सोच…….शौचालय की
लोबज़ैंग चोरोल
लेह, लद्दाख
बदलते समय के साथ जीवन बहुत व्यस्त हो गया है, इस व्यस्तता के कारण हमें परिवारों के साथ बैठकर स्वस्थ और पर्याप्त भोजन करने तक का समय नही मिलता। हम इतने व्यस्त हैं कि हमारे पास सांस लेने का समय नहीं है। इसमें कोई शक नही कि सिर्फ एक मशीन की तरह काम करने के लिए खा रहे हैं, पी रहे हैं और सांस ले रहे हैं।आज लोगों के पास आराम से शौचालय करने का समय भी नहीं है।लेकिन आपको बताना चाहुंगी कि लद्दाख के सूखे शौचालय (ड्राई टॉयलेट) में ऐसा बिल्कुल नही होता। सूखे शौचालयों के अंदर हमेशा मिट्टी के ढेर पर स्थित फावड़ा चमत्कार करता है। मानव अपशिष्ट को फर्श में छेद से गुजरने के लिए बनाया जाता है और फावड़े की मदद से कचरे पर थोड़ी सूखी रेत फेंक दी जाती है और अपघटन का दिलचस्प चक्र शुरू होता है। खाद के कमरे अर्थात् इन सूखे शौचालयों में बिताया गया समय और प्रयास निश्चित रूप से समय बर्बाद नहीं होता।यहां के शौचालय प्रणाली को मूल रूप से दो तल का बनाया गया है। पहले तल पर शौचालय और दुसरे तल पर मानव अपशिष्ट से बनने वाले खाद का स्थान होता है। शौचालय का उपयोग करने के बाद, छेद के नीचे थोड़ा रेत फेंकने के लिए फावड़े का उपयोग करना होता है, जो न केवल मानव अपशिष्ट को ढकने के काम आता है बल्कि अपशिष्ट की गंध को कम करने में भी सहायक है। और यह कंपोस्टिंग प्रक्रिया में मदद करता है। कंपोस्टिंग प्रक्रिया से गुज़रने के बाद उत्तम किस्म के खाद का निर्माण होता है जिसे खेतों के चारों ओर छिड़क कर किसान अच्छी फसल पैदा करते हैं। ये सूखे शौचालय विशेष रूप से सर्दियों के महीनों में उपयोगी होते हैं जब तापमान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है, और पानी जम जाता है।लद्दाख के लोगों द्वारा सूखे खाद शौचालय का उपयोग करने के पीछे मुख्य कारण यह है कि भारत के अन्य हिस्सों की तुलना में यहां पानी की उपलब्धता कम पाई जाती है। स्थानीय लोगों के लिए पानी मूल रूप से पिघलने वाले ग्लेशियर द्वारा उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन दुर्भाग्य से प्रवासियों और पर्यटकों विदेशी और भारतीय दोनों की सुविधाओं के कारण फ्लश सिस्टम शौचालय भी लाया गया है। फ्लश शौचालयों के कारण भूजल निकालने के लिए बोर कुओं की शुरूआत लद्दाख की पारिस्थितिकीय प्रणाली पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।लेह के चांगस्पा में स्थित जिग-गियास गेस्ट हाउस की मालिक लगभग 30 वर्षीय श्रीमती यांगडोल का कहना है कि वह अपने गेस्ट हाउस में भारतीयों के बजाय विदेशियों को जगह देना ज्यादा पसंद करती हैं। वह महसूस करती है, कि विदेशी भारतीयों की तुलना में अधिक प्रकृति प्रेमी होते हैं और वे भारतीय पर्यटकों की तुलना में कम पानी का उपयोग करते हैं जो लद्दाख में बहुत कीमती हैं। सूखे खाद शौचालय और फ्लश शौचालयों के बीच अंतर के बारे में बात करते समय, वह दिल की गहराईयों से कहती है, “लद्दाखी पारंपरिक शौचालय सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन हमारे शौचालय को बढ़ावा देना आसान नहीं है”। वह विदेशियों के लिए अपने गेस्ट हाउस में सूखे शौचालय की सुविधा नही रखना चाहती क्योंकि वह अपनी आजीविका खोना नहीं चाहती।एक सरकारी कर्मचारी श्री डॉर्जी से बात करने पर उन्होने बताया कि “मैं अपने घर पर सूखे शौचालय के साथ-साथ फ्लश टॉयलेट को भी पसंद करता हूं क्योंकि मुझे अपने स्थान पर स्थानीय और गैर-स्थानीय मेहमानों दोनो की सुविधा का ध्यान रखना होता है। इसलिए मेरे घर पर एक फ्लश सिस्टम शौचालय का निर्माण भी करना पड़ा। मेरा मानना है कि यह भी बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय “अतिथि देवो भवः (मेहमान भगवान की तरह हैं) के वाक्य मे दृढ़ विश्वास रखते हैं। अतिथियों का गर्मजोशी से स्वागत करना और उसे यादगार बनाना हमारा मुख्य कर्तव्य है “।जांस्कर के यारलंग गांव की 40 वर्षीय सोनम डोलकर मुस्कुराते हुए कहती हैं कि “मुझे वास्तव में फ्लश सिस्टम शौचालय पसंद नहीं है। जब मैं लेह के बाहर तीर्थयात्रा पर जाती हूं तो सूखे शौचालय नहीं मिलते, इसलिए मुझे फ्लश शौचालय का उपयोग करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। लेकिन मुझे अभी भी फ्लश शौचालय प्रणाली पसंद नहीं है “।अतः आपसे अनुरोध है कि अगर आप लद्दाख आने की योजना बना रहे हैं तो मेरी ओर से इस सुझाव को मानते हुए यहां के पांरपारिक शौचालय का उपयोग ज़रुर करें और शौचालय की इस नई प्रणाली के बारे में जानें। (चरखा फीचर्स)