश के प्राचीन सद्भावपूर्ण सामाजिक तान-बाने को भले ही बिगाड़ कर क्यों न रख दिया हो परंतु हमारा देश व देशवासियों का वास्तविक स्वभाव व उनके प्राचीन संस्कार कल भी मुस्लिम कवि रहीम,रसखान व जायसी के रूप में हिंदू देवी-देवताओं का गुणगान कर रहे थे तो आज भी देश का हिंदू समाज उत्तर भारत की अधिकांश दरगाहों व खानकाहों पर पूरी श्रद्धा व भक्ति के साथ हाजि़री लगा कर अपने गौरवशाली धर्मनिरपेक्ष भारतीय नागरिक होने का प्रमाण प्रस्तुत करता है। आज भी देश की अधिकांश मस्जिदों में हिंदू व मुसलमान अपने बीमार बच्चों को लेकर नमाज़ के बाद दुआएं लेने के लिए मस्जिदों की सीढिय़ों पर लाईन लगार कर बैठे दिखाई देते हैं। हरियाणा व पंजाब में तो पीरों-फकीरों की अनेक दरगाहें ऐसी हैं जहां के गद्दीनशीन व सेवादार सभी गैर मुस्लिम हैं। ऐसे में समाज को विभाजित करने वाले चंद नेताओं या मुट्ठीभर उपद्रवी लोगों की परवाह कतई नहीं की जानी चाहिए। भले ही पूरे देश की सत्ता ऐसे लोगों के हाथों में क्यों न चली जाए परंतु जनता का वास्तविक व पारंपरिक स्वभाव एक-दूसरे के धर्मों,धर्मस्थानों व उनकी आस्थाओं को पूरा मान-सम्मान देने का पहले भी था और भविष्य में भी ऐसा ही बना रहेगा।